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भावनाएँ दबाने से हो सकती हैं अनेक गंभीर बीमारियाँ

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भावनाएँ दबाने से हो सकती हैं अनेक गंभीर बीमारियाँ

Emotional Suppression

आज के दौर में हर व्यक्ति किसी न किसी तरह की मानसिक चुनौतियों से गुजर रहा है। हम अपने रिश्तों, ऑफिस, समाज या परिवार में यह मान लेते हैं कि भावनाएँ प्रकट करना कमजोरी है। सोचते हैं कि मजबूत बने रहना है, या परेशानियों से निपटना अकेले सीखना है।

इसलिए कई लोग अपने गुस्से, दुख, डर, तनाव या चिंता को दबाकर रखते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यही आदत आपके शरीर में गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है?

भावनाओं को दबाना सिर्फ मानसिक परेशानी नहीं बल्कि शरीर में कई तरह की शारीरिक समस्याओं को जन्म देता है। इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि भावनाओं को दबाने से शरीर में कौन-कौन सी समस्याएँ जन्म लेती हैं और इन्हें रोकने के लिए क्या कदम उठाए जा सकते हैं।

भावनाएँ दबाने का मतलब क्या है?

जब हम अपने मन की भावनाओं को स्वीकार नहीं करते, उन्हें बाहर व्यक्त नहीं करते, तो वे अंदर जमा हो जाती हैं। मनोविज्ञान में इसे Emotional Suppression कहा जाता है। ऐसा करने से व्यक्ति खुद को असहाय, अकेला और अंदर से खाली महसूस कर सकता है। लंबे समय तक यह आदत तनाव का रूप ले लेती है, जिससे शरीर पर नकारात्मक असर पड़ता है।

भावनाएँ दबाने का मतलब है अपनी सच्ची भावनाओं को जानबूझकर या अनजाने में छिपाना, उनसे बचना या उन्हें अंदर ही अंदर दबा देना। ऐसा अक्सर इसलिए किया जाता है क्योंकि भावनाएँ असहज, अप्रिय, या सामाजिक रूप से अस्वीकार्य लग सकती हैं।

क्यों दबाते हैं लोग अपनी भावनाएँ?

  • समाज में “मजबूत” दिखने का दबाव
  • बचपन से “रोना मत”, “कमजोर मत बनो” जैसे संदेश
  • रिश्तों में अस्वीकार किए जाने का डर
  • असफलता या शर्मिंदगी से बचना
  • खुद को दूसरों के सामने छोटा न दिखाना

इन कारणों से व्यक्ति अपनी भावनाओं को छिपाकर रखता है, लेकिन ये भीतर ही भीतर रोगों का कारण बनती जाती हैं।

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भावनाएँ दबाने से कौन-कौन सी बीमारियाँ हो सकती हैं

जब हम अपने मन की बात, दुःख, डर, गुस्सा या चिंता को भीतर ही भीतर दबाकर रखते हैं, तो यह सिर्फ मानसिक परेशानी तक सीमित नहीं रहती। लंबे समय तक दबे हुए तनाव और भावनाएँ शरीर में कई तरह की बीमारियों का रूप ले सकती हैं। नीचे हर बीमारी को विस्तार से समझते हैं:

1. हाई ब्लड प्रेशर (Hypertension)

जब मन लगातार तनाव में रहता है, तो शरीर में स्ट्रेस हार्मोन जैसे कॉर्टिसोल और एड्रेनालिन बढ़ जाते हैं। ये हार्मोन रक्त नलियों को संकुचित कर देते हैं, जिससे ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। बार-बार यह स्थिति बनती है तो यह स्थायी रोग बन सकता है।

शारीरिक असर: धमनियों में कठोरता, दिल पर अधिक दबाव, स्ट्रोक और हार्ट अटैक का खतरा

मानसिक संबंध: जो लोग अपने गुस्से या तनाव को दबाते हैं, वे अक्सर खुद को शांत दिखाते हैं लेकिन अंदर ही अंदर बेचैन रहते हैं। इस स्थिति से शरीर लगातार अलर्ट मोड में रहता है। जैसे : ऑफिस में अपमान झेलकर चुप रह जाने वाले व्यक्ति में यह समस्या धीरे-धीरे बढ़ सकती है।

