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कभी आपने सोचा? हर आदमी में होते हैं, दस-बीस आदमी

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Multiple selves theory

हर आदमी में होते हैं, दस बीस आदमी

जिस को भी देखना हो, कई बार देखना

क्या आपने कभी सोचा है कि: एक ही परिस्थिति में कभी आप शांत रहते हैं, तो कभी भड़क जाते हैं ? कभी खुद पर गर्व होता है, तो कभी शर्म ? कभी आप भीड़ में खुलते हैं, तो कभी अकेले में ?

तो आप अकेले ऐसे नहीं हैं।
हर इंसान के भीतर कई “छोटे-छोटे मैं” (mini-selves) होते हैं – जो समय, भावना और परिस्थिति के अनुसार उभरते हैं। इसे ही Multiple Selves Theory कहते हैं – यानी हमारे अंदर एक नहीं, बल्कि कई version होते हैं, जो हमारे जीवन को अलग-अलग रूप में जीते हैं।

बहु-स्व सिद्धांत (Multiple Selves Theory) को सरल भाषा में समझें, तो यह कहता है कि हमारे अंदर एक ही “मैं” (स्वयं) नहीं होता, बल्कि कई अलग-अलग “मैं” होते हैं जो अलग-अलग जगह और लोगों के साथ अलग तरह से दिखते हैं

Multiple Selves Theory क्या है?

हम सभी अपने आप को एक स्थिर, एकल इकाई के रूप में देखना पसंद करते हैं—जिसका नाम है, जिसकी पहचान है, और जो हर जगह एक जैसा ही रहता है। लेकिन क्या वाकई हमारे अंदर सिर्फ एक ही “आप” है? यह सवाल मनोविज्ञान की दुनिया में काफी शोध और चर्चा का विषय रहा है।

Multiple selves theory कहती है कि हर इंसान की एक स्थायी “self-identity” नहीं होती। बल्कि हर व्यक्ति के अंदर कई “selves” होते हैं, जैसे:

  • Work Self – ऑफिस में परफेक्शनिस्ट
  • Home Self – परिवार के साथ जिम्मेदार और शांत
  • Inner Child – जो अब भी validation चाहता है
  • Wounded Self – जो पुरानी बातों से आहत है
  • Ideal Self – जैसा आप बनना चाहते हैं

ये सभी “selves” मिलकर ही आपकी सोच, व्यवहार और निर्णयों को प्रभावित करते हैं। Multiple Selves Theory को समझने के लिए एक सरल कल्पना कीजिए:
क्या आपने कभी ऐसा महसूस किया है कि एक ही समय पर आपके अंदर दो अलग-अलग सोच चल रही हैं?
जैसे –“मुझे डाइट पर रहना चाहिए…” और साथ ही – “बस आज आइसक्रीम खा लेता हूँ!” यही है Multiple Selves Theory का आधार।

 ये “Multiple Selves” कौन होते हैं?

हर इंसान के अंदर अलग-अलग भूमिकाएं होती हैं – ये हर भूमिका एक अलग self की तरह काम करती है:

Self का नामयह कब सक्रिय होता है
Ideal Selfजब आप सोचते हैं कि “मुझे ऐसा बनना चाहिए”
Fearful Selfजब आप किसी निर्णय से डरते हैं
Confident Selfजब आपको खुद पर पूरा भरोसा होता है
Inner Criticजब आप खुद को जज करते हैं
Wounded Selfजब पुरानी बातों से दर्द महसूस होता है
Loving Selfजब आप किसी से गहराई से जुड़ते हैं

इन सभी selves का स्वभाव, सोचने का तरीका और व्यवहार अलग होता है

 वैज्ञानिक व्याख्या:

हालिया शोध बताते हैं कि हम दो अलग-अलग तरीकों से अपने आप को अनुभव करते हैं—एकल स्वयं (Unitary Self) और बहुल स्वयं (Multiple Self)।

एकल स्वयं: इस मोड में हम खुद को एक स्थिर, एकीकृत और सुसंगत इकाई के रूप में देखते हैं। हमारा आत्म-बोध एक ही बना रहता है, चाहे परिस्थितियाँ कुछ भी हों। इसी वजह से हम अपने बारे में एक ही कहानी (self-narrative) बनाते हैं और उसी को अपनी पहचान मानते हैं।

