राहुल (19), बीकॉम का छात्र, शुरू से टॉपर रहा था। लेकिन जब वह शहर से दूर एक नए कॉलेज में आया, तो वहाँ का प्रतिस्पर्धी माहौल, अकेलापन और पढ़ाई का दबाव उसे धीरे-धीरे तोड़ने लगा। वह नींद नहीं ले पाता था, लोगों से घुल-मिल नहीं पा रहा था और धीरे धीरे वह खुद को नाकाम समझने लगा। उसके शौक, दोस्ती और पढ़ाई — सब कुछ छूटता गया।
एक प्रोफेसर ने उसकी स्थिति पहचानी और उसे कॉलेज काउंसलर से मिलवाया। राहुल ने थेरेपी ली, और छोटे-छोटे बदलावों से वह अब बेहतर महसूस करता है।
ऐसी अनगिनत कहानियां हमारे इर्द – गिर्द सुनाई पड़ती रहती हैं लेकिन हम उसके कारणों पर गौर नहीं करते। हम ये देखने या समझने की कोशिश नहीं करते की हमारे समाज में आज युवा से लेकर बुजुर्ग तक बड़ी तादाद में डिप्रेशन की चपेट में आ रहे हैं। ये अब विशेष से एक सामान्य बिमारी बनती जा रही है जो बहुत चिंता का विषय है।
> अवसाद केवल कमजोरी नहीं, यह दबा हुआ संघर्ष है जिसे समझ और मदद से हराया जा सकता है।”
डिप्रेशन क्या होता है?
डिप्रेशन एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है जिसमें व्यक्ति निरंतर उदासी, थकान, और जीवन में रुचि की कमी अनुभव करता है। यह केवल एक दुखद मूड नहीं, बल्कि एक गंभीर मनोवैज्ञानिक स्थिति है जो सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने के तरीके को प्रभावित करती है। समय पर इलाज न मिलने पर यह व्यक्ति के व्यक्तिगत और पेशेवर जीवन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है।
इस बीमारी को हिंदी में ‘अवसाद’ कहा जाता है, यह सामान्य उदासी या तनाव से कहीं ज्यादा गहरा और लंबा चलता है, और व्यक्ति की सोच, भावनाओं, व्यवहार और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।
डिप्रेशन के प्रकार-
1. मेजर डिप्रेशन (Major Depression)
यह सबसे आम और गंभीर प्रकार है। इसमें व्यक्ति लगातार कई हफ्तों तक गहरी उदासी, निराशा, किसी भी काम में रुचि की कमी, ऊर्जा की कमी, और आत्महत्या के विचार महसूस कर सकता है। यह आपके जीवन में दिन-प्रतिदिन के कामकाज और जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
उदाहरण: कोई व्यक्ति अचानक ही हर चीज़ में रुचि खो देता है, रोज़मर्रा के काम करने का मन नहीं करता, और हमेशा थका-थका महसूस करता है। वो अपना जीवन समाप्त करने की कोशिश भी करता है।
2. पर्सिस्टेंट डिप्रेसिव डिसऑर्डर (Persistent Depressive Disorder / Dysthymia)
यह डिप्रेशन लंबे समय (कम से कम दो साल) तक रहता है, लेकिन इसके लक्षण मेजर डिप्रेशन से हल्के होते हैं। यह किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकता है. लेकिन ऐसा देखा गया है कि यह महिलाओं में पुरुषों की तुलना में अधिक आम है। सामान्य से अधिक चिड़चिड़ापन या गुस्सा, खुद को अयोग्य या बेकार मानना, दिन के अधिकांश समय तक उदास या उदास रहना।
उदाहरण: कोई व्यक्ति कई सालों से खुद को हमेशा उदास, निराश, और कम आत्मविश्वास वाला महसूस करता है, लेकिन वह अपने काम-काज करता रहता है। बस एक निराशा उसके साथ बनी रहती है।
3. बाइपोलर डिसऑर्डर (Bipolar Disorder)
इसमें व्यक्ति के मूड में अत्यधिक उतार-चढ़ाव आते हैं—कभी बहुत खुश (मैनिक फेज) तो कभी बहुत उदास (डिप्रेसिव फेज)।
