किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं और समाधान-
मेरे पड़ोस में रहने वाला 16 साल का रोहित हमेशा पढ़ाई में तेज़ था और स्कूल में टॉप करता था। लेकिन जब वह 11वीं में आया, तो उसकी पढ़ाई का बोझ बढ़ गया। माता-पिता और शिक्षक दोनों उससे बहुत उम्मीदें रखने लगे कि वह इंजीनियरिंग की परीक्षा (JEE) में टॉप करेगा। धीरे धीरे वह पहले की तरह हँसमुख नहीं रहा। दोस्तों से दूरी बनाने लगा। रात को ठीक से सो नहीं पाता था, छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने लगा। जब परीक्षा का समय आया, तो उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया और पढ़ाई करने के बावजूद आत्मविश्वास की कमी महसूस करने लगा। अंततः वह डिप्रेशन में चला गया और परीक्षा नहीं दे सका।
आज की तेज़ रफ्तार जिंदगी में किशोरों का मानसिक स्वास्थ्य एक गंभीर और अनदेखा मुद्दा बनता जा रहा है। स्कूल की पढ़ाई, दोस्ती के उतार-चढ़ाव, सोशल मीडिया का दबाव, और कभी परिवार की बढ़ती उम्मीदें – ये सभी मिलकर उनके मन पर एक अनकहा दबाव बना देते हैं।
क्या आपके बच्चे का व्यवहार भी बदला-बदला सा लग रहा है?
आपने शायद देखा होगा कि कभी बहुत बातूनी रहने वाला बच्चा अब चुपचाप रहने लगा है, या पहले जो पढ़ाई में अच्छा था, अब उसका ध्यान नहीं लगता। ये संकेत हो सकते हैं कि वह अंदर ही अंदर किसी मानसिक दबाव से जूझ रहा है।
किशोरावस्था जीवन का वह संवेदनशील दौर है जब शारीरिक, मानसिक और सामाजिक बदलाव तीव्रता से होते हैं। इस दौरान बच्चो के कोमल मन – मष्तिष्क पर आघात लगना आम है, जो यदि समय पर समझी और संभाली न जाएं तो गंभीर परिणाम दे सकते हैं।
इस ब्लॉग में हम किशोरों में होने वाली प्रमुख मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, उनके कारण, लक्षण, आंकड़े और प्रभावी समाधान विस्तार से जानेंगे। यह ब्लॉग माता – पिता और शिक्षकों के लिए बहुत उपयोगी होगा।
1. किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य की प्रमुख समस्याएं
A- अवसाद (Depression)
जब कोई किशोर कई हफ्तों तक उदास, थका हुआ या खुद को बेकार महसूस करे, बात बात पर चिड़चिड़ाना, गुस्सा करना दिखे तो यह सिर्फ मूड स्विंग नहीं, अवसाद हो सकता है।
गैलप (Gallup) द्वारा 2023 में किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिका में 29% वयस्कों को उनके जीवनकाल में कभी न कभी अवसाद का निदान किया गया है । यह आंकड़ा लगभग हर 3-4 वयस्कों में से 1 के बराबर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, 10-19 वर्ष के लगभग 13% किशोरों को अवसाद से प्रभावित माना जाता है।
https://www.who.int/health-topics/depression#tab=tab_1
वैसे तो डिप्रेशन किसी भी समय हो सकता है, लेकिन औसतन यह किशोरावस्था के अंत या 20 वर्ष की शुरुआत में सबसे पहले लक्षण दिखाता है। यह लड़कों की तुलना में लड़कियों को अधिक प्रभावित करता है। एक अध्ययन में पाया गया कि जूनियर मिडिल स्कूल के पहले ग्रेड की छात्राओं में उच्च अवसाद की प्रचलन दर 10.1% थी, जबकि लड़कों की तुलना में यह दर अधिक थी।
https://www.sciencedirect.com/science/article/abs/pii/S016503271932779X
यदि परिवार में ऐसी बीमारी किसी को रही हो तो बच्चों में होने की सम्भावना और बढ़ जाती है
क्या है?- गहरी उदासी, निराशा, ऊर्जा की कमी, रुचि की हानि जैसी भावनात्मक स्थिति।
