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क्या आप भी जल्दी गुस्सा हो जाते हैं?जानिए इसका मनोविज्ञान

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Anger management

गुस्सा (Anger) एक मानव भाव है जो तब आता है जब हम किसी चीज़ को अन्यायपूर्ण, अपमानजनक या नुकसानदायक महसूस करते हैं। यह fight-or-flight response से जुड़ा हुआ है, यानी मस्तिष्क खतरे को भांपकर प्रतिक्रिया करता है।

गुस्सा करने का मनोविज्ञान एक जटिल विषय है, जिसमें जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और व्यक्तिगत कारक शामिल होते हैं।

नीचे दिए गए बिंदुओं के माध्यम से हम विस्तार से समझेंगे कि अधिक गुस्सा क्यों आता है, इसके पीछे कौन-कौन से मनोवैज्ञानिक कारण होते हैं, और यह हमारे शरीर, दिमाग, रिश्तों व जीवन पर किस तरह प्रभाव डालता है।

गुस्सा क्या है? (What is Anger?)

– गुस्सा एक सामान्य मानवीय भावना है, जो तब उत्पन्न होती है जब हमें लगता है कि हमारे साथ अन्याय हुआ है, हमारी सीमाओं का उल्लंघन हुआ है, या हमारी अपेक्षाएं पूरी नहीं हुईं
– यह एक भावनात्मक प्रतिक्रिया है, जिसमें शरीर में हार्मोनल और न्यूरोलॉजिकल बदलाव होते हैं, जैसे कि हृदय गति और रक्तचाप बढ़ जाना
– गुस्सा कई बार भय, निराशा, असहायता या दुख जैसी अन्य भावनाओं से भी उपज सकता है।

गुस्से के प्रकार (Types of Anger):

1. Passive Anger: चुप रहना, लेकिन भीतर ही भीतर कुंठा या कुढ़न।
2. Open Aggression: चिल्लाना, गाली देना, हिंसा करना, तोड़ – फोड़ करना।
3. Assertive Anger: अपने विचार मजबूती से रखना, बिना दूसरों को चोट पहुंचाए। अपनी बात बिना चिल्लाए या गाली दिए स्पष्ट रूप से कहना। 

  गुस्से के मनोवैज्ञानिक कारण

कारणविवरण
बचपन के अनुभवबचपन में उपेक्षा, दंड या भावनाओं की अभिव्यक्ति पर रोक लगना
आत्म-सम्मान की कमीबार-बार अपमान, तिरस्कार या हेय समझे जाने की भावना
व्यक्तित्व विकारकुछ लोगों में जन्मजात स्वभाव या आनुवांशिक कारणों से अधिक गुस्सा
असफलता/निराशाअपने या दूसरों के प्रति असंतोष, अपेक्षाओं का पूरा न होना
तनाव व थकानलगातार मानसिक दबाव, थकान, नींद की कमी
असुरक्षा/भयभविष्य की चिंता, असुरक्षा या नियंत्रण खोने का डर
सीखने का व्यवहारपरिवार या समाज में गुस्से को समस्या सुलझाने के तरीके के रूप में देखना

 

गुस्से के दौरान शरीर में क्या होता है 

– हार्मोनल बदलाव: गुस्से के समय एड्रेनालाईन और कॉर्टिसोल जैसे हार्मोन रिलीज़ होते हैं, जिससे शरीर “लड़ो या भागो” (Fight or Flight) मोड में आ जाता है
– शारीरिक परिवर्तन: हृदय गति, रक्तचाप, मांसपेशियों में तनाव, पसीना आना, हाथ-पैर कांपना। दिल की बीमारियां, पाचन संबंधी समस्याएं, सिरदर्द, हाई ब्लड प्रेशर
– मस्तिष्क में बदलाव: सोचने-समझने की क्षमता कम हो जाती है, निर्णय लेने में गलती हो सकती है, और व्यक्ति तर्कहीन व्यवहार कर सकता है। Amygdala (मस्तिष्क का भावनाओं से जुड़ा हिस्सा) अधिक संवेदनशील हो सकता है। Serotonin और dopamine जैसे न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलन भी गुस्से को बढ़ाते हैं।

इसके परिणाम स्वरुप – रिश्तों पर असर: झगड़े, तनाव, मनमुटाव, सामाजिक अलगाव, रिश्तों में दूरियां  – व्यक्तित्व पर असर: आत्म-सम्मान में गिरावट, समाज में नकारात्मक छवि, कार्यक्षमता में कमी

 बार-बार या अत्यधिक गुस्सा क्यों आता है?