2. पाचन तंत्र की समस्याएँ (IBS, अल्सर, गैस्ट्राइटिस)

तनाव की स्थिति में शरीर ‘फाइट ऑर फ्लाइट’ मोड में चला जाता है। इस दौरान पेट में अम्ल बढ़ता है और पाचन प्रक्रिया प्रभावित होती है। इसके कारण पेट में जलन, कब्ज, डायरिया, गैस, अल्सर जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

शारीरिक असर: भूख कम लगना, पेट में ऐंठन, पेटदर्द और जलन

मानसिक संबंध: चिंता और डर से पेट की कार्यप्रणाली सीधे प्रभावित होती है। जो लोग अपनी परेशानी किसी से साझा नहीं करते, वे बार-बार पेट दर्द जैसी समस्याओं का अनुभव करते हैं। जैसे: घरेलू जिम्मेदारियों में उलझी महिला जो अपनी परेशानियों को किसी से साझा नहीं करती, उसमें यह समस्या आम हो सकती है।

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3. सिरदर्द और माइग्रेन

तनाव से शरीर की मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है, खासकर सिर, गर्दन और कंधों में। बार-बार यह तनाव सिरदर्द का कारण बनता है। कुछ लोगों में माइग्रेन जैसी समस्या भी विकसित हो जाती है।

शारीरिक असर: तेज दर्द, रोशनी या आवाज़ से असहजता, थकान और चिड़चिड़ापन

मानसिक संबंध: भावनाओं को दबाकर रखने से मन की बेचैनी सिर में दर्द के रूप में उभरती है। व्यक्ति इसे शारीरिक समस्या समझता है जबकि इसकी जड़ मानसिक तनाव होती है। जैसे: जो लोग अपने दुख या असफलताओं को छिपाकर रखते हैं, उनमें यह समस्या बढ़ती है।

 4. त्वचा की समस्याएँ (एक्जिमा, सोरायसिस, एलर्जी)

तनाव बढ़ने पर शरीर में सूजन बढ़ती है और इम्यून सिस्टम असंतुलित हो जाता है। इससे त्वचा पर खुजली, लाल चकत्ते, दाने और एलर्जी जैसी समस्याएँ होने लगती हैं।

शारीरिक असर: त्वचा का रूखापन, लाल चकत्ते, खुजली और जलन

मानसिक संबंध: भावनाओं का दमन शरीर की प्राकृतिक प्रतिक्रिया को बाधित करता है, जिससे त्वचा की समस्याएँ बढ़ सकती हैं। जैसे : बार-बार चिंता और तनाव में रहने वाले व्यक्ति में सोरायसिस जैसी समस्याएँ बढ़ सकती हैं।

 5. हार्ट डिजीज का खतरा

लंबे समय तक मानसिक तनाव और दबे हुए गुस्से से हृदय पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है। यह स्थिति हार्ट अटैक या हार्ट फेलियर जैसी गंभीर समस्याओं का खतरा बढ़ाती है।

शारीरिक असर: धड़कन तेज होना, सीने में दर्द, थकावट

मानसिक संबंध: भावनाओं को दबाने से मानसिक असंतुलन बढ़ता है, जिससे हार्ट की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। जैसे: रिश्तों में तनाव झेल रहे लोग इसका शिकार हो सकते हैं।

 6. नींद की समस्या (इंसोम्निया)

जब मन लगातार चिंता, तनाव और असहज विचारों से भरा रहता है तो यह आराम नहीं कर पाता। परिणामस्वरूप नींद न आना, बार-बार जागना, बेचैनी महसूस होना जैसी समस्याएँ शुरू हो जाती हैं।

शारीरिक असर: थकावट, चिड़चिड़ापन, मानसिक ध्यान की कमी

मानसिक संबंध: भावनाओं को दबाकर रखने से मन खुद को आराम देने में असमर्थ हो जाता है। जैसे: जो लोग ऑफिस या रिश्तों की परेशानियों को भीतर ही रखते हैं, उन्हें रात में नींद नहीं आती।