लक्षण:– लगातार उदासी, नींद में बदलाव, भूख में कमी या बढ़ोतरी, आत्मसम्मान में गिरावट, आत्महत्या के विचार।
कारण:- शारीरिक बदलाव, सामाजिक दबाव, परिवार में तनाव, हार्मोनल असंतुलन।
उदाहरण:- एक 16 वर्षीय छात्रा जो पढ़ाई में पिछड़ने के कारण दुखी और खुद को अकेला महसूस करती है और धीरे-धीरे उसमें अवसाद के लक्षण दिखने लगते है।
B- चिंता विकार (Anxiety Disorders)
एंग्जायटी या चिंता एक मानसिक स्थिति है जिसमें व्यक्ति को सामान्य से ज्यादा चिंता, डर या घबराहट महसूस होती है। यह चिंता किसी विशेष घटना या परिस्थिति से जुड़ी हो सकती है, या बिना किसी कारण के भी हो सकती है। परीक्षा, रिश्तों या भविष्य को लेकर अत्यधिक चिंता उन्हें भीतर ही भीतर तोड़ सकती है।
एंग्जायटी डिसऑर्डर के लक्षण शारीरिक और मानसिक दोनों हो सकते हैं, जैसे कि तेज धड़कन, सांस लेने में कठिनाई, मांसपेशियों में तनाव, और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई।
क्या है?- अत्यधिक और असामान्य चिंता, भय, घबराहट।
प्रकार:- सामान्यीकृत चिंता, सामाजिक चिंता, फोबिया।
लक्षण:- बेचैनी, दिल की धड़कन तेज होना, पसीना आना, नींद में कमी।
आंकड़े:- 13 से 18 वर्ष की आयु के लगभग 31.9% किशोरों में किसी न किसी प्रकार का चिंता विकार पाया गया। इनमें से 8.3% किशोरों में गंभीर हानि (severe impairment) देखी गई।
https://www.nimh.nih.gov/health/statistics/any-anxiety-disorder
उदाहरण:- एक किशोर जो परीक्षा के दौरान अत्यधिक घबराहट महसूस करता है वह बेचैनी, चक्कर आना, उल्टियां होना आदि अनेक लक्षण देखता है।
C- ध्यान-केंद्रित न कर पाना और अति सक्रियता विकार (ADHD)
ADHD एक मानसिक स्थिति है जो ज़्यादातर बच्चों में पाई जाती है, लेकिन कई बार यह बड़े होने तक भी बनी रहती है। इसमें बच्चे या व्यक्ति ध्यान नहीं लगा पाते –जैसे कि पढ़ाई या किसी काम में मन नहीं लगता, बार-बार ध्यान भटकता है, चीजें भूल जाते हैं। बहुत ज़्यादा एक्टिव रहते हैं – एक जगह टिककर नहीं बैठते, हमेशा दौड़-भाग करते रहते हैं, बहुत बात करते हैं। बिना सोचे कुछ कर बैठते हैं –
जैसे कोई सवाल पूरा सुने बिना जवाब दे देना, लाइन में नहीं लगना, सब्र नहीं रखना।
यह कोई “बदमाशी” नहीं होती, बल्कि दिमाग के काम करने के तरीके से जुड़ी एक परेशानी होती है। इलाज में दवाएं, काउंसलिंग और खास पढ़ाई की तकनीकें मदद करती हैं।
क्या है?- ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, अत्यधिक सक्रियता, आवेग नियंत्रण की समस्या।
लक्षण:- पढ़ाई में ध्यान न लगना, एक जगह टिककर नहीं बैठना, बेचैनी आदि ।
आंकड़े:- ADHD का वैश्विक स्तर पर किशोरों में प्रचलन लगभग 5.6% है। यह आंकड़ा 12 से 18 वर्ष की आयु के किशोरों पर आधारित है और इसे एक अंतरराष्ट्रीय मेटा-विश्लेषण अध्ययन में प्रस्तुत किया गया है। इस अध्ययन में पाया गया कि 3 से 12 वर्ष के बच्चों में ADHD का प्रचलन 7.6% है, जबकि 12 से 18 वर्ष के किशोरों में यह 5.6% है।
https://pmc.ncbi.nlm.nih.gov/articles/PMC10120242/
उदाहरण:- एक छात्र जो कक्षा में बार-बार उठता बैठता है और टीचर के निर्देशों का पालन नहीं करता। यह कोई बदमाशी नहीं, बल्कि उसके दिमाग की परेशानी है।
D- भोजन संबंधी विकार (Eating Disorders)
भोजन कएने में गड़बड़ी भी एक तरह का मेंटल डिसऑर्डर होता है, जिसमें व्यक्ति कभी तो जरूरत से भी ज्यादा खाता है तो कभी बहुत ही कम खाता है। इतना कम कि उसका वजन कम हो जाता है और बॉडी मास भी घट जाता है, जिसकी वजह से वह एनोरेक्सिया नर्वोसा जैसी बीमारी का शिकार हो जाता है।