– आंतरिक (Internal) कारण: पुरानी असफलताओं, कुंठा, आत्मग्लानि, या अवसाद की वजह से।
– बाहरी (External) कारण: किसी व्यक्ति, परिस्थिति या समाज द्वारा अपमानित या परेशान किए जाने पर।
– न्यूरोलॉजिकल कारण: मस्तिष्क के कुछ हिस्सों (जैसे Amygdala) की अधिक सक्रियता, न्यूरोट्रांसमीटर असंतुलन।
– अनियंत्रित भावनाएं: अपनी भावनाओं को सही तरीके से व्यक्त न कर पाना, या उन्हें दबा देना[।
– सीखने की प्रक्रिया: जिन परिवारों या समाज में गुस्से को ताकत या समस्या सुलझाने के तरीके के रूप में देखा जाता है, वहां लोग जल्दी गुस्सा करना सीख जाते हैं।

https://www.healthline.com/health/anger-issues

गुस्से को समझने के लिए मनोवैज्ञानिक सिद्धांत

– फ्रस्ट्रेशन-एग्रेसन थ्योरी:

जब किसी की इच्छाएं या जरूरतें बार-बार पूरी नहीं होतीं, तो वह व्यक्ति आक्रामक या गुस्सैल हो सकता है। या जब उसके अनुसार लोग नहीं चलते (जो कि संभव नहीं है) तो वो गुस्से में भर जाता है। 

– साइकोडायनामिक थ्योरी:

सिगमंड फ्रायड के अनुसार, दबे हुए डर, इच्छा या कुंठा गुस्से के रूप में बाहर आ सकते हैं। ये बचपन या किशोरावस्था की भी हो सकती हैं। जिनसे निपटने के लिए गुस्से का सहारा लिया जाता है। 

– सोशल लर्निंग थ्योरी:

बच्चे अपने माता-पिता या समाज से गुस्से का व्यवहार सीखते हैं; अगर घर में गुस्सा सामान्य है, हर बात पर लोग चिल्लाते हैं तो बच्चा भी वैसा ही व्यवहार करता है।

मानसिक स्थिति का गुस्से से संबंध

1 – Intermittent Explosive Disorder (IED) अचानक तीव्र गुस्से के दौरे
2 – Borderline Personality Disorder अस्थिर मूड और बहुत अधिक क्रोध
3 – Narcissistic Personality Disorder आलोचना से अत्यधिक गुस्सा आना 
4 – Depression (especially in men) अंदरूनी निराशा गुस्से के रूप में बाहर आती है

इसे भी पढ़ें – डिप्रेशन या अवसाद: समझें, पहचानें और ठीक करें

युवा वर्ग में बढ़ते गुस्से के कारण 

– मानसिक दबाव और प्रतिस्पर्धा:

पढ़ाई, करियर, रिश्तों और भविष्य की चिंता के कारण युवाओं पर भारी मानसिक दबाव रहता है। लगातार प्रतियोगिता, अपेक्षाओं का बोझ और असफलता का डर उन्हें चिड़चिड़ा और गुस्सैल बना देता है। जो लोग हर स्थिति को अपने अनुसार नियंत्रित करना चाहते हैं, वे जब चीजें उनके अनुसार नहीं चलतीं, तो गुस्से में आ जाते हैं।

– डिजिटल दुनिया और सामाजिक अलगाव:

सोशल मीडिया और डिजिटल गैजेट्स पर अत्यधिक समय बिताने से युवा वास्तविक जीवन के रिश्तों से दूर हो रहे हैं। इससे उनके भीतर अकेलापन, असंतोष और आक्रोश पनपता है। जब व्यक्ति बार-बार नजरअंदाज, अपमानित या धोखा खाया महसूस करता है तो गुस्सा उसका आत्म-सुरक्षा तंत्र बन जाता है।

– हार्मोनल बदलाव:

किशोरावस्था और युवावस्था में हार्मोनल बदलावों के कारण भी चिड़चिड़ापन और गुस्सा बढ़ जाता है। और आगे चलने पर ये उनकी आदत बन जाती है। 

