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अंधविश्वास और मनोविज्ञान: टोना-टोटका पर विश्वास क्यों ?

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अंधविश्वास और मनोविज्ञान: टोना-टोटका पर विश्वास क्यों ?

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हर युग में मनुष्य ने अपने भय, उम्मीद और जीवन की अनिश्चितताओं को समझने के लिए कुछ न कुछ “आश्रय” खोजा है। कभी ग्रह-नक्षत्रों में तो कभी टोना-टोटका या अंधविश्वास में। पर सवाल यह है कि जब विज्ञान और तर्क युग चल रहा है, तब भी क्यों इतने लोग इन धारणाओं पर विश्वास करते हैं?

क्या आपने कभी सोचा है कि लोग क्यों मानते हैं कि नींबू-मिर्च टांगने से बुरी नज़र से बचाव होता है, या किसी खास अंगूठी से किस्मत बदल जाती है?
हमारे आस-पास ऐसे ढेरों अंधविश्वास (superstitions) फैले हुए हैं – किसी के लिए ये सिर्फ मज़ाक हैं, तो किसी के लिए जीवन का अहम हिस्सा।

दरअसल, इंसान का दिमाग़ हमेशा सुरक्षा और नियंत्रण (safety & control) की तलाश करता है। जब हालात हमारे हाथ में नहीं होते, तो हम टोना-टोटका, lucky charm और नज़र बचाने वाले उपायों को थाम लेते हैं। यह परंपरा मात्र नहीं, बल्कि इसके पीछे गहरी मनोवैज्ञानिक वजहें छुपी हैं।

इस लेख में हम मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से समझेंगे कि अंधविश्वास आखिर मन में जन्म क्यों लेता है।

अंधविश्वास की परिभाषा

अंधविश्वास या Superstition वह विश्वास है जो बिना वैज्ञानिक प्रमाण या तर्क पर आधारित होता है, परंतु व्यक्ति या समाज उसे सत्य मान लेता है। उदाहरण के लिए— बिल्ली के रास्ता काटने पर काम रुक जाना, नींबू-मिर्च लटकाना, घर में झाड़ू लगाते समय शाम को न झाड़ना, विशेष दिनों पर बाल न कटवाना। ये मान्यताएँ मनुष्य को मानसिक सुरक्षा का भ्रम देती हैं, कि यदि ऐसा किया गया तो दुर्भाग्य टल जाएगा।

अंधविश्वासी विचार व्यक्ति की सोच को सीमित कर देते हैं। Exploration, curiosity और आत्मविकास रुक जाते हैं क्योंकि विश्वास किया जाता है कि जीवन की दिशा पहले से तय या बाहरी तत्वों के नियंत्रण में है।

कुछ अंधविश्वासी धारणाओं के कारण व्यक्ति जरूरी चिकित्सा या वैज्ञानिक उपचार अपनाने से चूक सकता है — जैसे, बीमारियों में झाड़-फूंक या टोटका करने के कारण उचित इलाज में देरी, जिससे स्थिति गंभीर हो सकती है।

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अंधविश्वास के मनोवैज्ञानिक कारण और प्रभाव

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से अंधविश्वास भावनात्मक सुरक्षा और नियंत्रण की जरूरत से उत्पन्न होता है। जब मनुष्य किसी चीज़ पर नियंत्रण नहीं रख पाता, तो वह “प्लेसबो” जैसी मानसिक क्रियाओं का सहारा लेता है।

1. अनिश्चितता का भय (Fear of Uncertainty):

जब व्यक्ति भविष्य के बारे में अनिश्चित महसूस करता है, तब दिमाग नियंत्रण पाने के लिए किसी विश्वास या रस्म पर भरोसा करता है।

जीवन अनिश्चितताओं से भरा है – हमें नहीं पता कल क्या होगा। यह uncertainty इंसान को बेचैन करती है। अंधविश्वास इंसान को एक सहारा देते हैं: “अगर मैंने पूजा की, तो सब ठीक होगा।” “अगर lucky ring पहनी, तो काम बिगड़ेगा नहीं।” यह सोच इंसान को मानसिक शांति देती है। चाहे नतीजे पर कोई असली असर न हो, लेकिन व्यक्ति को लगता है कि उसने कुछ करके अपने भविष्य को सुरक्षित बना लिया है।

