हम सभी ने कभी न कभी किसी को दूसरा मौका दिया है, यह सोचकर कि शायद वो बदल जाए या फिर हमारी मदद से चीजें सही हो जाएं। लेकिन क्या हर किसी को दूसरा मौका देना सही है ? अक्सर हम अपने रिश्तों में, चाहे वो व्यक्तिगत हों या पेशेवर, एक-दूसरे को मौका देते रहते हैं, उम्मीद करते हुए कि सामने वाला बदल जाएगा। लेकिन कभी-कभी ऐसा नहीं होता, और हम खुद को नुकसान में डाल लेते हैं। मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से, कुछ लोग ऐसे होते हैं जिन्हें बार-बार दूसरा मौका नहीं देना चाहिए, क्योंकि उनका व्यवहार कभी नहीं बदलता।
दूसरा मौका देना रिश्तों में एक संवेदनशील और महत्वपूर्ण निर्णय होता है। मनोविज्ञान के अनुसार, हर कोई दूसरा मौका पाने के योग्य नहीं होता, खासकर जब कोई व्यवहार या स्थिति बार-बार दोहराई जाती हो और आपके मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाती हो। इस ब्लॉग में हम उन व्यक्तियों के बारे में बात करेंगे जिनके साथ बार-बार मौका देने से हमें नकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।
1. जो लोग बार-बार धोखा देते हैं या झूठ बोलते हैं
यदि कोई व्यक्ति लगातार झूठ बोलता है, धोखा देता है या विश्वासघात करता है, तो यह एक पैटर्न बन जाता है न कि एक बार की गलती। ऐसे लोगों को माफ करना और दूसरा मौका देना आपके लिए हानिकारक हो सकता है क्योंकि वे अपनी गलतियों की जिम्मेदारी नहीं लेते और व्यवहार नहीं बदलते।
जो लोग बार-बार हमारी भावनाओं के साथ खेलते हैं या धोखा देते हैं, उन्हें दूसरा मौका देना जोखिम भरा हो सकता है। मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से, यदि कोई व्यक्ति लगातार अपने किए गए गलतियों से नहीं सीखता और अपने व्यवहार में सुधार नहीं लाता, तो उसे फिर से मौका देना आत्मसम्मान को नुकसान पहुंचा सकता है। यह स्थिति आत्मविश्वास और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकती है।
उदाहरण: आपकी दोस्त लगातार आपको झूठ बोलती है कि वह व्यस्त है, इसलिए मिल नहीं पा रही। लेकिन आप जानते हैं कि वह पीठ पीछे आपकी बातों को दूसरों से शेयर करती है। उसने कई बार भरोसा तोड़ा है, लेकिन फिर माफी मांगने के बाद भी उसने अपनी आदत नहीं बदली। ऐसे में दूसरा मौका देना आपके लिए नुकसानदेह हो सकता है।
समाधान: ऐसे लोगों से दूरी बनाकर, हम अपनी आत्म-मूल्यता को बचा सकते हैं।
2. जो भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हमारी भावनाओं और मानसिक स्थिति का फायदा उठाते हैं। वे हमारी सहानुभूति और दया का शोषण करते हैं, जिससे हम बार-बार उन्हें अवसर देते रहते हैं। इस तरह के लोग न केवल हमारी सीमाओं का उल्लंघन करते हैं, बल्कि हमें मानसिक रूप से थका भी सकते हैं।
रिश्ते में सेकंड चॉइस होने का मतलब होता है कि आपको कम प्राथमिकता दी जाती है, जिससे एंग्जायटी, तनाव और डिप्रेशन जैसी मानसिक समस्याएं हो सकती हैं। यदि आपका पार्टनर आपको भावनात्मक संतुष्टि नहीं दे पाता या आपको सेकंड चॉइस की तरह ट्रीट करता है, तो ऐसे रिश्ते में बने रहना आपके लिए हानिकारक है।
उदाहरण: आपका साथी आपकी भावनाओं को नजरअंदाज करता है, आपकी बातों को हल्के में लेता है या आपको सेकंड चॉइस की तरह ट्रीट करता है। इससे आप तनाव और एंग्जायटी महसूस करते हैं। जब आप बार-बार खुद को कमतर महसूस करें, तो ऐसे रिश्ते में बने रहना हानिकारक होता है।
समाधान: आत्म-सम्मान और सीमाओं का पालन करते हुए, ऐसे लोगों से निपटना जरूरी है।

3. जो इमरजेंसी या मुश्किल समय में आपका साथ नहीं देते