बहुल स्वयं: इस मोड में हम अपने अंदर कई अलग-अलग पहलुओं, भूमिकाओं और व्यक्तित्वों को पहचानते हैं। हर परिस्थिति, हर रिश्ते, हर सामाजिक भूमिका में हम थोड़ा अलग होते हैं। यहाँ हमारा आत्म-बोध लचीला और बहुआयामी होता है।

ये दोनों मोड एक स्पेक्ट्रम पर मौजूद हैं। कुछ लोग खुद को ज़्यादा एकल स्वयं के रूप में अनुभव करते हैं, तो कुछ बहुल स्वयं के रूप में। कई बार परिस्थितियों के हिसाब से हम एक मोड से दूसरे मोड में शिफ्ट भी करते हैं।

https://www.frontiersin.org/journals/psychology/articles/10.3389/fpsyg.2024.1441953/full

1. Psychodynamic theory (Freud):

Freud ने “Id, Ego, Superego” को अलग-अलग selves की तरह ही समझाया था।

  • Id (इदम्) = Impulsive Self (जल्दबाज़, खुदगर्ज स्वयं):
    इदं हमारे अंदर की वह आवाज़ है जो कहती है, “मैं जो चाहूं, वह अभी चाहता हूँ!” इसमें कोई सोच-विचार या सही-गलत नहीं होता। यह बस अपनी ज़रूरत और खुशी चाहता है, चाहे वह किसी भी तरह से हो।

  • Superego (पराहम्) = Moral Self (सही-गलत की समझ वाला स्वयं):
    सुपर ईगो हमारे अंदर का वह हिस्सा है जो हमें सही-गलत सिखाता है। यह कहता है, “यह करना चाहिए या नहीं करना चाहिए। लोग क्या कहेंगे? यह सही है या गलत?” यह हमारी नैतिकता और नियमों की आवाज़ है।

  • Ego (अहम्) = Balancing Self (बैलेंस बनाने वाला स्वयं):
    यह हमारे अंदर का वह हिस्सा है जो Id और Superego के बीच में बैलेंस बनाता है। यह सोचता है, “हमें अपनी ज़रूरत भी पूरी करनी है, लेकिन साथ ही सही-गलत का भी ध्यान रखना है।” यह हमारे व्यवहार को व्यवस्थित करता है

2. Modern Cognitive Psychology:

आज की psychology कहती है कि हमारे brain में contradictory goals और बहुत सी इच्छाएं एक साथ रहती हैं।
इन्हीं से “Multiple Selves” पैदा होते हैं।

3. Narrative Psychology:

हम अपने जीवन को कहानी की तरह जीते हैं। हर कहानी में हमारा अलग रूप होता है, अलग भूमिका होती है – अलग self.

4. भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक “आप”

कुछ मनोवैज्ञानिक थेरेपीज़, जैसे कि कम्पैशन-फोकस्ड थेरेपी (CFT), हमारे अंदर के अलग-अलग भावनात्मक पहलुओं को अलग-अलग “सेल्फ” के रूप में देखती हैं। जैसे:

  • दयालु स्वयं (Compassionate Self): यह वह “आप” है जो दयालु, देखभाल करने वाला और दूसरों की मदद करने वाला है।

  • आलोचक स्वयं (Critical Self): यह वह “आप” है जो हमेशा खुद को कोसता है, ज्यादा सख्ती से सोचता है और खुद को कमतर आँकता है।

  • डरा हुआ या चिंतित स्वयं (Threatened/Anxious Self): यह वह “आप” है जो डरा हुआ, असुरक्षित या चिंतित महसूस करता है और बचाव में आ जाता है।

इन सभी “सेल्फ” के बीच एक आंतरिक संवाद चलता रहता है। कई बार ये एक-दूसरे से टकराते भी हैं, लेकिन इन्हें पहचानना और इनके बीच संतुलन बनाना ही मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य की कुंजी है।

https://contextualconsulting.co.uk/knowledge/therapy-approaches/multiple-selves-cft-and-act

मनोवैज्ञानिक अवधारणाएं

मनोविज्ञान में कुछ और अवधारणाएँ भी हैं जो हमारे अंदर के कई “आप” को समझने में मदद करती हैं:

1. सेल्फ-प्लुरलिज़्म (Self-Pluralism)

सीधे शब्दों में, सेल्फ-प्लुरलिज़्म का मतलब है कि हमारे अंदर कई तरह के “स्व” या पहचानें होती हैं। हम अलग-अलग रोल (भूमिकाएँ) और अलग-अलग स्थितियों में अलग-अलग तरह का व्यवहार करते हैं। जैसे, एक ही व्यक्ति बेटा/बेटी, दोस्त, कर्मचारी, खिलाड़ी आदि कई भूमिकाएँ निभाता है। यही बहुस्वता या सेल्फ-प्लुरलिज़्म है।

2. सेल्फ-कॉम्प्लेक्सिटी (Self-Complexity)

सेल्फ-कॉम्प्लेक्सिटी का मतलब है कि हमारे अंदर कितने अलग-अलग पहचान या स्व हैं, और वे एक-दूसरे से कितने जुड़े या अलग हैं। अगर आपके अंदर कई तरह की पहचानें हैं और वे एक-दूसरे से अलग हैं, तो आपकी सेल्फ-कॉम्प्लेक्सिटी ज्यादा है। जैसे, अगर आपका दोस्तों के साथ व्यवहार, परिवार के साथ व्यवहार और ऑफिस में व्यवहार बिल्कुल अलग है, तो आपकी सेल्फ-कॉम्प्लेक्सिटी ज्यादा होगी।

3. सेल्फ-कॉन्सेप्ट डिफरेंशिएशन (Self-Concept Differentiation)

इसका मतलब है कि हमारी खुद की धारणा (स्वयं की सोच या पहचान) अलग-अलग स्थितियों में कितनी अलग-अलग होती है। यानी, क्या हम अपनी पहचान को अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग रूप से देखते हैं या एक ही रूप में देखते हैं। जितना ज्यादा अंतर, उतनी ज्यादा डिफरेंशिएशन। जैसे, अगर आप घर पर खुद को एक तरह से और ऑफिस में बिल्कुल दूसरी तरह से देखते हैं, तो आपकी सेल्फ-कॉन्सेप्ट डिफरेंशिएशन ज्यादा है।

ये सभी मिलकर बताते हैं कि हमारा स्वयं (self) कितना विविध, जटिल और स्थिति के अनुसार बदलने वाला है। ये सभी अवधारणाएँ यह समझने में मदद करती हैं कि हमारे अंदर कितने “आप” हैं और वे कैसे काम करते हैं।

https://lifeskillscollaborative.in/glossary/self-compassion/?lg=hindi

 यह थ्योरी क्यों ज़रूरी है?

क्योंकि जब हम खुद से पूछते हैं –“मैं ऐसा क्यों कर गया?” “मैं ऐसा क्यों महसूस कर रहा हूँ?” तो जवाब यही होता है –
क्योंकि वो “आप” उस समय कोई और थे।  हमारी choices, emotions और reactions अक्सर उस moment में active self पर निर्भर करती हैं।

 एक उदाहरण से समझिए:

आपका एक self है जो सुबह 6 बजे उठने का निश्चय करता है।
लेकिन अगली सुबह एक और self है जो अलार्म बंद कर देता है।

क्या यह self-control की कमी है? या यह दो अलग-अलग selves की लड़ाई है? Multiple Selves Theory कहती है –
यह आपके अलग-अलग हिस्सों की टकराहट है, न कि आपकी कमजोरी।

एक और उदहारण – मान लीजिए आपको बहुत भूख लगी है और आपके सामने कोई काफ़ी स्वादिष्ट खाना है।

एक सेल्फ Id: “अभी खा लो, किसी की परवाह न करो!”

दूसरा सेल्फ Superego: “नहीं, यह सही नहीं है। पहले इजाज़त लो या सबके साथ बाँटो।”

तीसरा सेल्फ Ego: “चलो, थोड़ा इंतज़ार करते हैं और फिर सबके साथ बैठकर खाते हैं।”

 इस थ्योरी से क्या फायदा होता है?