बाइपोलर डिसऑर्डर के सटीक कारण अभी तक पूरी तरह से ज्ञात नहीं हैं, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों से उत्पन्न होता है।
उदाहरण: कोई व्यक्ति कुछ दिनों तक बहुत उत्साहित और ऊर्जावान रहता है, फिर अचानक ही गहरे डिप्रेशन में चला जाता है। इसमें उसका व्यवहार अनिश्चित रहता है वो कब क्या करेगा इसका पता नहीं चलता।
4. सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (Seasonal Affective Disorder – SAD)
यह डिप्रेशन खासकर मौसम बदलने में होता है। यह आमतौर पर सर्दियों में शुरू होता है और वसंत में खत्म हो जाता है. यह अवसाद की एक खास तरह की स्थिति है जो लोगों को साल के कुछ खास मौसमों में परेशान करती है, खासकर जब दिन छोटे और धूप कम होती है।
सूर्य के प्रकाश में कमी शरीर की आंतरिक घड़ी को प्रभावित कर सकती है, जिससे मेलाटोनिन नामक हार्मोन का उत्पादन बढ़ सकता है, जो नींद और मूड को प्रभावित करता है. इसके अतिरिक्त, कम धूप शरीर में विटामिन डी के स्तर को भी कम कर सकती है, जो अवसाद के लक्षणों को बढ़ा सकती है।
उदाहरण: जैसे ही सर्दियाँ आती हैं, व्यक्ति उदास रहने लगता है, ऊर्जा कम हो जाती है, और नींद ज्यादा आती है।
5. साइकोटिक डिप्रेशन (Psychotic Depression)
इसमें डिप्रेशन के साथ भ्रम (delusions) या मतिभ्रम (hallucinations) भी होते हैं। इसमें दो बीमारियों के लक्षण एक साथ दिखते हैं।
साइकोटिक डिप्रेशन के कारणों में आनुवंशिकी, दिमाग में केमिकल्स का असंतुलन, और जीवन में होने वाले तनावपूर्ण अनुभव शामिल होते हैं, उदाहरण: कोई व्यक्ति डिप्रेशन के साथ-साथ यह भी महसूस करता है कि लोग उसके खिलाफ साजिश कर रहे हैं या उसे आवाजें सुनाई देती हैं।
6. पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Postpartum Depression)
यह डिप्रेशन बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं में होता है। यह उदासी, चिंता और थकान की तीव्र भावनाएँ होती हैं जो बच्चे के जन्म के बाद लंबे समय तक बनी रहती हैं । यह माँ और बच्चे दोनों के लिए खतरनाक हो सकता है। बच्चे के जन्म के बाद शरीर में होने वाले हार्मोनल बदलाव के करम ऐसा होता है।
उदाहरण: डिलीवरी के बाद मां को लगातार उदासी, खुशी महसूस न करना, चिड़चिड़ापन, और बच्चे के प्रति दूरी महसूस होती है।
7. डिसरप्टिव मूड डिसरेगुलेशन डिसऑर्डर (Disruptive Mood Dysregulation Disorder)
एक मानसिक स्वास्थ्य स्थिति है जिसमें बच्चे और किशोर लगातार चिड़चिड़ापन, गुस्सा और तीव्र गुस्से के दौरे का अनुभव करते हैं। यह विकार उनकी दैनिक गतिविधियों, घर, स्कूल और दोस्तों के साथ संबंधों को बाधित करता है। जिसमें वे अक्सर चिड़चिड़े रहते हैं और बार-बार गुस्से में चिल्लाते हैं।
उदाहरण: 8 साल का बच्चा छोटी-छोटी बातों पर बहुत गुस्सा करता है और सामान्य से ज्यादा चिड़चिड़ा रहता है।
8. सिचुएशनल डिप्रेशन (Situational Depression)
जब कोई इंसान अपने जीवन में किसी दुखद या कठिन घटना (जैसे किसी करीबी की मौत, नौकरी छूट जाना, ब्रेकअप, परीक्षा में असफलता, या किसी बड़ी चिंता) के बाद बहुत ज़्यादा उदास, परेशान या थका-थका महसूस करता है, तो उसे सिचुएशनल डिप्रेशन कहते हैं।
