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Toxic Positivity: क्या हमेशा खुश रहना ज़रूरी है ?

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Toxic positivity: comforting someone while ignoring real emotions.
आजकल एक बात बहुत सुनने को मिलती है: “पॉज़िटिव सोचो, सब ठीक हो जाएगा!” “जो होता है अच्छे के लिए होता है!”
“खुश रहो, नेगेटिविटी से दूर रहो!”
ये बातें पहली नज़र में सही लगती हैं। आखिरकार, सकारात्मक सोच तो ज़रूरी है, है ना? लेकिन सोचिए —
क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया कि आपको उदासी या थकावट महसूस हो रही है, और किसी ने आपके भावों को पूरी तरह नज़रअंदाज़ करके कह दिया, “ओह, इतना क्यों सोचते हो, खुश रहो यार!”
या फिर आप किसी कठिन समय से गुज़र रहे हैं और सोशल मीडिया पर लोग बस अपनी परफेक्ट, मुस्कराती ज़िंदगी दिखा रहे हैं।
ऐसे समय में आप खुद से सवाल करते हैं:

“क्या मुझमें ही कोई कमी है?”
“क्या दुखी होना गलत है?”

यही है Toxic Positivity — एक ऐसी मानसिकता जो कहती है कि किसी भी कीमत पर आपको सिर्फ पॉज़िटिव ही रहना चाहिए, और बाकी सभी भावनाएं जैसे डर, गुस्सा, उदासी… ये सब “कमज़ोरी” हैं।

आप कभी किसी ऐसे व्यक्ति से मिले हैं जो मुश्किल से मुश्किल घड़ी में भी पॉज़िटिव रहते हैं। आसमान फट जाए, पहाड़ गिर जाए, दुनिया तहस-नहस हो जाये मगर वे शांत और सकारात्मक ही दिखते हैं।
ऐसे लोग असल में साहस और सकारात्मकता का प्रतीक नहीं होते, बल्कि हकीकत से इनकार कर अपनी ही दुनिया में जी रहे होते हैं। वह बाहर से तो मजबूत और शांत नज़र आते हैं, मगर अंदर से पूरी तरह टूट चुके होते हैं।

जब पॉजिटिविटी मानवीय भावनाओं और संवेदनाओ को दबाने या छुपाने का ज़रिया बने तो वह टॉक्सिक हो जाती है। दर्द, प्रेम, बिछोह और डर जैसी भावनाएं मनुष्य के अंदर होना नॉर्मल है और उन्हें व्यक्त किया जाना चाहिए। कई बार अपनी भावनाओं को छुपाने के चक्कर में हम अपनी मनोस्थिति के साथ खिलवाड़ करने लगते हैं।

क्या कहती है रिसर्च?

 -2018 की American Psychological Association रिपोर्ट में बताया गया कि जो लोग नकारात्मक भावनाओं को दबाते हैं, उनके मानसिक स्वास्थ्य पर इसका उल्टा असर पड़ता है।
-एक स्टडी (Becerra et al., 2020) में पाया गया कि toxic positivity से emotional invalidation होता है, जिससे व्यक्ति खुद को अकेला और misunderstood महसूस करता है।
-World Health Organization के अनुसार, 2023 में दुनियाभर में करीब 970 मिलियन लोग anxiety और depression जैसी मानसिक परेशानियों से जूझ रहे थे — और एक बड़ा कारण यह है कि हम अपनी असली भावनाओं को स्वीकार करना नहीं सीख पाए हैं।

https://www.verywellmind.com/what-is-toxic-positivity-5093958

https://www.psychologytoday.com/us/basics/toxic-positivity

क्यों है ये विषय इतना महत्वपूर्ण?