डर अंधविश्वास की सबसे बड़ी जड़ है। हमें लगता है कि “अगर यह ritual नहीं किया तो कुछ बुरा हो जाएगा।” इस सोच के कारण हम उपाय के नाम पर rituals करने लगते हैं। उदाहरण: बच्चे को काला टीका लगाना ताकि बुरी नज़र न लगे। घर में नींबू-मिर्च लटकाना ताकि negativity न आए।

मनोविज्ञान कहता है कि ये सब anxiety-reduction techniques हैं। जब इंसान वो टोटके करता है, तो उसके अंदर आत्मविश्वास की भावना आती है।

2. कॉग्निटिव बायस (Cognitive Bias):

मानव दिमाग कारण और प्रभाव खोजने की प्रवृत्ति रखता है। यदि किसी विशेष कार्य के बाद अच्छा परिणाम मिला, तो हम उसे “शुभ संकेत” मान लेते हैं। यदि कुछ बुरा होता है तो उसे अपशगुन मान लेता है।

हमारा दिमाग़ घटनाओं को जोड़कर अर्थ बनाने में माहिर है। अगर कभी कोई घटना coincidence से सच हो जाए, तो हम मान लेते हैं कि इसका कारण टोटका या लकी चार्म था।

उदाहरण: पहली बार आप lucky ring पहनकर इंटरव्यू में गए और नौकरी मिल गई। अब आपका brain confirmation bias से convince हो गया कि नौकरी इस लकी रिंग की वजह से मिली। जबकि असल कारण आपकी मेहनत या skills थे।  इस तरह हम बार-बार वही अन्धविश्वास दोहराने लगते हैं।

3. सामाजिक सीख (Social Learning):

बचपन से हम आसपास के लोगों को समय समय पर अन्धविश्वास या टोना-टोटका करते देखते हैं, और वह आदत पीढ़ियों में उतर जाती है।

हम अंधविश्वासों के साथ पैदा नहीं होते, बल्कि इन्हें सीखते हैं। बचपन से ही घर और समाज में हमें ये बातें सिखाई जाती हैं।

उदाहरण: “रात को झाड़ू मत लगाओ, लक्ष्मी चली जाएगी।” “मंगलवार को बाल मत कटवाओ।” बच्चे इन्हें बार-बार सुनते हैं और subconsciously स्वीकार कर लेते हैं। बड़े होकर भी ये बातें उनके decision-making का हिस्सा बन जाती हैं। यही वजह है कि अंधविश्वास पीढ़ी दर पीढ़ी चलता है।

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4. लगातार भय और चिंता (Chronic Anxiety)

आम तौर पर अंधविश्वास व्यक्ति के मन में लगातार असमंजस और चिंता उत्पन्न करता है। लोग सोचने लगते हैं – “अगर टोना-टोटका न किया, तो कुछ बुरा हो सकता है।” यह चिंता धीमे-धीमे Generalized Anxiety Disorder जैसी समस्याओं में बदल सकती है, क्योंकि दिमाग कभी रिलैक्स नहीं हो पाता और हमेशा आने वाले संकट की कल्पना करता रहता है।

मनुष्य की सबसे बड़ी ज़रूरत है कि उसे लगे – “मेरी ज़िंदगी मेरे हाथ में है”। लेकिन जब जीवन अनिश्चित हो जाता है – जैसे नौकरी का इंटरव्यू, किसी प्रियजन की बीमारी, बिज़नेस में उतार-चढ़ाव – तब हम control खो देते हैं। ऐसे में अंधविश्वास हमें एक भ्रम देता है कि “अगर मैंने यह टोटका किया, तो नतीजा मेरे पक्ष में होगा।”
उदाहरण: खिलाड़ी lucky jersey पहनकर मैच खेलते हैं। छात्र lucky pen से ही परीक्षा देते हैं। यह भ्रम उन्हें शांत और confident बनाता है, जिससे performance सचमुच बेहतर हो जाती है।