  • आप खुद को जज करना कम करते हैं
  • अपने contradictory emotions को बेहतर समझते हैं
  •  जानते हैं कि आप एक जटिल, layered इंसान हैं
  • और तभी आप अपने “आप” से दोस्ती करना सीखते हैं

रिसर्च के निष्कर्ष

  • हमारा आत्म-बोध एक स्पेक्ट्रम पर होता है—एक तरफ एकल स्वयं, दूसरी तरफ बहुल स्वयं।

  • हमारे अंदर के अलग-अलग “सेल्फ” सामाजिक भूमिकाओं, भावनाओं और परिस्थितियों के हिसाब से सामने आते हैं।

  • ज़्यादातर लोग अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इन अलग-अलग “सेल्फ” के बीच संतुलन बना लेते हैं और यह पूरी तरह सामान्य है।

  • कुछ लोग खुद को “मल्टीपल” मानते हैं और उनके अंदर कई अलग-अलग “सेल्फ” होते हैं, जिनका अपना-अपना नाम, व्यवहार और पसंद-नापसंद होता है।

  • मनोवैज्ञानिक थेरेपीज़ हमें अपने अंदर के अलग-अलग “सेल्फ” को पहचानने और उनके बीच संतुलन बनाने में मदद करती हैं।

 Self-Conflict: जब “आप” ही आपस में लड़ने लगें

कई बार अंदर के ये अलग-अलग “आप” आपस में टकराने लगते हैं, जैसे:

SituationConflict
एक बढ़िया नौकरी का ऑफर लेकिन शहर बदलना पड़ेगाAmbitious Self vs Comfort-Seeking Self
रिश्ते में रहकर आज़ादी खोने का डरLoving Self vs Independent Self
बीते कल को भुला देना चाहिए या नहींForgiving Self vs Victim Self

इस टकराव को internal conflict कहते हैं। यह चिंता, उलझन और निर्णय लेने में कठिनाई का कारण बनता है।

Identity Layering – आपकी पहचान की परतें

 पहचान (Identity) क्या होती है?

जब कोई आपसे पूछता है –”आप कौन हैं?” आप शायद कहेंगे – “मैं एक डॉक्टर हूँ”, “मैं माँ हूँ”, “मैं हिंदू हूँ”, “मैं इंट्रोवर्ट हूँ”…

लेकिन क्या केवल यही आपकी पहचान है? असल में, हर इंसान की पहचान एक नहीं, बल्कि कई परतों से बनी होती है –
बिलकुल एक प्याज़ (onion) की तरह – जिसे आप जितना छीलें, अंदर कुछ और निकल आता है।


🌟 पहचान की ये परतें क्या-क्या होती हैं?

परतविवरण
Gender“मैं पुरुष/स्त्री/अन्य हूं” – यह सबसे मूलभूत सामाजिक परत है।
धर्म और संस्कृति “मैं भारतीय हूं”, “मैं मुस्लिम/हिंदू हूं” – ये आपकी सामाजिक जड़ों से जुड़ी पहचान हैं।
पारिवारिक भूमिका “मैं बेटी हूं”, “मैं पिता हूं”, “मैं बड़ी बहन हूं” – परिवार में निभाई जाने वाली भूमिकाएं।
व्यक्तिगत विश्वास “मुझे सच्चाई पसंद है”, “मैं स्वतंत्रता को महत्व देता हूं” – आपके निजी मूल्य और सिद्धांत।
पूर्व अनुभव/सदमा बचपन की घटनाएं, असफलताएं, दर्द – जो आपकी personality को गहराई में आकार देती हैं।
महत्वाकांक्षा/इच्छा “मैं एक लेखिका बनना चाहती हूं” मैं हीरो बनना चाहता हूँ – आपकी भविष्य की आकांक्षाएं।
Social Masks (मुखौटे)वो चेहरे जो आप दुनिया को दिखाते हैं, जैसे “मैं हमेशा खुश हूं”, “मैं मजबूत हूं”, जबकि अंदर कुछ और होता है।
 एक व्यक्ति = कई किरदार

हर जगह आप एक नया चेहरा लेकर जाते हैं: ऑफिस में – professional self, दोस्तों के साथ – funny self, माता-पिता के सामने – obedient self, अपने मन में – confused/self-doubting self इन सभी selves को एकसाथ संभालना ही Identity Layering है।

 बाहर से हँसमुख, अंदर से टूटे क्यों?