1. सोशल मीडिया का दौर:
जहाँ हर कोई अपनी “सही” ज़िंदगी दिखा रहा है, वहाँ असली, कच्ची भावनाएं छिप जाती हैं। हम सोचते हैं, “सब खुश हैं, तो मैं क्यों नहीं?”
2. Mental Health को लेकर जागरूकता:
अब लोग anxiety, burnout और depression के बारे में बात कर रहे हैं, लेकिन toxic positivity इन्हें भी “ज़रूरत से ज़्यादा सोचने” का नाम देकर दबा देती है।
3. Self-help का दुरुपयोग:
कई बार self-help किताबें या influencers बिना context दिए “सिर्फ पॉज़िटिव सोचो” कहकर समस्या को छोटा बना देते हैं।

आज हम जानेंगे कि
Toxic positivity क्या होती है, और ये कैसे दिखती है?
इसका हमारे दिमाग और व्यवहार पर क्या असर पड़ता है?
Healthy positivity और toxic positivity में फर्क क्या है?
और सबसे ज़रूरी — कैसे हम खुद और दूसरों के प्रति emotionally authentic बन सकते हैं।

Rewire Your Soch का मकसद सिर्फ “अच्छा सोचो” नहीं है, बल्कि यह समझना है कि “कैसे सोचो”, “क्या महसूस करो”, और “कब खुद से ईमानदार रहो” — ताकि हमारी मानसिक सेहत मजबूत हो, न कि झूठी मुस्कान के पीछे छिपी हुई।

“सब अच्छा होगा!”, “पॉज़िटिव सोचो!”, “ये तो कुछ भी नहीं है!”
आपने कभी ये बातें सुनी हैं जब आप दुखी या तनाव में थे ? अगर हाँ, तो शायद आप Toxic Positivity के शिकार हो चुके हैं — और अगर आपने दूसरों से ऐसी बातें कही हैं तो आप बिना जाने दूसरों को भी इसका शिकार बना चुके हैं।

Toxic Positivity क्या है?

टॉक्सिक पाज़िटिविटी का मतलब होता है हर परिस्थिति में ज़बरदस्ती पॉज़िटिव बने रहना, चाहे स्थिति कितनी भी बुरी क्यों न हो। इसमें इंसान के दुख, डर, या गुस्से जैसे नेगेटिव इमोशन्स को अनदेखा किया जाता है और बार-बार यही कहा जाता है:
“सब ठीक है”, “पॉज़िटिव सोचो”, “शुक्र करो” — भले ही सामने वाला अंदर से टूट रहा हो।

Toxic Positivity एक ऐसा मानसिकता या व्यवहार है जिसमें हम हर स्थिति में केवल पॉज़िटिव रहने की ज़रूरत को ज़ोर देकर थोपते हैं  यानी: “दुख, गुस्सा, डर, चिंता — इन सभी भावनाओं को दबा दो और जबरदस्ती मुस्कराते रहो।”
यह मानसिकता सुनने में सकारात्मक लगती है, लेकिन व्यवहारिक रूप से यह हमारे emotional health को नुकसान पहुंचा सकती है।

Toxic Positivity के संकेत

-किसी के दुख को नज़रअंदाज़ करते हुए कहना: “कम से कम तुम ज़िंदा तो हो!”
-अपने भावनात्मक दर्द को छिपाना ताकि दूसरों को परेशान न करो।
-हर कठिनाई को “सीखने का मौका” कहकर असली समस्या से बचना।
-सोशल मीडिया पर हमेशा खुश और परफेक्ट दिखने की कोशिश करना।