5. निर्णय क्षमता में कमी (Poor Decision-Making)

अंधविश्वास से ग्रस्त व्यक्ति प्रायः तर्क के बजाय मिथक, टोटका या परामर्श से निर्णय लेने लगता है। इससे वो सही निर्णय लेने में असमर्थ हो जाता है। इससे उसकी Critical Thinking और Problem-Solving क्षमता कमजोर हो जाती है।
समस्या के वैज्ञानिक हल की ओर जाने के बजाय, झूठे उपायों या बाबाओं की तरफ झुकाव हो जाता है।

6. निर्भरता और आत्मबल की कमी (Dependency and Helplessness)

लंबे समय तक अंधविश्वासी व्यवहार व्यक्ति को “सीखने वाली असहायता” (Learned Helplessness) में डाल देता है। वह ऐसे टोटकों पर निर्भर होने लगता है।
जिससे उसका आत्मबल कम होता जाता है, क्योंकि वह मान लेता है कि उसके जीवन का नियंत्रण बाहरी शक्तियों या संदिग्ध विधियों के पास है। यह आत्मनिर्भरता और आत्म-नियंत्रण (self-efficacy) दोनों में कमजोर हो जाता है।

7. प्लेसबो इफेक्ट और झूठा आत्मविश्वास

Psychology में placebo effect का मतलब है – अगर आप strongly believe करते हैं कि कुछ काम करेगा, तो वो अक्सर सचमुच असर डालता है।अंधविश्वास कभी-कभी प्लेसबो (Placebo Effect) की तरह अस्थायी आत्मविश्वास देता है।
मान लीजिए, कोई खिलाड़ी “लकी चार्म” पहनता है — इससे उसका मनोबल बढ़ सकता है।
पर, यह आत्मविश्वास बाहरी कारण पर निर्भर होता है, आंतरिक योग्यता पर नहीं। परिणामस्वरूप, वह असली चुनौतियों का सामना करते हुए आसानी से टूट सकता है।

8. तनाव, अवसाद और मानसिक विकार

लगातार चिंता, अपराधबोध और अनिश्चितता के कारण अंधविश्वासी लोग chronic stress, depression, Obsessive Compulsive Disorder (OCD) जैसी समस्याओं का सामना कर सकते हैं।
कई अध्ययन बताते हैं कि अंधविश्वास और मानसिक तनाव के बीच सीधा संबंध पाया गया है, खासकर उन समाजों में जहां शिक्षा और मानसिक स्वास्थ्य पर जागरूकता कम है।

9. Coping Mechanism का दोषपूर्ण विकास

अंधविश्वास व्यक्ति के अंदर समस्या से जूझने का गलत पैटर्न विकसित कर देता है। जिससे उसके अंदर अनेक कमियां आ जाती हैं।
वह “Fight or Flight” के बजाय “Magical Solution” ढूंढने लगता है, जिससे सहनशक्ति और जीवन की चुनौतियों से निपटने के लिए व्यावहारिक और यथार्थवादी तरीके अपनाना संभव नहीं हो पाता।

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सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण

समाज में अंधविश्वास और टोन टोटके कई कारणों से आजतक टिके रहते हैं:

– सांस्कृतिक परंपरा: “ऐसा हमारे पूर्वज करते आए हैं” — यह वाक्य मनोविज्ञान से अधिक सामाजिक पहचान से जुड़ा होता है।
– समूह प्रभाव (Group Pressure): लोग डरते हैं कि यदि उन्होंने टोना-टोटका न किया तो बाकी समाज उन्हें गलत या अपशकुनी मान लेगा।
नेता या “गुरु” प्रभाव: समाज में कुछ लोग डर और आशा का बाज़ार चलाते हैं, जिससे उनकी आर्थिक या सामाजिक स्थिति मज़बूत होती है।
– अशिक्षा और विज्ञान की कमी: यह अंधविश्वास के बनाए रखने का सबसे बड़ा कारण है। प्रायः सुदूर के क्षेत्रों या कम शिक्षा वाले क्षेत्रों में आज भी बहुत ज्यादा अन्धविश्वास मौजूद है।

