आपने कभी कोई सपना देखा हो, लेकिन जब वो करीब आया तो आप ही पीछे हट गए? इंटरव्यू के ठीक पहले खुद को नकारना, किसी अच्छे रिश्ते को खुद तोड़ देना,
खुद को बार-बार ये कहकर रोक देना कि “मैं इसके लायक नहीं हूँ”
अगर हाँ, तो — ये Self-Sabotage है।
एक ऐसी मानसिक अवस्था जहाँ हम खुद ही अपनी सफलता की राह में रोड़े अटकाते हैं।
क्या आपको लगता है कि आप अपनी सफलता के लिए जरूरी कदम उठाने से बचते हैं, या फिर असफल होने से पहले ही हार मान लेते हैं? अगर हाँ, तो आप सेल्फ सैबोटेज (Self-Sabotage) की प्रक्रिया का शिकार हो सकते हैं।
यह एक ऐसी स्थिति है जहां आप अनजाने में या जानबूझकर अपने ही प्रयासों को विफल करते हैं, जिससे आपकी सफलता में रुकावट आती है। पर सवाल है: हम ऐसा करते ही क्यों हैं?
Self-Sabotage क्या है?
अपने ही प्रयासों, लक्ष्यों या खुशियों को खुद के द्वारा नुकसान पहुँचाना, चाहे वह जानबूझकर हो या अनजाने में। यह ऐसा व्यवहार है जिसमें इंसान खुद ही अपनी सफलता, खुशी या प्रगति में अड़चन बन जाता है।
मतलब खुद को जानबूझकर या अनजाने में उस राह से हटा देना, जो हमारी भलाई या सफलता की ओर ले जाती है।
यह व्यवहार भीतर छिपी असुरक्षाओं, भय, या आत्म-संदेह की उपज होता है। यह एक “अदृश्य दुश्मन” की तरह होता है — जो हमारे ही भीतर छिपा है।
सेल्फ सैबोटेज का अर्थ है, खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से नुकसान पहुँचाना या अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में बाधा डालना। इसमें व्यक्ति अपने आत्मविश्वास को कम करता है, खुद को दूसरों से कम आंकता है, और नकारात्मक विचारों से घिर जाता है।
यह क्यों होता है?
Self-sabotage कोई शारीरिक बाधा नहीं होती — यह मानसिक और भावनात्मक पैटर्न का परिणाम होती है। जब आपके अंदर:
- असुरक्षा (insecurity)
- डर (fear)
- आत्म-संदेह (self-doubt)
- पुरानी नकारात्मक मान्यताएँ (limiting beliefs)
गहराई से बैठी होती हैं, तो आप जाने-अनजाने खुद को गिराने वाले निर्णय लेने लगते हैं।
उदाहरण
1: आपको किसी शानदार नौकरी के लिए इंटरव्यू कॉल आया, लेकिन आपने बहाना बना दिया — “मैं तैयार नहीं हूँ।”
2: आप एक स्वस्थ रिश्ते में हैं, लेकिन छोटी-छोटी बातों पर लड़ाई करके उसे खराब कर देते हैं।
3: आप कोई नया प्रोजेक्ट शुरू करना चाहते हैं लेकिन बार-बार उसे टालते हैं, क्योंकि अंदर से डरते हैं कि आप फेल हो सकते हैं।
Self-sabotage एक “सुरक्षा तंत्र” की तरह भी काम करता है। आपका दिमाग सोचता है कि अगर आप कोशिश ही नहीं करेंगे, तो फेल होने का डर नहीं रहेगा। यानी आप डर से बचने के लिए ही खुद को रोक देते हैं।
लेकिन सच्चाई यह है कि यह डर ही आपको असफलता की ओर ले जाता है।
यह सिर्फ एक आदत नहीं, बल्कि यह हमारी भीतर छिपी मानसिक संरचनाओं और भावनात्मक अनुभवों का परिणाम होता है। हमारे निर्णय, व्यवहार और प्रतिक्रियाएँ अक्सर अचेतन स्तर पर जन्म लेती हैं, और यही वजह है कि हम खुद को रोकते हैं।
1. Impostor Syndrome – “मैं लायक नहीं हूँ” की भावना
यह वह मानसिक स्थिति है जहाँ व्यक्ति को लगता है कि उसकी सफलताएं असली नहीं हैं, और एक दिन लोग उसे “एक्सपोज़” कर देंगे।
उदाहरण: किसी ने टॉप किया, लेकिन वो सोचता है – “मैं तो बस किस्मत से पास हो गया, असल में मैं इतना अच्छा नहीं हूँ।” यह सोच हमें खुद को “सिद्ध” करने के दबाव में डालती है — और जब दबाव बढ़ता है, तो हम पीछे हटना आसान समझते हैं।
2. Fear of Failure AND Success – असफलता और सफलता दोनों का डर
अक्सर लोग असफल होने के डर से अपने लक्ष्यों की ओर कदम नहीं बढ़ाते। वे सोचते हैं कि अगर वे असफल हो गए तो उन्हें शर्मिंदगी या निराशा का सामना करना पड़ेगा। वहीं, कुछ लोग सफलता से भी डरते हैं। उन्हें लगता है कि सफल होने के बाद उन पर अधिक दबाव और जिम्मेदारियाँ आ जाएँगी, जिन्हें वे संभाल नहीं पाएँगे।
- Failure का डर – “अगर मैंने कोशिश की और फेल हो गया तो लोग क्या कहेंगे?”