क्या है इसके पीछे का मनोविज्ञान 

1. Emotional Suppression:
जब हम अपने नकारात्मक भावों को दबाते हैं, तो वह लंबे समय तक अंदर ही अंदर जमा होते जाते हैं। इससे हमारी मेन्टल हेल्थ बिगड़ने लगती है | जैसे- हंसी को दबाना, रोना बंद करना, या भावनाओं को छिपाने के लिए तटस्थ चेहरे की अभिव्यक्ति बनाए रखना
2. Invalidation:
किसी के दर्द को यह कहकर छोटा कर देना कि “पॉज़िटिव सोचो”, उनके अनुभव को नकारने जैसा है। इससे व्यक्ति अकेलापन और शर्मिंदगी महसूस कर सकता है। इससे व्यक्ति अंदर अंदर घुटता रहता है लेकिन अपनी भावनाएं शेयर नहीं करता | 
3. Perfectionism और Comparison Trap:
जब हम सोचते हैं कि हमें हमेशा खुश दिखना है, तो हम अपने आप को unrealistic expectations में फंसा लेते हैं। हम झूठा दिखावा करने लगते हैं कि सबकुछ ठीक है और अंदर से टूट जाते हैं | 

Toxic Positivity क्यों हानिकारक है?

1. नकारात्मक भावनाओं को दबाना:
हर वक्त सकारात्मक रहने का दबाव आपको वास्तव में नकारात्मक भावनाओं से दूर कर सकता है, जिससे आप उन्हें और अधिक दबाते हैं. यह आपकी मानसिक असुरक्षा को बढ़ा सकता है, क्योंकि आप एक भ्रम में जीते हैं कि सकारात्मक होकर आप सभी के लिए प्रेरणा बन रहे हैं| 
2. मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
हर चीज में सकारात्मक देखने का दबाव आपको अवसाद का शिकार बना सकता है जो कि खतरनाक हो सकता है | 
आप वास्तविकता को नकारने लगते हैं और एक काल्पनिक दुनिया में जीने लगते हैं.
3. आत्म-संदेह:
जब आपको लगता है कि आप हमेशा सकारात्मक रहते हैं, लेकिन सामने से आपको वही प्रतिक्रिया नहीं मिलती है, तो आप अपने बारे में संदेह करने लगते हैं.
4. नकारात्मक अनुभवों को नजरअंदाज करना:
अत्यधिक सकारात्मक होने के कारण आप समस्याओं और चुनौतियों को नजरअंदाज कर सकते हैं, जिससे आपके परफॉर्मेंस और सफलता में कमी आ सकती है.
5. आत्मघाती बर्ताव को बढ़ावा:
ऐसे व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में भी सकारात्मक परिणाम की उम्मीद करते हैं, और अगर ऐसा नहीं होता है तो वे आत्मघाती कदम भी उठा सकते हैं क्योकि उन्हें कुछ नेगटिव झेलने की ताकत नहीं रह जाती | 
6. अप्रामाणिक होना:
हमेशा खुश रहने का दिखावा करने से आप अप्रामाणिक लग सकते हैं और आपको दोस्तों और परिवार से जरूरी समर्थन नहीं मिल सकता है| यह एक तरह का आर्टिफिशल व्यवहार है जिससे लोग चिढ जाते हैं | 

Healthy Positivity

  • भावनाओं को स्वीकार करती है
  • मानसिक स्वास्थ्य का सम्मान करती है
  • समस्या का समाधान खोजती है
  • आत्म-करुणा को बढ़ावा देती है
  • उदाहरण: “यह समय कठिन है, लेकिन मैं इससे सीखूंगा”

Toxic Positivity

  • भावनाओं को दबाती है
  • अपराधबोध उत्पन्न करती है
  • वास्तविकता को नजरअंदाज करती है
  • दूसरों की भावनाओं को invalid करती है
  • उदाहरण: “बस पॉजिटिव सोचो, रो मत!”

 

तो समाधान क्या है?