मुश्किल समय ही वह क्षण होता है जब असली रिश्तों की परख होती है। अगर कोई व्यक्ति हर सुखद पल में आपके साथ होता है, लेकिन कठिन समय में गायब हो जाता है, तो यह दर्शाता है कि वह व्यक्ति वास्तव में आपके भले के लिए नहीं है। ऐसे लोग केवल सुविधा के आधार पर आपके साथ होते हैं और जब उन्हें कोई लाभ नहीं दिखता, तो वे पीछे हट जाते हैं।
मनोविज्ञान के अनुसार, ऐसे लोग “Fair-weather Friends” कहलाते हैं। वे तब तक आपके साथ होते हैं जब तक आप खुशहाल और सफल रहते हैं। लेकिन जैसे ही मुश्किल समय आता है, वे खुद को दूर कर लेते हैं। ऐसे लोग आपकी भावनात्मक भलाई को नुकसान पहुंचा सकते हैं। यदि कोई आपके संकट के समय आपकी मदद करने से कतराता है या आपकी जरूरतों को नजरअंदाज करता है, तो ऐसे व्यक्ति को दूसरा मौका देना व्यर्थ है क्योंकि वे आपके लिए भरोसेमंद नहीं हैं।
उदाहरण: जब आप किसी मुश्किल दौर से गुजर रहे होते हैं, जैसे नौकरी छूटना या परिवार में कोई बड़ा संकट आ गया हो और आपका करीबी व्यक्ति आपकी मदद करने या समर्थन देने से बचता है, बहाने बनाता है तो इसका मतलब है कि वह आपके लिए भरोसेमंद नहीं है।
4. जो सार्वजनिक रूप से आपकी बेइज्जती करते हैं
कुछ लोग अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिए दूसरों को नीचा दिखाने या सार्वजनिक रूप से अपमानित करने में संकोच नहीं करते। वे आपके आत्म-सम्मान को चोट पहुंचाने के लिए आपकी गलतियों, कमजोरियों या निजी बातों का मजाक बनाते हैं। ऐसे लोग अपने भीतर की असुरक्षा को छिपाने के लिए दूसरों को शर्मिंदा करते हैं।
मनोविज्ञान में इसे “Public Shaming” या “Social Humiliation” कहा जाता है। जो लोग दूसरों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करते हैं, वे अक्सर अपने आत्म-सम्मान को बढ़ाने के लिए ऐसा करते हैं। यह व्यवहार किसी भी स्वस्थ संबंध के लिए जहरीला हो सकता है। ऐसे लोगों के साथ बार-बार मौका देना, आपके आत्म-सम्मान को कमजोर कर सकता है।
अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर सार्वजनिक जगहों पर आपका अपमान करता है, तो इसका मतलब है कि वह आपके प्रति सम्मान नहीं रखता। ऐसे लोगों को माफ करना और दूसरा मौका देना आपके आत्मसम्मान के खिलाफ होगा।
उदाहरण: आपका साथी या रिश्तेदार आपके सामने या दूसरों के बीच आपकी आलोचना करता है, आपकी निजी बातों को उठा कर मजाक बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ता,आपकी कमजोरियों को उजागर करता है या मज़ाक उड़ा कर आपके आत्मसम्मान को चोट पहुंचाता है तो ऐसे व्यक्ति को दूसरा मौका देना उचित नहीं।
5. जो अपने व्यवहार में सुधार करने को तैयार नहीं हैं
अगर कोई व्यक्ति बार-बार अपनी गलतियों को दोहराता है और कोई सकारात्मक बदलाव नहीं दिखाता, तो उसे बार-बार मौका देना खुद के लिए हानिकारक हो सकता है। मनोवैज्ञानिक रूप से, बदलाव के लिए इंसान को खुद को बदलने की इच्छा और प्रेरणा होनी चाहिए। जब ऐसा नहीं होता, तो स्थिति जटिल हो जाती है।
दूसरा मौका तभी सार्थक होता है जब दोनों पक्ष अपनी गलतियों को समझें और सुधारने की कोशिश करें। यदि कोई व्यक्ति अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करता या बदलाव लाने में असमर्थ है, तो दूसरा मौका देना नुकसानदेह हो सकता है।
उदाहरण: आपने अपने पार्टनर को बार-बार बताया कि उसका गुस्सा आपको चोट पहुंचाता है, या घर में गाली-गलोच आपको पसंद नहीं है लेकिन वह उसे सुधारने की कोशिश नहीं करता बल्कि हर बार वही व्यवहार दोहराता है और जिम्मेदारी लेने से भी बचता है।
समाधान: खुद को मानसिक शांति देने के लिए, ऐसे लोगों से दूर रहना सही होगा।