भारत में अंधविश्वास केवल ग्रामीण क्षेत्र तक सीमित नहीं। शहरी पढ़े-लिखे लोग भी “शुभ दिन”, “लकी रंग” या “वास्तु दोष” जैसी बातों पर विश्वास रखते हैं। हमारे बॉलीवुड, क्रिकेट और राजनीति में भी इन विश्वासों का असर दिखता है।

कोई अभिनेता हर बार एक ही ताबीज़ या कोई खास रंग पहनता है। कोई नेता यात्रा से पहले विशेष पूजन करवाता है। क्रिकेटर “लकी ग्लव्स” या लकी नंबर नहीं बदलता। ये सब मनोवैज्ञानिक सुरक्षा बटन जैसे हैं, जो व्यक्ति को नियंत्रण का भ्रम देते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि से कैसे तोड़ें अंधविश्वास का चक्र

अंधविश्वास का चक्र वैज्ञानिक दृष्टि से तोड़ना संभव है—इसके लिए तार्किक सोच, शिक्षा, अनुभवजन्य तथ्य और मनोवैज्ञानिक जागरूकता को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। यह “सोचने की पद्धति”—तार्किक, विश्लेषणात्मक और साक्ष्य आधारित दृष्टिकोण—से ही धीरे-धीरे खत्म होता है। इसके लिए व्यक्तिगत प्रयास के साथ-साथ सामाजिक स्तर पर भी प्रतिबद्धता जरूरी है।

आइए विस्तार से जानें कि यह कैसे किया जा सकता है:

1. वैज्ञानिक शिक्षा और तार्किक सोच

स्कूल और घर में बच्चों को छोटी उम्र से ही “क्यों”, “कैसे” और “क्या प्रमाण है?” जैसे सवाल पूछने की आदत डालें।
विज्ञान की पढ़ाई और तर्कशीलता का अभ्यास, झूठे कारण-परिणाम संबंधों (false cause-effect) की पहचान कराने में सहायक होता है।
पाठ्यक्रम में प्राकृतिक घटनाओं, संयोग, और मानसिक पूर्वाग्रहों (biases) को समझाने वाले प्रयोग शामिल किए जाएँ।

2. परंपराओं/कथनों का आलोचनात्मक विश्लेषण

किसी भी परंपरा या अंधविश्वास के पीछे के सामाजिक, ऐतिहासिक अथवा वैज्ञानिक संदर्भ की पड़ताल करें।
तथ्य, प्रमाण और आलोचनात्मक दृष्टि से इसकी समीक्षा करना ज़रूरी है, भले ही वह पीढ़ियों से चली आ रही मान्यता क्यों न हो।

Analytical thinking की ट्रेनिंग देने से अंधविश्वास में भारी कमी देखी गई है। किसी भी घटना को देखने का एक वैज्ञानिक मानक तरीका अपनाएँ—क्या यह घटना हमेशा इसी कारण होती है, या और भी अन्य कारक हैं?

3. साक्ष्य आधारित दृष्टिकोण (Evidence-Based Thinking)

किसी सूचना या विश्वास को तब तक स्वीकार न करें जब तक उसका कोई वैज्ञानिक प्रमाण या सत्यापन न हो।
वैज्ञानिक पद्धति (Observation–Hypothesis–Experiment–Conclusion) अपनाएँ।
उदाहरण: ग्रहण के समय बाहर न निकलना—इसके लिए प्रमाण ढूँढें कि वास्तव में कोई जैविक या स्वास्थ्य प्रभाव होता है या नहीं।

लोगों को प्रोत्साहित करें कि वे वैज्ञानिक दृष्टिकोण के पक्ष में खुली चर्चा करें, शोध पढ़ें, और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान स्वयं खोजें।
अध्यापकों, मनोवैज्ञानिकों और वैज्ञानिकों से संवाद करें ताकि सामाजिक मान्यताओं में सोच का स्तर बढ़ाया जा सके।

4. भय और चिंता का प्रबंधन

अंधविश्वास आमतौर पर भय या भविष्य के असमंजस से उत्पन्न होते हैं। भय की जड़ को पहचानें और तर्क के साथ उसे तोड़ें। खुद पर और अपनी क्षमता पर विश्वास करना सीखें।
विज्ञान द्वारा रचित समाधान और काउंसलिंग, मन में छिपे अनैतिक या भय आधारित विश्वासों को कम कर सकते हैं।