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 7. इम्यून सिस्टम कमजोर होना

तनाव से शरीर में सूजन बढ़ती है और इम्यून कोशिकाओं की कार्यक्षमता घटती है। इससे शरीर आसानी से बीमारियों की चपेट में आ जाता है।

शारीरिक असर: बार-बार सर्दी-जुकाम, संक्रमण का खतरा, थकावट

मानसिक संबंध: भावनाओं को व्यक्त न करने वाले लोग खुद को लगातार मानसिक तनाव में रखते हैं, जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। जैसे: जो व्यक्ति हर बात खुद पर लेकर परेशान रहता है, उसका शरीर जल्दी थक जाता है।

 8. वजन बढ़ना या घट जाना

भावनाएँ दबाकर रखने से शरीर में हार्मोन असंतुलन होता है। कुछ लोग तनाव में अधिक खाना शुरू कर देते हैं जबकि कुछ लोगों की भूख ही चली जाती है। दोनों ही स्थितियाँ शरीर पर बुरा प्रभाव डालती हैं।

शारीरिक असर: मोटापा या अत्यधिक पतलापन, ऊर्जा की कमी, आत्मविश्वास में गिरावट

मानसिक संबंध: मन की असंतुष्टि को भोजन से भरने की कोशिश या तनाव के कारण भूख खो देना आम प्रतिक्रियाएँ हैं। जैसे: तनाव के समय कुछ लोग लगातार जंक फूड खाते रहते हैं, जबकि कुछ का वजन तेजी से घट जाता है।

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 9. मांसपेशियों में जकड़न और थकान

तनाव की वजह से मांसपेशियों में लगातार खिंचाव रहता है। लंबे समय तक यह स्थिति बने रहने से पूरे शरीर में दर्द और कमजोरी महसूस होती है।

शारीरिक असर: कंधों, पीठ और पैरों में जकड़न, शरीर में दर्द और कमजोरी, काम करने में आलस

मानसिक संबंध: जो लोग अपनी भावनाओं को अंदर रखते हैं, वे शरीर के तनाव को महसूस करते हैं लेकिन उसका कारण नहीं समझते।जैसे : भावनात्मक बोझ उठाने वाले लोगों में यह समस्या आम होती है।

 10. मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव (डिप्रेशन, चिंता, घबराहट)

भावनाओं को दबाकर रखने से मन असंतुलित होता है। धीरे-धीरे चिंता, डिप्रेशन, आत्मग्लानि जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं। व्यक्ति खुद को अकेला और असहाय महसूस करता है।

शारीरिक असर: ऊर्जा में कमी, आत्महत्या जैसे विचार, ध्यान केंद्रित करने में परेशानी

मानसिक संबंध: भावनाओं का अभिव्यक्त न होना मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे बड़ा खतरा है। जैसे : जो व्यक्ति अपने गहरे दुख को किसी से साझा नहीं करता, वह धीरे-धीरे मानसिक रूप से टूट सकता है।

 भावनाओं को स्वस्थ तरीके से व्यक्त कैसे करें?

शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करना बेहद जरुरी है। कुछ निम्न तरीके मददगार हो सकते हैं-

जर्नलिंग करें – रोज अपने मन की बात लिखें। यह भावनाओं को बाहर निकालने का सबसे सरल तरीका है।
ध्यान और प्राणायाम करें – गहरी साँसों से मन शांत होता है। प्रतिदिन 15 -30 मिनट ध्यान करें।
किसी विश्वसनीय व्यक्ति से बात करें – मित्र, परिवार या काउंसलर से मन की बातें साझा करें।
शारीरिक व्यायाम करें – चलना, योग, स्ट्रेचिंग से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं।
आर्ट, संगीत, डांस का सहारा लें – रचनात्मक गतिविधियाँ भावनाओं को सहज रूप से बाहर आने देती हैं।
स्वीकार करें कि भावनाएँ स्वाभाविक हैं – गुस्सा, डर, दुख होना कमजोरी नहीं है, बल्कि मनुष्य होने का हिस्सा है।

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 वैज्ञानिक आधार क्या कहता है?