– पुरानी घटनाओं या ट्रॉमा का असर:

बचपन की कोई नकारात्मक घटना, पारिवारिक लड़ाई झगड़े या शारीरिक/मानसिक शोषण, असफलता आदि युवाओं के मन में गुस्से की जड़ें मजबूत कर सकते हैं। अस्वस्थ या हिंसक माहौल में पले-बढ़े बच्चों में गुस्सा एक सामान्य प्रतिक्रिया बन जाती है।

– नशे की प्रवृत्ति:

शराब, ड्रग्स, सिगरेट आदि का सेवन युवाओं में गुस्से, आक्रामकता और हिंसक व्यवहार को बढ़ा सकता है।

– मानसिक स्वास्थ्य समस्याएँ:

कभी कभी डिप्रेशन, एंग्जायटी, बाइपोलर डिसऑर्डर जैसी मानसिक बीमारियाँ भी गुस्से और हिंसा का कारण बनती हैं।

– घर-परिवार का माहौल:

अगर घर में संवाद की कमी है, माता-पिता का व्यवहार कठोर है या परिवार में पहले से तनाव है, लड़ाई झगड़े का माहौल रहता है तो युवा अपनी भावनाएँ गुस्से, तोड़फोड़ या गाली-गलौज के रूप में व्यक्त करने लगते हैं।
यदि परिवार में कोई सदस्य जैसे माता-पिता बहुत अधिक गुस्सैल हैं, तो उनके बच्चों में भी यह प्रवृत्ति पाई जाती है। यह जीन और अनुकरण दोनों का प्रभाव हो सकता है। यदि बच्चों को सिखाया नहीं गया कि भावनाओं को स्वस्थ तरीके से कैसे व्यक्त करें, तो वे गुस्से को ही एकमात्र तरीका मानते हैं।

– असफलता और असंतोष:

रिश्तों में असफलता, दोस्ती में दरार या किसी लक्ष्य में नाकामी, या समाज में खुद को स्थापित न कर पाने का रोष भी युवाओं को गुस्से की ओर धकेलता है।
ऐसे ही कारणों के चलते आज के युवा अपनी भावनाओं को नियंत्रित नहीं कर पाते और कई बार गुस्से में आकर घर में तोड़फोड़, गाली-गलौज या हिंसा जैसी हरकतें करने लगते हैं। इसका समाधान संवाद, मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान, सकारात्मक माहौल और आवश्यकता पड़ने पर पेशेवर सहायता से निकाला जा सकता है। 

https://hindi.downtoearth.org.in/economy/why-are-youth-in-anger-68509

गुस्से को नियंत्रित कैसे करें

गुस्से को नियंत्रित करना एक कला है, जिसे अभ्यास और सही तकनीकों से सीखा जा सकता है। नीचे विस्तार से उन प्रमुख उपायों और तकनीकों का उल्लेख किया गया है, जिन्हें अपनाकर आप अपने गुस्से पर नियंत्रण पा सकते हैं:

 1. विश्रांति तकनीक (Relaxation Techniques)

– गहरी सांस लेना: जब गुस्सा आए, तो धीरे-धीरे गहरी सांस लें और छोड़ें। इससे शरीर और दिमाग को शांति मिलती है।
– मसल रिलैक्सेशन: शरीर के विभिन्न हिस्सों को धीरे-धीरे कसें और फिर ढीला छोड़ें।
– मेडिटेशन और योग: नियमित ध्यान और योग से मानसिक संतुलन और आत्मनियंत्रण बढ़ता है।

2. संज्ञानात्मक पुनर्रचना (Cognitive Restructuring)

– सोचने का नजरिया बदलें: गुस्से के समय अपने विचारों को पहचानें और उन्हें तार्किक व सकारात्मक दिशा में मोड़ें।
– ओवरथिंकिंग से बचें: “हमेशा मेरे साथ ही ऐसा होता है” जैसी सोच से बचें, और परिस्थितियों को तटस्थ दृष्टि से देखें।

3. समस्या समाधान (Problem Solving)

– समस्या को पहचानें: अक्सर गुस्सा किसी समस्या के कारण आता है। समस्या को स्पष्ट रूप से पहचानें और उसके समाधान पर ध्यान दें।
– यथार्थवादी अपेक्षाएँ रखें: हर समस्या का तुरंत हल संभव नहीं होता, इसलिए धैर्य रखें।

