मेरी एक दोस्त थी कुमुद,अपनी बहन की शादी के दौरान उसने दूल्हे के एक दोस्त को देखा जो गाना बहुत अच्छा गा रहा था, उसकी आवाज़ से कुमुद उसकी तरफ खिंच गयी,बात करने पर वो बेहद सीधा और सरल लड़का निकला। वो अलग कास्ट का था लेकिन आज 28 वर्ष बीत गए उनकी शादी को और वो एक दूसरे को पहली मुलाकात के जैसे ही प्यार करते हैं। शायद इसी को सच्चा प्यार कहते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे दिल का प्यार में पड़ने से कोई लेना-देना नहीं होता, यह सब हमारे दिमाग़ का लोचा होता है ?
यह एक बहुत ही दिलचस्प और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित तथ्य है कि हम प्यार दिल से नहीं, बल्कि दिमाग से करते हैं। सुनने में भी बड़ा अजीब लग रहा है कि दिमाग़ से भला प्यार कैसे किया जा सकता है लेकिन सच तो यही है।
दिल में किसी के प्यार का जलता हुआ दिया,, दिल है कि मानता नहीं, जैसे अनगिनत गीतों द्वारा प्यार के लिए दिल को ही जिम्मेदार बताया गया। भले ही साहित्य, फिल्मों और कविताओं में दिल को प्यार का केंद्र बताया गया हो, लेकिन असल में यह एक न्यूरोकेमिकल प्रक्रिया है, जो हमारे मस्तिष्क में घटती है।
प्यार, सोचने पर तो हमें आसान लगता है। लेकिन यह एक बहुत जटिल प्रक्रिया है। आसान शब्दों में कहें तो जब आपको प्यार होता है, तो डोपामाइन (खुशी का हॉर्मोन) और ऑक्सिटोसिन (प्यार का हॉर्मोन) आपके दिमाग पर हावी हो जाते हैं।
जैसे फिल्मों में दिखाते हैं कि प्यार होने पर हर चीज प्यारी लगती है, व्यक्ति खुशी में झूमने लगता है वो असल मे इन्हीं दोनों हॉर्मोन का खेल है। दिमाग से निकलने वाले तमाम तरह के हार्मोन का कॉकटेल ही इंसान में प्यार की तरंगें पैदा करता है।
तो चलिए इस खेल को विस्तार से समझते हैं।
1. प्यार और दिमाग का केमिकल लोचा कैसे होता है?
जैसा कि हमने पहले जाना की प्यार वास्तव में दिमाग से निकलने वाले हार्मोन्स की वजह से महसूस किया जाता है, प्यार में पड़ना वास्तव में मस्तिष्क के विभिन्न न्यूरोट्रांसमीटर वजह से होता है। जब हम किसी की ओर आकर्षित होते हैं, तो मस्तिष्क में कई रसायनों का स्राव (release) होता है, जो हमें अलग-अलग भावनाएं महसूस कराते हैं। अगर ये रसायन न निकलें तो प्यार की भावना खत्म हो जाएगी।
2- प्यार में कौन से केमिकल काम करते हैं? और कैसे हमें प्यार का एहसास कराते हैं?
1. पहला आकर्षण: जब हम किसी को पसंद करने लगते हैं, तो दिमाग में डोपामिन और नॉरएपिनेफ्रीन नामक रसायन बढ़ जाते हैं, जिससे हमें उत्तेजना, खुशी और उत्साह महसूस होता है। इसी को लोग “Love at first sight” कहते हैं।
2. इमोशनल बॉन्डिंग: जब रिश्ता आगे बढ़ता है, एक दूसरे पर विश्वास होने लगता है तो ऑक्सीटोसिन और वैसोप्रेसिन नमक रसायन निकलने लगते हैं जो रिश्ते में जुड़ाव,अपनापन और करीबी जैसी भावनाओं को मजबूत करते हैं।
3. लंबे समय का रिश्ता: इसी प्रकार सेरोटोनिन और वैसोप्रेसिन नामक रसायन हमें रिश्ते में स्थिरता और समर्पण की भावना देते हैं। जिससे वो रिश्ता लम्बे समय तक बना रहता है और मजबूत होता है।
इससे स्पष्ट हो गया कि इसमें दिल का कोई योगदान नहीं है । यह सब मस्तिष्क में होने वाले न्यूरोकेमिकल बदलावों के कारण होता है।
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डोपामाइन (Dopamine): – यह एक न्यूरोट्रांसमीटर है जो खुशी और इनाम की भावना पैदा करता है, जिससे प्यार एक नशे की तरह महसूस होता है।
ऑक्सीटोसिन (Oxytocin): – इसे “प्रेम हार्मोन” भी कहा जाता है, यह जुड़ाव और विश्वास को बढ़ाता है।
सेरोटोनिन (Serotonin): – यह हार्मोन हमारे मूड और जुनून को नियंत्रित करता है।
नॉरएड्रेनालाईन (Norepinephrine): – यह उत्साह की भावना और तेज़ हृदय गति, पेट में ऐंठन और बढ़ी हुई एनर्जी जैसी शारीरिक प्रतिक्रियाओं का कारण बनता है।
वासोप्रेशिन (Vasopressin): – यह हार्मोन लम्बे समय तक बने रहने वाले संबंधों में वफादारी और समर्पण बनाए रखता है।
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3. प्यार में पड़ने पर दिल क्यों तेज धड़कता है ?