कई शोधों में पाया गया है कि जो लोग अपनी भावनाओं को दबाते हैं, उनमें कॉर्टिसोल (तनाव हार्मोन) का स्तर अधिक होता है। इससे दिल की बीमारी, मधुमेह, इम्यून कमजोरी जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है। मन और शरीर का संबंध हार्डwired है — यानी मानसिक स्थिति सीधे शरीर की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है।

 *Gross & Levenson (1997) – के शोध में पाया गया कि जो लोग अपनी भावनाओं, खासकर नकारात्मक भावनाओं को दबाते हैं, उनमें हाई ब्लड प्रेशर, तनाव और हार्ट रेट बढ़ने की समस्या अधिक देखी गई। यह भी पाया गया कि भावनाएँ दबाने से सामाजिक संपर्क घटते हैं, जिससे अकेलापन और मानसिक अवसाद बढ़ता है।

https://psycnet.apa.org/record/1997-02518-009

*मनोविज्ञानी जेम्स पेननेबेकर ने दिखाया कि जो लोग अपने मन की बात, दुःख, डर और चिंता को लिखते हैं, उनकी इम्यून सिस्टम बेहतर होती है और वे बीमारी से जल्दी उबरते हैं।

https://www.researchgate.net/publication/253937612_Expressive_Writing_Emotional_Upheavals_and_Health

*शोधकर्ता रॉबर्ट सैपोल्स्की ने बताया कि लगातार मानसिक तनाव और भावनाओं को दबाने से कॉर्टिसोल नामक तनाव हार्मोन का स्तर बढ़ता है, जिससे इम्यून सिस्टम कमजोर होता है और हृदय रोग, मधुमेह, मोटापा, नींद की समस्या जैसी बीमारियाँ होती हैं।

 *Cohen et al. (1998) – कहते हैं कि तनाव की स्थिति में शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वायरल संक्रमण, फ्लू और अन्य बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है। जो लोग मानसिक रूप से परेशान होते हैं लेकिन अपनी भावनाओं को व्यक्त नहीं करते, उनमें यह खतरा ज़्यादा पाया गया

*अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन (APA) की रिपोर्ट के अनुसार भावनाओं को दबाने से मानसिक तनाव बढ़ता है और इसका सीधा असर शरीर पर पड़ता है। इससे सिरदर्द, पेट दर्द, नींद की समस्या, थकान, त्वचा रोग जैसी शारीरिक समस्याएँ भी विकसित हो सकती हैं।

निष्कर्ष

भावनाएँ दबाना एक सामान्य आदत लग सकती है, लेकिन लंबे समय में यह मानसिक और शारीरिक दोनों स्वास्थ्य के लिए गंभीर समस्या बन जाती है। अपने मन की बात कहना, मदद माँगना और स्वयं को स्वीकार करना स्वस्थ जीवन की दिशा में पहला कदम है। भावनाओं को बाहर लाना कमजोरी नहीं बल्कि आत्म-संरक्षण है। मन को स्वस्थ रखना शरीर को भी स्वस्थ रखता है।

भावनाओं को दबाना केवल एक मानसिक आदत नहीं है, बल्कि यह शरीर में कई गंभीर रोगों का कारण बन सकती है। हाई ब्लड प्रेशर से लेकर नींद की समस्या, पाचन विकार, त्वचा रोग, हार्ट डिजीज और इम्यून कमजोरी तक—हर बीमारी के पीछे मन की असंतुलित स्थिति जिम्मेदार हो सकती है। इसलिए जरूरी है कि हम अपनी भावनाओं को पहचानें, स्वीकार करें और स्वस्थ तरीके से व्यक्त करें।

-भावनाएँ कमजोरी नहीं, स्वास्थ्य का आधार हैं।
-मन को संतुलित रखकर ही शरीर को स्वस्थ रखा जा सकता है।
-सहायता लेना और संवाद करना आत्मबल को बढ़ाता है।

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