प्रकार:- एनोरेक्सिया नर्वोसा, बुलिमिया नर्वोसा।
लक्षण:- वजन कम करने का अत्यधिक प्रयास, भोजन से डर, शरीर की छवि में विकृति।
प्रभाव:- शारीरिक कमजोरी, पोषण की कमी, आत्मसम्मान में गिरावट।

आंकड़े:- एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन में पाया गया कि एनोरेक्सिया नर्वोसा से पीड़ित व्यक्तियों के दिमाग में ग्रे मैटर (gray matter) की मात्रा में कमी होती है, जो अन्य मानसिक बीमारियों की तुलना में अधिक गंभीर होती है। यह परिवर्तन दिमाग के उन हिस्सों में देखा गया जो संज्ञानात्मक नियंत्रण (अपने विचारों और व्यवहार को नियंत्रित करने की क्षमता) और भावनात्मक प्रसंस्करण (अपनी भावनाओं को समझना और उनसे सही तरीके से निपटना) से जुड़े होते हैं।
Keck School of Medicine of USC
उदाहरण:- एक किशोरी जो अपने शरीर को लेकर अत्यधिक चिंतित होकर भोजन करना बंद कर देती है। वह भूख लगने के बावजूद खाना नहीं खा पाती क्योंकि उसे पतला होना है।
E- आत्म-हानि और आत्महत्या के विचार
क्यों आता है आत्महत्या का ख्याल ? सुसाइड अपने आप में कोई मानसिक बीमारी नहीं है। इसके पीछे डिप्रेशन, बाइपोलर डिसऑर्डर, पर्सनालिटी डिसऑर्डर, किसी घटना का मानसिक असर और तनाव जैसी कई वजहें हैं। इस समस्या से जूझने वाले लोग अक्सर उदास रहते हैं और उसके मन में हर समय नकारात्मक ख्याल आते रहते हैं। कई बार ये अपने आप को परिस्थितियों के सामने इतना असहाय महसूस करते हैं कि उनके मन में आत्महत्या का ख्याल आने लगता है।
क्या है?- खुद को नुकसान पहुंचाने या अपनी जान लेने के विचार।
लक्षण:- अस्पष्ट चोटें, निराशा, सामाजिक अलगाव।
आंकड़े:- भारत में किशोरों में आत्महत्या तीसरा सबसे बड़ा मृत्यु का कारण है। यह देखा गया है कि पुरुषों में आत्महत्या की 40% और महिलाओं में 56% आत्महत्या की मौतें 15 से 29 वर्ष की आयु के बीच हुईं।
https://capmh.biomedcentral.com/articles/10.1186/s13034-024-00818-9
अमेरिकन स्टडी कहती है कि हमारे देश में प्रतिदिन 7वीं से 12वीं कक्षा के युवाओं द्वारा औसतन 5,400 से अधिक आत्महत्या के प्रयास होते हैं। आत्महत्या का प्रयास करने वाले पांच में से चार किशोरों ने स्पष्ट चेतावनी संकेत दिए हैं। जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित एक हालिया अध्ययन के अनुसार, जिन बच्चों को धमकाया जाता है, उनके आत्महत्या पर विचार करने की संभावना दोगुनी से भी अधिक होती है। https://americanspcc.org/teen-suicide-facts/
F- मादक द्रव्यों का सेवन और व्यसन
किशोरों में सिगरेट, शराब, अवैध ड्रग्स, तम्बाकू आदि का अत्यधिक सेवन आजकल आम दिख रहा है। इन्हें साँस के ज़रिए, इंजेक्शन के ज़रिए, धूम्रपान के ज़रिए, निगलने के ज़रिए लिया जा रहा है, जिससे शरीर में अस्थायी मनोवैज्ञानिक परिवर्तन होता है। इसके दूरगामी परिणाम बहुत घातक होते हैं। माता पिता और टीचर्स को चाहिए कि अपने बच्चे से छोटी उम्र से ही ड्रग्स और शराब के खतरों के बारे में बात करें। उन्हें जागरूक करें ।
प्रभाव:- मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ना, सामाजिक और पारिवारिक समस्याएं।
कारण:- तनाव, सामाजिक दबाव, जिज्ञासा।