- Success का डर – “अगर सफल हो गया तो ज़िम्मेदारी बढ़ जाएगी, सबकी उम्मीदें मुझसे जुड़ जाएँगी।”
यह double-edged fear हमें निष्क्रिय बना देता है — हम सोचते हैं “बिलकुल कुछ न करना ही सबसे सुरक्षित है।”
3. Low Self-Esteem – “मैं काफी नहीं हूँ” का भाव
जब हम खुद को कमतर मानते हैं, तो हम यह मानने लगते हैं कि हम कुछ अच्छा हासिल करने के लायक नहीं हैं। जिन लोगों का आत्म-सम्मान कम होता है, वे अपनी क्षमताओं पर विश्वास नहीं करते। उन्हें लगता है कि वे दूसरों से कम हैं और उन्हें सफलता का अधिकार नहीं है। यह भावना उन्हें अपने ही लक्ष्यों की ओर बढ़ने से रोकती है।
इसलिए जब कोई अच्छा मौका सामने आता है, हम:
- उसे ठुकरा देते हैं
- खुद को sabotage कर देते हैं
- या उसकी तरफ कदम ही नहीं बढ़ाते
यह आत्म-संदेह बचपन के अनुभवों, आलोचना, या comparison से पैदा होता है।
4. Comfort Zone का मोह – बदलाव से डर
कई लोग अपने कम्फर्ट जोन में बने रहना पसंद करते हैं। उन्हें बदलाव से डर लगता है और वे नए अनुभवों से बचते हैं। यह आदत उन्हें आगे बढ़ने से रोकती है और सेल्फ सैबोटेज का कारण बनती है। हमारे दिमाग का एक प्राथमिक लक्ष्य होता है:
“जो जाना-पहचाना है, वहीं रहो।” भले ही वो आदतें हानिकारक हों — जैसे टालमटोल करना, नकारात्मक सोच, खुद पर शक करना — लेकिन हम उनसे चिपके रहते हैं क्योंकि:
- बदलाव डरावना होता है
- नया रास्ता अनिश्चित लगता है
- असफलता का जोखिम नहीं लेना चाहते
Self-sabotage दरअसल comfort zone की सुरक्षा दीवार है।
5. Past Trauma या Negative Experiences
कई बार बचपन या पिछले अनुभवों में मिली अस्वीकृति, दर्द या निराशा के कारण व्यक्ति यह मान लेता है कि वह किसी भी चीज में सफल नहीं हो सकता। इस तरह के अनुभवों से व्यक्ति के मन में नकारात्मक विचार और आत्मविश्वास की कमी पैदा होती है, जो आगे चलकर सेल्फ सैबोटेज का कारण बनती है। अगर किसी को पहले यह अनुभव हो चुका है कि:
- उसकी कोशिशों की कद्र नहीं हुई
- उसने कोशिश की लेकिन रिजल्ट अच्छा नहीं आया
- बचपन में आलोचना या अस्वीकृति (rejection) का सामना किया
तो दिमाग “सुरक्षा के लिए” यह मान लेता है: “कोशिश मत कर — दर्द दोबारा न झेलना पड़े।”
यह unconscious protective mechanism Self-Sabotage बन जाता है।
6. Perfectionism – “सब कुछ एकदम सही होना चाहिए”
Perfectionist सोच वाले लोग सोचते हैं:
- “अगर ये परफेक्ट नहीं हो पाया तो मुझे शुरू ही नहीं करना चाहिए।”
- “छोटी सी गलती भी शर्मिंदगी का कारण बन सकती है।”
नतीजा ? या तो काम शुरू ही नहीं होता, या बार-बार टाला जाता है — और अंततः Self-Sabotage बन जाता है।
7. नकारात्मक आत्म-चर्चा (Negative Self-Talk)
अक्सर लोग खुद से बहुत कठोर तरीके से बात करते हैं। वे खुद को दोष देते हैं, अपनी गलतियों को बढ़ा-चढ़ाकर देखते हैं और खुद को हर चीज के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं। यह नकारात्मक आत्म-चर्चा उनके आत्मविश्वास को कमजोर करती है और सेल्फ सैबोटेज को बढ़ावा देती है।
https://www.psychologs.com/psychology-behind-self-sabotage/
सेल्फ सैबोटेज के लक्षण