यह एक अस्थायी (कुछ समय का) अवसाद होता है, जो उस खास स्थिति या घटना की वजह से होता है। इसे “एडजस्टमेंट डिसऑर्डर विद डिप्रेसिव मूड” भी कहा जाता है, यानी जब किसी नई या मुश्किल स्थिति से तालमेल बिठा पाना कठिन हो जाता है। इसका असर कुछ हफ्तों से लेकर महीनों तक हो सकता है।
उदाहरण: किसी प्रियजन के खोने के बाद व्यक्ति कुछ महीनों तक गहरे दुख और निराशा में चला जाता है।
https://my.clevelandclinic.org/health/diseases/9290-depression
डिप्रेशन के आम लक्षण:
1. लगातार उदासी या खालीपन महसूस करना
2. पहले जिन चीज़ों में आनंद आता था, उनमें रुचि खत्म हो जाना
3. नींद की समस्या – नींद न आना या अत्यधिक नींद आना
4. थकान और ऊर्जा की कमी
5. आत्मग्लानि या निराशा की भावना
6. चिड़चिड़ापन या गुस्सा आना
7. ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई
8. भूख में कमी या अचानक ज्यादा खाना
9. खुद को नुकसान पहुंचाने या आत्महत्या के विचार आना
डिप्रेशन के कारण (Causes of Depression)
डिप्रेशन के कई कारण हो सकते हैं, जो आमतौर पर एक साथ मिलकर असर डालते हैं। इन्हें सरल शब्दों में समझें:
– मस्तिष्क के रसायनों का असंतुलन: हमारे दिमाग में कुछ रसायन (जैसे सेरोटोनिन, डोपामाइन) मूड को नियंत्रित करते हैं। जब इनका संतुलन बिगड़ जाता है, तो डिप्रेशन हो सकता है।
– आनुवांशिकता: अगर परिवार में किसी को डिप्रेशन रहा है, तो दूसरे सदस्यों में भी इसका खतरा बढ़ जाता है।
– तनावपूर्ण जीवन घटनाएँ: किसी अपने का खोना, तलाक, नौकरी छूटना, आर्थिक समस्या, या गंभीर बीमारी जैसी घटनाएँ डिप्रेशन को ट्रिगर कर सकती हैं।
– शारीरिक बीमारियाँ: थायराइड, मधुमेह, हार्मोनल बदलाव, या पुरानी बीमारियाँ भी डिप्रेशन का कारण बन सकती हैं।
– दवाएँ और नशा: कुछ दवाओं के साइड इफेक्ट या शराब/नशे का सेवन डिप्रेशन बढ़ा सकता है।
– पर्यावरण और समाज: लगातार नकारात्मक माहौल, अकेलापन, सामाजिक अलगाव, या समाज का दबाव भी व्यक्ति को डिप्रेशन की ओर ले जा सकता है।
– नींद और पोषण की कमी: पर्याप्त नींद न मिलना या कुपोषण भी डिप्रेशन को जन्म दे सकता है।
इन कारणों में से कोई एक या कई मिलकर डिप्रेशन की स्थिति बना सकते हैं। हर व्यक्ति में कारण अलग-अलग हो सकते हैं।
https://www.mayoclinic.org/diseases-conditions/depression/symptoms-causes/syc-20356007
डिप्रेशन का इलाज:
1. काउंसलिंग (थेरेपी):
डिप्रेशन के इलाज में काउंसलिंग बहुत असरदार तरीका है। इसमें एक प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक या थैरेपिस्ट आपकी बातों को ध्यान से सुनता है, आपकी भावनाओं को समझता है, और आपको सही दिशा दिखाता है।
A. Cognitive Behavioral Therapy (CBT):
(कोग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी)
यह थेरेपी सोचने और व्यवहार करने के तरीके को बदलने पर काम करती है।
डिप्रेशन में अक्सर हम नकारात्मक (नेगेटिव) सोचने लगते हैं, जैसे “मैं कुछ नहीं कर सकता”, “मेरे साथ सब गलत होता है” आदि।
CBT में थैरेपिस्ट आपको यह समझने में मदद करता है कि ये नकारात्मक सोचें कैसे बनती हैं, और उन्हें कैसे सकारात्मक सोच में बदला जाए।