कुछ लोग बाहर से बहुत खुश, आत्मविश्वासी या सफल दिखाई देते हैं। लेकिन अंदर वे: खुद को खो चुके होते हैं, दबाव और उम्मीदों से टूट चुके होते हैं, अतीत के दर्द को छुपाकर मुस्कुरा रहे होते हैं

ऐसा तब होता है जब हमने अपने अंदर की गहरी परतों को पहचानना और स्वीकार करना छोड़ दिया होता है। हम सिर्फ “social mask” जीते हैं –”लोग क्या सोचेंगे?”, “मुझे strong दिखना है”, “कमजोरी नहीं दिखा सकते”…और धीरे-धीरे, हम अपने असली “मैं” से दूर हो जाते हैं

 Self-Awareness की शुरुआत

Self-awareness का मतलब है –हर परत को देखना, समझना, और मान लेना।

  • मान लेना कि आप कभी-कभी कमजोर भी महसूस करते हैं
  • स्वीकार करना कि आपके अंदर दर्द है
  • जानना कि आपके कई “चेहरे” हैं – और सभी सच हैं

जब आप खुद से यह ईमानदारी करते हैं, तभी असली healing शुरू होती है। तभी आप अपने मुखौटे उतारने की हिम्मत जुटाते हैं।

 व्यवहार में बदलाव: कौन-सा “मैं” फैसला कर रहा है?

जब आप खुद को समझते हैं कि कौन-सी “self” कब एक्टिव है, तो: आप react करने की जगह respond करना सीखते हैं, guilt या shame से बाहर निकल सकते हैं, अपने “आप” को दोस्त बना सकते हैं – दुश्मन नहीं

उदाहरण: अगर गुस्से में आप कुछ कह देते हैं – बाद में “शांत self” को पछतावा होता है। यह समझने से कि “वो मैं मैं नहीं था” – healing शुरू होती है।

कैसे करें खुद के “multiple selves” से संवाद?

-Journaling: हर दिन लिखें कि कौन-सी “self” सबसे active रही?

– Self-dialogue: अपने आप से बात करें – जैसे आप किसी दोस्त से बात करते हैं।

-नाम दें: अपनी हर प्रमुख “self” को नाम दें: – नाम रखने से awareness बढ़ती है।

-Psychotherapy या Inner Work: अगर टकराव ज्यादा गहरा है, तो professional help लें।

मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य और “बहुल स्वयं”

1. क्या यह सामान्य है?

हाँ, यह पूरी तरह सामान्य है!
हर इंसान के अंदर कई पहलू, भूमिकाएँ और व्यक्तित्व होते हैं। इन सभी का संतुलन ही हमें एक संपूर्ण इंसान बनाता है।

2. क्या यह मानसिक बीमारी है?

ज़्यादातर मामलों में नहीं।
केवल तब यह समस्या बनती है, जब इन अलग-अलग “सेल्फ” के बीच संवाद टूट जाता है, या कोई एक “सेल्फ” बहुत ज़्यादा हावी हो जाता है और दूसरों को दबा देता है। ऐसे में मनोवैज्ञानिक मदद की ज़रूरत हो सकती है।

आंतरिक संघर्ष और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

  • अस्थिरता और चिंता:
    जब स्वयं के विभिन्न पहलू (जैसे “करियरिस्ट आप” vs “पारिवारिक आप”) एक-दूसरे के विरोध में आते हैं, तो व्यक्ति को निर्णय लेने में कठिनाई होती है। इससे अनिर्णय, तनाव, और चिंता पैदा होती है। उदाहरण के लिए, एक महिला जो करियर और परिवार के बीच संतुलन नहीं बना पाती, वह गहन असमंजस में फँस सकती है।

  • आत्म-सम्मान में कमी:
    आंतरिक संघर्ष के कारण व्यक्ति खुद को “अपूर्ण” या “विफल” मानने लगता है। जैसे, यदि “आदर्शवादी आप” और “वास्तविक आप” के बीच गहरा अंतर हो, तो व्यक्ति में हीनभावना उत्पन्न हो सकती है।

  • अवसाद और थकान:
    लंबे समय तक चलने वाला आंतरिक संघर्ष मनोवैज्ञानिक थकान पैदा करता है, जो अवसाद का कारण बन सकता है। शोधों के अनुसार, ऐसे लोगों में नींद की समस्या और ऊर्जा की कमी आम है।