जब हम किसी को पसंद करते हैं या प्यार में पड़ते हैं, तो मस्तिष्क नॉरएपिनेफ्रीन और एड्रेनालिन नामक हार्मोन रिलीज करता है।
ये हार्मोन हमारे हृदय गति (Heart Rate) को तेज कर देते हैं और शरीर में अनेक नए लक्षण पैदा करता है।
इसलिए जब हम अपने प्यार को देखते हैं, तो दिल धड़कने लगता है, हाथ पसीने से भीग जाते हैं, और पेट में ऐंठन जैसा महसूस होता है।
यही वजह है कि लोगों को लगता है कि प्यार दिल से होता है, अपने प्रेमी को दिल याद करता है जबकि असल में यह सब दिमाग का खेल है!
4. क्या “पहली नजर का प्यार” मस्तिष्क में होता है ?
शोध बताते हैं कि किसी की ओर आकर्षित होने में सिर्फ 0.2 सेकंड से 4 मिनट का समय लगता है। इस दौरान मस्तिष्क में डोपामिन, नॉरएपिनेफ्रीन और ऑक्सीटोसिन सक्रिय हो जाते हैं, जिससे हमें प्यार का एहसास होता है।
डॉ. Helen Fisher (Biological Anthropologist, Rutgers University) के अनुसार:
प्यार वास्तव में तीन चरणों में होता है: लस्ट (Lust), अट्रैक्शन (Attraction), और अटैचमेंट (Attachment)।
यह पूरी प्रक्रिया मस्तिष्क में न्यूरोकेमिकल गतिविधियों के कारण होती है, न कि दिल की वजह से।
https://helenfisher.com/romantic-love-can-it-last/
5. क्या यह सिद्धांत वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित है ?
यह सवाल बार बार उठता है क्या वास्तव में इसके पीछे कोई विज्ञानं है ? वैज्ञानिकों ने fMRI (Functional MRI) स्कैन का उपयोग करके यह साबित किया है कि प्यार में पड़ने के दौरान मस्तिष्क में कुछ खास क्षेत्र सक्रिय हो जाते हैं।
कॉर्डेट न्यूक्लियस (Caudate Nucleus) और वेंट्रल टेगमेंटल एरिया (VTA) – ये मस्तिष्क के वे हिस्से हैं, जो प्यार और इनाम (Reward) प्रणाली से जुड़े हैं।
जब कोई व्यक्ति प्यार में होता है, तो इन हिस्सों में डोपामिन का स्तर बढ़ जाता है, जिससे उसे खुशी, उत्तेजना और जुनून महसूस होता है।
https://www.verywellhealth.com/your-brain-in-love-8575246
https://www.psypost.org/scientists-reveal-how-the-brain-responds-to-six-different-types-of-love/
फिर दिल का क्या रोल है?
दिल सिर्फ एक पंपिंग ऑर्गन है, जिसका काम रक्त संचार करना है।
प्यार में आने वाली सभी भावनाएं मस्तिष्क में उत्पन्न होती हैं, न कि दिल में।
इसलिए “दिल टूटना” भी वास्तव में मस्तिष्क की प्रतिक्रिया होती है, जो दुखद भावनाओं को नियंत्रित करती है।
6. क्या प्यार सिर्फ केमिकल रिएक्शन तक सीमित है?
विज्ञान के तथ्य पूरी तरह सही हैं लेकिन इसमें एक पक्ष मनोविज्ञान का भी है जो यह मानता है कि प्यार सिर्फ हार्मोन से नहीं चलता, या ऐसे कहें कि चल ही नहीं सकता।
अगर प्यार सिर्फ रसायनों का खेल होता, तो यह मशीनों या ड्रग्स से नियंत्रित किया जा सकता था लेकिन ऐसा नहीं है। अभी तक प्यार को कृत्रिम रूप से पैदा नहीं किया जा सका है।
दो लोग एक-दूसरे को समझने, त्याग करने, और साथ निभाने के लिए तैयार होते हैं, यह सिर्फ केमिकल से नहीं हो सकता।
संस्कृति, समाज, व्यक्तिगत अनुभव और भावनात्मक गहराई भी प्यार को प्रभावित करते हैं। व्यक्ति का जीवन दर्शन और उसकी परवरिश भी प्यार में योगदान देती है।
माता-पिता का संतान के लिए प्रेम, या बलिदान की भावना—यह सिर्फ हार्मोन से नहीं समझाई जा सकती।
इसलिए मान कर चलना चाहिए कि प्यार जैविक (Biological) जरूर है, लेकिन यह मनोवैज्ञानिक (Psychological) और दार्शनिक (Philosophical) भी है।
निष्कर्ष –
इन उदाहरणों से यह तो साबित हो गया कि प्यार मस्तिष्क का खेल है, दिल का नहीं ! जैसा की सदियों से प्यार के लिए दिल को दोषी बनाया जाता रहा है ! प्यार एक न्यूरोकेमिकल प्रतिक्रिया है, जो पूरी तरह मस्तिष्क के नियंत्रण में होती है।
दिल सिर्फ एक सर्कुलेटरी ऑर्गन है, जो इन भावनाओं को प्रभावित नहीं करता। लेकिन व्यक्ति की संस्कृति, समाज, व्यक्तिगत अनुभवों, भावनात्मक मजबूती और परवरिश का असर भी प्यार पर पड़ता है। केवल कुछ केमिकल की वजह से इंसान जीवन भर किसी का साथ नहीं निभाता, इसलिए प्यार केवल वैज्ञानिक नहीं मनोवैज्ञानिक क्रिया भी है।
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Waah, bhut shandar aur nai jankari di aapne. Hame to aaj tak pata nahi tha. Thanks to you.