6. जो सिर्फ लेना जानते हैं और अपनी समस्या आपके सिर थोप देते हैं
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो केवल आपसे लाभ उठाने में माहिर होते हैं। वे हर बार आपकी मदद मांगते हैं, अपनी समस्याओं को आपके सिर पर थोपते हैं, लेकिन जब आपको उनकी जरूरत होती है, तो वे गायब हो जाते हैं। ये लोग एकतरफा रिश्तों के उदाहरण होते हैं, जहां देने वाला हमेशा आप होते हैं और लेने वाला हमेशा वही।
मनोविज्ञान में ऐसे व्यक्तियों को “Emotional Drainers” कहा जाता है। वे आपकी सहानुभूति और दयालुता का उपयोग करते हैं और खुद को हमेशा पीड़ित के रूप में पेश करते हैं। वे आपकी भावनात्मक ऊर्जा को खींचते रहते हैं, लेकिन जब आपको समर्थन की आवश्यकता होती है, तो वे आपके लिए उपलब्ध नहीं होते। ऐसे लोग आपके समय, ऊर्जा और भावनात्मक संसाधनों का एकतरफा उपयोग करते हैं। वे अपनी जिम्मेदारियों से बचते हुए केवल आपकी मदद मांगते हैं, जिससे आप मानसिक रूप से थक जाते हैं। ऐसे रिश्ते संतुलित नहीं होते और आपको कमजोर कर सकते हैं।
उदाहरण: आपका एक मित्र हमेशा अपनी घरेलू/आर्थिक परेशानियों को लेकर आपके पास आता है और आप हर बार उसकी मदद करते हैं। लेकिन जब आपको किसी संकट में सलाह या सहायता की आवश्यकता होती है, तो वह बहाने बनाकर दूर हो जाता है। ऐसे लोग केवल अपनी भलाई के लिए रिश्ते बनाते हैं।
7. जो चिर आलोचक होते हैं और आपकी कमियां निकालते रहते हैं
कुछ लोग ऐसे होते हैं जो हमेशा आपकी कमियों पर ध्यान देते हैं, आपकी गलतियों को उभारते हैं और कभी भी आपके प्रयासों की सराहना नहीं करते। ये लोग न केवल आपके आत्मविश्वास को कमजोर करते हैं बल्कि आपको यह महसूस कराते हैं कि आप कभी भी पर्याप्त अच्छे नहीं हैं। ऐसे लोग आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक हो सकते हैं।
मनोविज्ञान में ऐसे लोगों को “Chronic Critics” कहा जाता है। वे अपनी असुरक्षाओं और हताशाओं को दूसरों पर निकालते हैं। उनके लिए दूसरों को नीचा दिखाना ही खुद को श्रेष्ठ महसूस कराने का तरीका होता है। अगर आप ऐसे लोगों को बार-बार मौका देते हैं, तो वे आपकी आत्म-सम्मान को लगातार ठेस पहुंचाते रहेंगे।
लगातार आलोचना और नकारात्मकता से आत्मविश्वास पर बुरा असर पड़ता है। यदि कोई व्यक्ति आपकी खूबियों को नजरअंदाज कर केवल आपकी कमियां गिनाता है, तो यह आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। ऐसे लोग आपके विकास में बाधा डालते हैं।
उदाहरण: आपके पास एक दोस्त/रिश्तेदार है जो हमेशा आपकी उपलब्धियों में कोई न कोई कमी निकालता है। यदि आप उसे अपने नए प्रोजेक्ट के बारे में बताते हैं, तो वह उसकी तारीफ करने के बजाय उसमें कमियां ढूंढ़ने लगता है। ऐसे लोग आपकी मेहनत और सफलता को कभी नहीं सराहते।
8. जो अपने दोषों को स्वीकार नहीं करते
जब कोई व्यक्ति अपनी गलतियों को स्वीकारने और सुधारने के बजाय उन्हें छिपाता है या दूसरों पर आरोप लगाता है, तो यह उसकी मानसिकता को दर्शाता है। मनोविज्ञान में इसे “defensiveness” कहा जाता है, जो कि किसी रिश्ते के लिए खतरनाक हो सकता है। ऐसे लोग सुधार की ओर नहीं बढ़ते, बल्कि समस्या से बचने की कोशिश करते हैं।
अपनी कमियों को छुपाने के लिए हजार बहाने बनाना और हर बात का दोष हमेशा दूसरों के सिर मढ़ देना जिससे वो स्वयं किसी भी आक्षेप से बच जाए। ऐसे फितरत के लोग दूसरे मौके के लायक नहीं होते।
उदाहरण: आपका दोस्त/करीबी आपके साथ सबके सामने बुरा व्यवहार करता है और फिर उसका दोष भी आपके सिर मढ़ देता है कि तुम्हारे कारन मैंने ऐसा किया, गलती तुम्हारी थी वरना मैं कभी गलत व्यवहार करता ही नहीं हूँ। तुम मुझे गलत करने के लिए उकसाते हो।