4. संचार रणनीति को उन्नत बनाना (Improving Communication)

– शांत रहकर संवाद करें: गुस्से में बिना सोचे-समझे न बोलें। पहले सोचें, फिर बोलें।
– “मैं” कथनों का प्रयोग करें: जैसे – “मुझे बुरा लगता है जब…”। इससे सामने वाला आपकी भावनाओं को बेहतर समझ सकेगा।

 5. ट्रिगर्स की पहचान और उनसे बचाव

– गुस्से के ट्रिगर्स जानें: किन परिस्थितियों या लोगों से आपको गुस्सा आता है, उनकी पहचान करें।
– संभावित टकराव से बचें: जब संभव हो, उन परिस्थितियों से दूर रहें या खुद को तैयार रखें।

 6. शारीरिक गतिविधि और व्यायाम

– नियमित व्यायाम: दौड़ना, तेज चलना, साइकिलिंग, या कोई भी खेल खेलने से तनाव और गुस्सा कम होता है।
– शारीरिक ऊर्जा को रचनात्मक दिशा दें: जैसे पेंटिंग, डांस, म्यूजिक आदि।

 7. समय निकालना (Take a Timeout)

– कुछ देर के लिए खुद को अलग कर लें: जब गुस्सा बहुत ज्यादा हो, तो वहां से हट जाएं,

 – कुछ देर अकेले रहें, और खुद को शांत करें। गुस्से के समय इधर उधर टाइम पास करने से दिमाग सामान्य हो जाता है। 

 – मित्र या परिवार से बात करें: अपनी भावनाएं साझा करने से मन हल्का होता है और समाधान मिल सकता है।

8. नींद, खानपान और जीवनशैली का ध्यान रखें

– पर्याप्त नींद लें: थकावट और नींद की कमी गुस्से को बढ़ा सकती है।
– कैफीन और नशे से बचें: इनसे चिड़चिड़ापन बढ़ता है।

9. अपनी भावनाओं को स्वस्थ तरीके से व्यक्त करें

– गुस्से को दबाएँ नहीं, सही तरीके से व्यक्त करें: अपनी भावनाओं को शांत और मुखर तरीके से सामने रखें, आक्रामकता से नहीं।

– डायरी लिखें: अपनी भावनाओं और गुस्से के कारणों को लिखें, इससे आत्मविश्लेषण में मदद मिलेगी।

10. पेशेवर सहायता लें

– काउंसलिंग या थेरेपी: अगर गुस्सा नियंत्रण से बाहर हो, तो मनोवैज्ञानिक या काउंसलर की मदद लें। क्रोध प्रबंधन थेरेपी से व्यवहार में सकारात्मक बदलाव आ सकते हैं।
इन सभी उपायों को अपनाकर, अभ्यास और धैर्य के साथ, आप अपने गुस्से पर नियंत्रण पा सकते हैं और जीवन को शांतिपूर्ण बना सकते हैं।

निष्कर्ष

बार-बार गुस्सा आना सिर्फ एक “बदतमीजी” नहीं है, बल्कि यह एक गहरी मानसिक, सामाजिक और जैविक जड़ें रखने वाला भावात्मक डिसबैलेंस है। इसे नजरअंदाज़ करने की बजाय समझना और संभालना ज़रूरी है — क्योंकि अनियंत्रित गुस्सा ना केवल आपके मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि रिश्तों और जीवन की गुणवत्ता को भी। जब हम इसके पीछे के कारणों को समझते हैं, तब ही हम इसे दोष नहीं, समाधान के नजरिये से देख पाते हैं।

गुस्सा एक स्वाभाविक भावना है, लेकिन जब यह बार-बार या अत्यधिक आने लगे, तो यह मानसिक, शारीरिक और सामाजिक समस्याओं का कारण बन सकता है। इसके पीछे जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और व्यक्तिगत कारक होते हैं।
गुस्से को समझना, स्वीकारना और सही तरीके से व्यक्त करना ही संतुलित जीवन की कुंजी है।

यदि आपको या आपके किसी परिचित को अत्यधिक गुस्से की समस्या है, तो मनोवैज्ञानिक या काउंसलर की मदद अवश्य लें। यह न केवल आपके लिए, बल्कि आपके परिवार और समाज के लिए भी लाभकारी होगा।

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