1. भावनाओं को नाम देना (Name it to tame it)

जब आप कोई भावना महसूस करें — जैसे गुस्सा, उदासी, निराशा — तो उसे स्पष्ट रूप से पहचानें और स्वीकार करें।
उदाहरण: “मुझे आज अकेलापन महसूस हो रहा है” कहने में कोई शर्म नहीं है।
मनःविज्ञान के अनुसार, जब हम किसी भावना को शब्दों में बयां करते हैं, तो हमारा दिमाग उसे regulate करना शुरू कर देता है।

2. ‘Should’ से बचें

जैसे: “मुझे दुखी नहीं होना चाहिए”, “मुझे हमेशा पॉज़िटिव रहना चाहिए” — ये विचार self-judgment बढ़ाते हैं।
इनकी जगह कहें: “मैं अभी मुश्किल में हूँ, और ये भावना स्वाभाविक है।” आने वाल समय बहुत अच्छा होगा | 

3. दोहरी सोच विकसित करें (Emotional Duality)

सीखें कि इंसान दो विपरीत भावनाएं एक साथ महसूस कर सकता है।
उदाहरण: आप दुखी भी हो सकते हैं और आशावादी भी।
यह मानसिक लचीलापन (psychological flexibility) आपके emotional intelligence को बढ़ाता है।

4. Space देना सीखें (Give yourself & others space)

अगर कोई व्यक्ति अपने दर्द को व्यक्त कर रहा है, तो तुरंत जवाब देने की जगह बस सुनिए।
Validation देने के उदाहरण:
“मैं समझ सकता हूँ कि तुम्हारे लिए ये कितना कठिन है।”
“तुम्हारी भावना सही है, और मैं तुम्हारे साथ हूँ।”

5. Self-Compassion का अभ्यास करें

Dr. Kristin Neff के अनुसार, Self-Compassion तीन हिस्सों से मिलकर बनती है:

6. Self-kindness (अपने प्रति दयालुता)

Common humanity (ये समझना कि दुख सबके जीवन में आता है)
Mindfulness (भावनाओं को नज़रअंदाज़ न करना, न ही उसमें डूब जाना)

7. सोशल मीडिया पर संतुलन रखें

हमेशा ‘खुश-खुश’ दिखने की ज़रूरत नहीं। ऑनलाइन असली बनें, परफेक्ट नहीं।
हर समय खुश और सफल दिखने का दबाव हटाइए। Curate कीजिए कि आप क्या देखना चाहते हैं।
अपने वास्तविक अनुभवों को शेयर करने से न डरें — इससे दूसरों को भी प्रेरणा मिलती है।

8. Journaling और Reflective Writing

हर दिन कुछ मिनटों के लिए अपने विचार और भावनाएं लिखें।
प्रश्न जैसे:
आज मैंने क्या महसूस किया और क्यों?
क्या कोई भावना थी जिसे मैंने दबाया?
क्या मैं आज खुद के साथ ईमानदार था?

9. Emotionally safe लोगों की संगति

ऐसे लोगों के साथ समय बिताइए जो आपके असली रूप को स्वीकार करते हैं — ना कि सिर्फ तब जब आप खुश होते हैं। जो आपके सुख दुःख को अच्छी तरह समझ सकें उन्हें अपने साथ रखिये | 

10. थैरेपी या प्रोफेशनल मदद लेने से न हिचकें

Mental health professionals आपको भावनाओं को बेहतर समझने, संभालने और व्यक्त करने में मदद कर सकते है इसलिए जरुरत पड़ने पर किसी मनोवैज्ञानिक से सलाह मशवरा अवश्य करें | इसमें किसी तरह का संकोच नहीं करना चाहिए | 

11. Affirmations जो सच्चाई पर आधारित हों

Fake affirmations (“I am happy”) से बेहतर हैं real affirmations:
“मैं अपनी हर भावना को स्वीकार करता हूँ”
“मैं खुद के लिए space और healing की अनुमति देता हूँ”

अंत में…

“पॉज़िटिव रहो” कहने में कुछ गलत नहीं है, लेकिन जब हम उस positivity का इस्तेमाल दर्द को दबाने और भावनाओं को अनदेखा करने के लिए करते हैं, तो वह ज़हर बन जाती है।
खुश रहिए — लेकिन ज़रूरत हो तो रोइए भी, गुस्सा कीजिए, और खुद को समझिए।
यही तो असली मानसिक स्वास्थ्य है — Rewire Your Soch की दिशा में एक जरूरी कदम।

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