इससे धीरे-धीरे आत्मविश्वास और मन का संतुलन वापस आने लगता है।
B. Talk Therapy (बातचीत आधारित थेरेपी):
इसमें आप एक प्रशिक्षित थैरेपिस्ट से खुलकर अपनी भावनाएं, समस्याएं और विचार साझा करते हैं।
यह थेरेपी आपकी भीतर की भावनाओं को बाहर लाने, तनाव कम करने और समस्याओं का हल ढूंढने में मदद करती है।
कई बार हम अपने दोस्तों या परिवार से वो बातें नहीं कर पाते जो हमें परेशान कर रही होती हैं — ऐसे में यह थेरेपी एक सुरक्षित और समझदार माहौल देती है।
2. लाइफस्टाइल बदलाव:
- योग और ध्यान (Meditation) – मानसिक शांति के लिए
- नियमित व्यायाम – शरीर और दिमाग दोनों को सक्रिय बनाता है
- नींद का ध्यान रखें – रोज़ 7–8 घंटे की पर्याप्त नींद
- स्वस्थ खानपान – पौष्टिक और संतुलित भोजन करना
- सोशल सपोर्ट – दोस्तों और परिवार से बात करना, साथ समय बिताना
3. हेल्पलाइन और प्रोफेशनल मदद:
- भारत में कई मानसिक स्वास्थ्य हेल्पलाइन उपलब्ध हैं जैसे:
- iCall – 9152987821
- AASRA – 91-9820466726
- Fortis Mental Health Helpline – 08376804102
डॉक्टर के पास कब जाएँ
- जब लक्षण दो सप्ताह से अधिक समय तक बने रहें
- रोज़मर्रा के काम करने में कठिनाई होने लगे
- जब आत्महत्या या खुद को नुकसान पहुँचाने के विचार आने लगें
- अकेले प्रयास करने के बाद भी स्थिति में सुधार न हो तब
अवसाद से बचने के टिप्स
– समय पर विशेषज्ञ से सलाह लें: अवसाद का इलाज संभव है, इसलिए मनोचिकित्सक या काउंसलर से मिलें।
– सकारात्मक दिनचर्या बनाएं: रोजाना व्यायाम, पर्याप्त नींद और संतुलित आहार लें।
– मित्रों और परिवार से बात करें: अकेले न रहें, अपनी भावनाएँ साझा करें, लोगों से मिलें।
– छोटे लक्ष्य बनाएं: एक बार में एक काम पर ध्यान दें। बहुत चीजों में दिमाग ना भटकायें।
– नकारात्मक सोच से बचें: सकारात्मक सोच विकसित करें।
– मेडिटेशन और योग: मानसिक शांति के लिए ध्यान और योग करें।
– जरूरत हो तो दवा लें: समस्या बनी रहने पर डॉक्टर की सलाह पर दवाएं लें।
डिप्रेशन के बारे में मिथक
- – अवसाद पागलपन नहीं है, यह एक आम मानसिक बीमारी है।
- – डिप्रेशन केवल कमजोर लोगों को ही नहीं, किसी को भी हो सकता है।
- – डिप्रेशन का इलाज संभव है, सही समय पर मदद लें।
निष्कर्ष:
डिप्रेशन एक गंभीर लेकिन पूरी तरह ठीक होने वाली मानसिक स्थिति है। इसके बारे में जागरूक रहना, समय पर पहचानना और सही इलाज कराना बहुत जरूरी है। अगर आप या आपके आसपास कोई भी डिप्रेशन से जूझ रहा है, तो उसे समझें, साथ दें और पेशेवर मदद लेने के लिए प्रेरित करें। याद रखें, डिप्रेशन से बाहर निकलना संभव है और जीवन फिर से खुशहाल हो सकता है।
डिप्रेशन कोई कमजोरी नहीं बल्कि एक इलाज़ योग्य बीमारी है। जितना जल्दी इसे समझकर इलाज शुरू किया जाए, उतनी ही जल्दी सुधार संभव है। खुद को समय दें, मदद मांगें और याद रखें – अंधेरे के बाद उजाला जरूर आता है।
महत्वपूर्ण: यह लेख केवल जानकारी के उद्देश्य से है। किसी भी मानसिक समस्या के लिए कृपया प्रमाणित डॉक्टर या मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ से संपर्क करें।
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