आंकड़े:- 1 –एक अध्ययन के अनुसार, 10-19 वर्ष के किशोरों में 16% किसी न किसी मादक पदार्थ (तंबाकू, शराब, या अन्य ड्रग्स) का सेवन करते हैं। विशेष रूप से, स्कूल छोड़ चुके किशोरों में यह दर 40% तक पाई गई है। BioMed Central
2 -एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि मादक द्रव्यों का सेवन करने वाले 75.5% किशोरों ने 20 वर्ष की आयु से पहले ही इसका सेवन शुरू कर दिया था। इनमें से 24.6% ने 16 वर्ष की आयु से पहले ही मादक द्रव्यों का सेवन शुरू कर दिया था। PMC
3 – तंबाकू: 26.4% किशोरों द्वारा सेवन किया जाता है। शराब: 26.1% किशोरों द्वारा सेवन किया जाता है। गांजा (Cannabis): 9.5% किशोरों द्वारा सेवन किया जाता है। PMC
4 – भारत में 1.7% किशोर इनहेलेंट्स (सूंघने वाला नशा) का सेवन करते हैं, जो वयस्कों (0.58%) की तुलना में अधिक है। लगभग 18 लाख बच्चों को इनहेलेंट्स के सेवन के लिए सहायता की आवश्यकता है। nisd.gov.in
उपरोक्त आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में किशोरों के बीच मादक द्रव्यों का सेवन एक गंभीर सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता का विषय है। इस समस्या से निपटने के लिए परिवार, स्कूल, और समुदायों को मिलकर जागरूकता बढ़ाने, परामर्श सेवाएं प्रदान करने, और निवारक उपायों को लागू करने की आवश्यकता है।
G- स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का प्रभाव
किशोरों में फोन और सोशल मीडिया की लत एक गंभीर समस्या है, जो उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, शैक्षणिक प्रदर्शन और सामाजिक संबंधों पर नकारात्मक प्रभाव डालती है. इस लत के कारण किशोरों में अवसाद, चिंता, कम आत्मसम्मान, और अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं भी देखी गई हैं.
नकारात्मक प्रभाव:- नींद में कमी, आत्मसम्मान में गिरावट, अकेलापन, चिंता।
सकारात्मक पहलू:- हेल्थ ऐप्स, ऑनलाइन थेरेपी।
आंकड़े:-
स्मार्टफोन का उपयोग: ASER 2024 रिपोर्ट के अनुसार, 14-16 वर्ष के 82.2% किशोर स्मार्टफोन का उपयोग करना जानते हैं, लेकिन केवल 57% ही इसे शैक्षिक गतिविधियों के लिए उपयोग करते हैं, जबकि 76% किशोर सोशल मीडिया के लिए इसका उपयोग करते हैं। Hindustan Times+5ThePrint+5ET Now+5
लिंग आधारित अंतर: बॉयज़ में 78.8% और गर्ल्स में 73.4% सोशल मीडिया का उपयोग करते हैं। Hindustan Times 14-16 वर्ष के किशोरों में 36.2% लड़कों और 26.9% लड़कियों के पास अपना स्मार्टफोन है। Hindustan Times+3India Today+3ThePrint+3
आक्रामकता और भ्रम: Sapien Labs के एक अध्ययन में पाया गया कि 13-17 वर्ष के किशोरों में स्मार्टफोन के अत्यधिक उपयोग से आक्रामकता, वास्तविकता से अलगाव और भ्रम की घटनाएं बढ़ रही हैं। 13 वर्ष के 37% किशोरों ने आक्रामकता और 20% ने भ्रम का अनुभव किया। New York Post
अलगाव की भावना: एक अध्ययन में पाया गया कि 91% बच्चे अपने फोन से दूर होने पर चिंता महसूस करते हैं, और 90% बच्चे घर पर रहते हुए भी अधिकांश समय स्मार्टफोन पर व्यस्त रहते हैं। The Times of India
माता-पिता का प्रभाव: vivo-SwitchOff 3.0 रिपोर्ट के अनुसार, 74% माता-पिता मानते हैं कि उनके अत्यधिक स्मार्टफोन उपयोग से बच्चों के साथ उनके संबंध प्रभावित हुए हैं। Vivo
2. किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के कारण
हार्मोनल बदलाव:- किशोरावस्था में हार्मोन में बदलाव मानसिक अस्थिरता ला सकते हैं।