समाधान: ऐसे लोगों से रिश्ते सुधारने की बजाय, अपनी मानसिक शांति और खुशी को प्राथमिकता दें।
निर्णय लेते समय ध्यान रखने योग्य बातें
- अपनी भावनाओं को समझें और उन्हें सही तरीके से प्रोसेस करें ताकि आप बार-बार टूटने के चक्र में न फंसें।
- दूसरे मौके से पहले देखें कि क्या वह व्यक्ति सच में अपनी जिम्मेदारी ले रहा है और माफी मांग रहा है।
- रिश्ते में सुधार के लिए दोनों का प्रयास आवश्यक है; एकतरफा प्रयास से रिश्ते में संतुष्टि नहीं मिलती।
- खुद से सवाल करें कि क्या आप फिर से उस दर्द और संघर्ष से गुजरने को तैयार हैं।
- यदि मौका देना जरुरी हो तो अपनी सीमायें तय करें, रिज़र्व रहकर सम्बन्ध बनायें।
- यदि निर्णय लेना कठिन हो, तो किसी विशेषज्ञ से सलाह लें क्योंकि यह आपके मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
इस विषय पर मनोवैज्ञानिक शोध मौजूद है, जो रिश्तों और व्यवहार के पैटर्न को समझने में मदद करता है। शोध बताते हैं कि दूसरा मौका तभी देना उचित होता है जब व्यक्ति अपनी गलतियों को स्वीकार कर सुधार की कोशिश करता हो और रिश्ते में पारस्परिक सम्मान और भरोसा बना रहे। https://www.healthshots.com/hindi/mind/before-giving-someone-a-second-chance-take-care-of-these-3-things/
मनोवैज्ञानिक अनुसंधान में व्यवहार, भावनात्मक निवेश, और रिश्तों के सुधार के लिए ध्यान से समझना, प्रयोग, और सहसंबंधात्मक अध्ययन किए जाते हैं, जो यह समझने में मदद करते हैं कि किन परिस्थितियों में दूसरा मौका देना लाभकारी या हानिकारक हो सकता है।
https://www.uou.ac.in/sites/default/files/slm/MAPSY-101.pdf
https://egyankosh.ac.in/bitstream/123456789/71947/3/Block-1.pdf
निष्कर्ष :
इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि दूसरा मौका देना तब ही सही होता है जब व्यक्ति सुधार की दिशा में सचमुच प्रयास करता हो और रिश्ता दोनों के लिए सकारात्मक हो। अन्यथा, अपने मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए सीमाएं बनाना जरूरी है। यह समझदारी और आत्म-सम्मान की बात है कि आप अपने जीवन में केवल उन्हीं लोगों को जगह दें जो आपके समय, भावनाओं और प्रयास के योग्य हों।
जीवन में दूसरा मौका देना एक सुनहरा अवसर होता है, लेकिन हर किसी को यह मौका नहीं मिलना चाहिए। जो लोग बार-बार आपके भरोसे को तोड़ते हैं, आपके मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं, आपके साथ मुश्किल समय में खड़े नहीं होते, जो केवल लेना जानते हैं, चिर आलोचक होते हैं, या केवल अपने फायदे के लिए आपके साथ जुड़ते हैं, उन्हें दूसरा मौका न देना ही बेहतर होता है। अपने आत्मसम्मान और मानसिक शांति को प्राथमिकता दें और रिश्तों में स्वस्थ सीमाएं बनाएं।
यह समझदारी और आत्म-सम्मान की निशानी है कि आप अपने जीवन में केवल उन्हीं लोगों को जगह दें जो आपके समय, भावनाओं और प्रयास के योग्य हों। हमें यह समझने की आवश्यकता है कि कुछ रिश्तों को समाप्त करके हम खुद को बेहतर स्थिति में रख सकते हैं। दूसरों को मौका देने से पहले, यह भी जरूरी है कि हम अपनी सीमाएं समझें और खुद का ख्याल रखें।
अंतिम विचार:
कभी-कभी खुद को और अपनी मानसिक शांति को सबसे ऊपर रखना जरूरी होता है। जीवन में कभी न कभी हमें यह निर्णय लेना पड़ता है कि हम किसे अपना समय और ऊर्जा देंगे और किससे हमें दूर रहना चाहिए। अपने मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य का ख्याल रखना, सबसे महत्वपूर्ण कदम है।
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