5. शिक्षा एवं जागरूकता

समाज के हर वर्ग, खास तौर पर अशिक्षित और कम पढ़े-लिखे वर्गों में वैज्ञानिक जागरूकता फैलाएँ।
उच्च शिक्षा स्तर वाले लोगों में अंधविश्वासी प्रवृत्तियाँ कम देखने को मिलती हैं।
जनजागरण अभियानों और सामाजिक उत्सवों में वैज्ञानिक सोच को स्थान दें। उनके कारणों को जानें और समझें।

6. सकारात्मक व्यवहार और स्वयं पर विश्वास

अंधविश्वास अक्सर आत्मविश्वास की कमी या अनिश्चितता में बढ़ते हैं। सकारात्मक सोच और स्वयं की क्षमताओं में विश्वास को प्रोत्साहित करें। खुद के विकास पर ध्यान दें और आगे बढ़ें।
छोटी-छोटी उपलब्धियों से आत्मबल बढ़ाएँ, जिससे झूठे विश्वासों की पकड़ कमजोर हो।

अंधविश्वास और आधुनिक मनोविज्ञान के बीच सेतु

मनोविज्ञान यह नहीं कहता कि आस्था बुरी है। आस्था आत्मबल देती है, जबकि अंधविश्वास भय से पैदा होता है। फर्क बस यही है:
आस्था सकारात्मक प्रेरणा है, अंधविश्वास प्रेरणा का भ्रम।

जब हम किसी आस्था से खुद को सशक्त महसूस करते हैं, तो वह मानसिक रूप से उपयोगी होती है। लेकिन जब वही आस्था भय, दोष या दूसरों के नियंत्रण का कारण बन जाए, तो वह अंधविश्वास बन जाती है।

अंधविश्वास पर अनुसंधान झलक

कई अध्ययन बताते हैं कि आर्थिक असुरक्षा, कम शिक्षा स्तर, और तनावग्रस्त जीवनशैली वाले लोग अंधविश्वासी व्यवहार ज़्यादा दिखाते हैं।
यह इसलिए क्योंकि उनका मन बाहरी नियंत्रण व्यवस्था (external locus of control) पर अधिक निर्भर होता है — यानी “मेरे जीवन में जो होता है, वह मेरे हाथ में नहीं, किसी बाहरी शक्ति में है।”

इसके विपरीत, जिन लोगों में आत्म-नियंत्रण की भावना (internal locus of control) प्रबल होती है, वे निर्णय अपने विवेक से लेते हैं और ऐसे विश्वासों से कम प्रभावित होते हैं।

निष्कर्ष

अन्धविश्वास सिर्फ परंपराओं का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि हमारे दिमाग की psychological जरूरत भी हैं।
लोग टोना-टोटका और lucky charm पर इसलिए विश्वास करते हैं क्योंकि ये उन्हें सुरक्षा, control और उम्मीद का एहसास कराते हैं।

लेकिन ज़रूरी है कि हम इन्हें blindly follow करने के बजाय संतुलित दृष्टिकोण अपनाएँ। थोड़ा विश्वास और थोड़ा तर्क – यही सही रास्ता है। अंधविश्वास कोई बाल-कथा नहीं, बल्कि मन का एक परिष्कृत यंत्र है — जो तब काम करता है जब मनुष्य भयभीत या असहाय महसूस करता है। टोना-टोटका पर विश्वास इसलिए पनपता है क्योंकि यह हमें “मानसिक नियंत्रण” का अनुभव देता है, भले ही वह काल्पनिक क्यों न हो।

मनोविज्ञान हमें बताता है कि समाधान बाहर नहीं, भीतर है — आत्म-जागरूकता, तर्कशील विचार और वैज्ञानिक दृष्टि से हम न केवल अंधविश्वास से मुक्त हो सकते हैं, बल्कि अधिक आत्मबल और मानसिक स्पष्टता के साथ जी सकते हैं।

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