सामाजिक संबंधों पर प्रभाव

  • रिश्तों में तनाव:
    अगर कोई व्यक्ति घर पर “सख्त आप” और दोस्तों के बीच “मस्तमौला आप” दिखाता है, तो उसके प्रियजन उसके व्यवहार में असंगति महसूस कर सकते हैं। इससे विश्वासघात या दूरियाँ पैदा हो सकती हैं।

  • समाज से अलगाव:
    आंतरिक असंतुलन के कारण व्यक्ति सामाजिक भूमिकाओं (जैसे पिता, पति, या कर्मचारी) को ठीक से नहीं निभा पाता। इससे समाज में उसकी स्वीकार्यता कम हो जाती है।

पहचान का संकट

  • आत्म-पहचान की हानि:
    जब स्वयं के विभिन्न पहलू एक-दूसरे से टकराते हैं, तो व्यक्ति यह समझ नहीं पाता कि वह “वास्तव में कौन है”। यह स्थिति अस्तित्ववादी संकट (Existential Crisis) को जन्म देती है। उदाहरण: एक युवक जो धार्मिक मूल्यों और आधुनिकता के बीच फँसा हो।

  • नकली व्यक्तित्व का विकास:
    लगातार अलग-अलग भूमिकाएँ निभाने के दबाव में व्यक्ति एक झूठा व्यक्तित्व (False Self) विकसित कर लेता है, जो दीर्घकाल में उसे खोखला बना देता है।

चरम स्थितियाँ: मानसिक विकार

  • डिसोसिएटिव आइडेंटिटी डिसऑर्डर (DID):
    गंभीर मामलों में, आंतरिक संघर्ष DID जैसे विकार को जन्म दे सकता है, जहाँ व्यक्ति के अंदर कई पूर्णतः अलग पहचानें (Alters) विकसित हो जाती हैं। ये पहचानें अपना नाम, व्यवहार, और यादें भी रख सकती हैं।

  • स्किज़ोफ्रेनिया:
    कुछ शोध बताते हैं कि लंबे समय तक अव्यवस्थित आंतरिक संवाद वास्तविकता से विच्छेदन (Psychosis) का कारण बन सकता है।

समाधान: सामंजस्य कैसे बनाएँ?

  1. आत्म-स्वीकृति:
    अपने अंदर के सभी पहलुओं को पहचानें और उन्हें स्वीकार करें। जैसे, “मैं कभी-कभी स्वार्थी हो सकता हूँ, और यह ठीक है।”

  2. माइंडफुलनेस और थेरेपी:
    कम्पैशन-फोकस्ड थेरेपी (CFT) या वॉइस डायलॉग थेरेपी के ज़रिए आंतरिक संवाद को संतुलित करें।

  3. प्राथमिकताएँ तय करना:
    जीवन के विभिन्न क्षेत्रों (करियर, परिवार, स्वास्थ्य) के लिए स्पष्ट प्राथमिकताएँ बनाएँ ताकि संघर्ष कम हो।

 निष्कर्ष:

“मैं कौन हूं?” – इसका जवाब एक नाम या प्रोफेशन नहीं हो सकता। क्योंकि आप सिर्फ एक नहीं हैं – आप कई हैं। और इन सभी “आप” को पहचानना, समझना और साथ लेकर चलना ही असली मानसिक परिपक्वता है।
Rewire Your Soch तभी होगा जब आप अपने अंदर के हर “आप” से मिलने के लिए तैयार हों।

हर सामाजिक भूमिका, हर भावना, हर परिस्थिति में हम थोड़ा अलग होते हैं। यह हमारे व्यक्तित्व का एक सामान्य और स्वस्थ पहलू है। अपने अंदर के इन अलग-अलग “आप” को पहचानना और उनके बीच संतुलन बनाना ही हमें एक संपूर्ण इंसान बनाता है।

अगली बार जब आप खुद को किसी नई जगह या नए लोगों के साथ अलग तरह से महसूस करें, तो याद रखें—आपके अंदर कई “आप” हैं और यही आपको खास बनाता है!

यह ब्लॉग आपको अपने अंदर के “आप” को समझने और स्वीकार करने में मदद करेगा। अपने अनुभव कमेंट में शेयर करें| 

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