शारीरिक विकास:- शरीर में बदलाव के कारण आत्म-छवि पर प्रभाव।
सामाजिक दबाव:- दोस्तों, परिवार, स्कूल से अपेक्षाएं।
शैक्षिक तनाव:- परीक्षा, प्रदर्शन का दबाव।
परिवारिक समस्याएं:– तलाक, आर्थिक समस्याएं, पारिवारिक कलह।
डिजिटल युग:– सोशल मीडिया पर तुलना, साइबर बुलिंग।
स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं:- थायरॉइड, मोटापा, नींद की कमी आदि।
3. समाधान और प्रबंधन
1. खुला संवाद और परिवार का समर्थन
– किशोरों से बिना आलोचना के बात करें।
– उनकी भावनाओं को समझें और स्वीकार करें।
– नियमित समय पर बातचीत करें।
“तनाव से छुटकारा पाने का सबसे अच्छा तरीका है – हंसना।”
2. पेशेवर मदद लेना
– मनोवैज्ञानिक या काउंसलर से परामर्श।
– आवश्यक होने पर चिकित्सीय उपचार (मेडिकेशन)।
– थेरेपी जैसे CBT (संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी)।
“अपने मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखो, क्योंकि यह आपके जीवन की खुशियों की कुंजी है।”
3. तनाव प्रबंधन तकनीकें
– योग, ध्यान और श्वास-प्रश्वास अभ्यास।
– समय प्रबंधन और आराम के लिए योजना बनाना।
– हॉबी और खेल-कूद में भागीदारी।
“जिन्दगी चाहे जितनी कठिन लगे, हमेशा कुछ न कुछ होता है जो आप कर सकते हैं और जिसमे सफल हो सकते हैं।”
4. स्वस्थ जीवनशैली अपनाना
– संतुलित आहार और नियमित व्यायाम।
– पर्याप्त नींद लेना।
– स्क्रीन टाइम सीमित करना।
“खुद को प्यार करना मानसिक स्वास्थ्य का पहला कदम है।”
5. स्कूल और समुदाय की भूमिका
– मानसिक स्वास्थ्य शिक्षा और जागरूकता।
– सहायक वातावरण और मित्र समर्थन।
– साइबर बुलिंग रोकने के लिए नियम।
“अपने मन की सुनो, उसे समझो, और उसकी देखभाल करो।”
6. डिजिटल संतुलन बनाना
– स्मार्टफोन और सोशल मीडिया का नियंत्रित उपयोग।
– सकारात्मक और रचनात्मक कंटेंट को बढ़ावा देना।
– स्वास्थ्य ऐप्स और ऑनलाइन थेरेपी का उपयोग।
“यदि आप जीवन की चिंताओं से जीतना चाहते हैं तो, इस क्षण में जिएं, इस सांस में जिए।”
निष्कर्ष
सोचिये और विचार कीजिये ! क्या आपका बच्चा भी इस दर्द से जूझ रहा है ? हर माता – पिता और शिक्षक की यह जिम्मेदारी है की वो बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें| आंकड़े दर्शाते हैं कि भारत में किशोरों की समस्याएं बहुत गंभीर हैं जो कि चिंता का विषय है। इस समस्या से निपटने के लिए परिवार, स्कूल, और समुदायों को मिलकर जागरूकता बढ़ाने, परामर्श सेवाएं प्रदान करने, और निवारक उपायों को लागू करने की आवश्यकता है।
किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं जटिल होती हैं। समय पर पहचान और सही समाधान से इन चुनौतियों को पार किया जा सकता है। परिवार, स्कूल, समाज और स्वास्थ्य सेवाओं का समन्वित प्रयास आवश्यक है ताकि किशोर स्वस्थ, खुशहाल और आत्मनिर्भर बन सकें। मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना और इसे खुलकर चर्चा का विषय बनाना ही एक सुरक्षित और सशक्त युवा पीढ़ी का निर्माण करेगा।
इसलिए किसी भी तरह की समस्या होने पर संकोच ना करें, विशेषज्ञ से मिलें और समुचित उपचार करें।
यदि आपको ये लेख पसंद आया हो तो इसे अन्य लोगो तक पहुचायें, किसी प्रश्न या स्पष्टीकरण के लिए हमें ईमेल करें।
Internal Links; स्टूडेंट्स को पढ़ाई के लिए 7 मनोवैज्ञानिक स्मार्ट टिप्स
आज के युवा क्यों भटक रहे हैं ? एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
External Links;