कुछ प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं:
टालमटोल (Procrastination): काम को टालते रहना और समय पर पूरा न करना।
नकारात्मक विचार: खुद को दोष देना, हमेशा नकारात्मक बातें सोचना। खुद को बार-बार नीचा दिखाना
असफलता का डर: नए काम करने से डरना, पीछे हट जाना। काम अधूरा छोड़ देना
परफेक्शनिज्म: हर काम को पूरा करने की जिद, जिससे जिम्मेदारी लेने से बचना।
कम्फर्ट जोन से बाहर न निकलना: बदलाव से डरना, नए अनुभवों से बचना।
तनाव कम करने के गलत तरीके: शराब, ड्रग्स, ज्यादा खाना, सोशल मीडिया या गेमिंग पर ज्यादा समय बिताना।
रिश्तों को बिना कारण बिगाड़ देना: छोटी छोटी बातों पर लड़ाई झगड़ा करना रिश्तों में खटास भर देता है।
सफलता के मौके पर बहाने बनाना: ऐसे मौके आने पर डर कर जिम्मेदारी से बचने का प्रयास करना।
अपने टैलेंट को नजरअंदाज करना: अपनी कीमत न समझना और अपने टैलेंट को हमेशा लो कटेगरी में रखना।
सफलता की राह में हम खुद कैसे दीवारें खड़ी करते हैं?
दीवार | उदाहरण | असर |
---|---|---|
⛔ आत्म-संदेह | “क्या मैं सच में ये कर सकता हूँ?” | अवसरों से भागना |
⏰ टालमटोल | “कल देखूंगा, अभी मन नहीं है” | प्रगति में रुकावट |
💬 नेगेटिव Self-Talk | “मैं हमेशा फेल होता हूँ” | आत्मविश्वास में गिरावट |
💔 रिश्तों से डरना | “कोई साथ होगा तो दर्द भी होगा” | अकेलापन और मानसिक थकान |
😨 भय की कल्पना | “अगर फेल हो गया तो?” | कोई शुरुआत ही नहीं होती |
Self-Sabotage से बाहर कैसे निकलें?
1. पहचानें कि आप खुद को कैसे रोकते हैं (Identify your patterns)
Self-sabotage को हराना तब शुरू होता है, जब आप अपनी दोहराई जाने वाली आदतों को पहचानते हैं। सबसे पहले अपने सेल्फ सैबोटेजिंग व्यवहार को पहचानें। यह समझें कि आप कब और क्यों खुद को रोकते हैं। खुद के प्रति दयालु रहें। हर कोई गलतियाँ करता है, इसलिए खुद को दोष न दें। अपनी गलतियों से सीखें और आगे बढ़ें।
ध्यान दें:
- आप कौन से लक्ष्य बार-बार टालते हैं?
- क्या आप हर बार किसी मौके के आने पर “बहाने” बनाते हैं?
- आपके भीतर कौन से डर सक्रिय हो जाते हैं?
Self-awareness is the first key. जब आप अपनी Self-Sabotage आदतों को नाम दे पाते हैं, तो वे आप पर हावी नहीं रह पातीं।
2. Negative Self-Talk को Positive Affirmations से बदलें
Self-sabotage का सबसे बड़ा हथियार है — “मैं ये नहीं कर सकता” वाली सोच। अपने नकारात्मक विचारों को चुनौती दें और उन्हें सकारात्मक विचारों से बदलने की कोशिश करें। खुद से प्यार से बात करें और खुद को प्रोत्साहित करें।
इसे पलटें:
❌ “मैं फेल हो जाऊंगा।” ✅ “मैं प्रयास करूंगा, और हर स्थिति में सीखूंगा।”
❌ “लोग क्या कहेंगे?” ✅ “जो मेरे लिए सही है, वही मेरा रास्ता है।”
रोज सुबह Positive Affirmations बोलना शुरू करें।
3. “परफेक्ट” बनने का दबाव छोड़ें (Let go of perfectionism)
Self-sabotage अक्सर तब होता है जब हम सोचते हैं — “अगर पूरी तरह से तैयार नहीं हूँ, तो शुरू ही न करूं।”
याद रखिए, Action > Perfection होता है। छोटे imperfect steps भी आगे बढ़ने के संकेत होते हैं।
“80% तैयार हो, तो शुरू कर दो। बाकी रास्ते में सीख जाओगे।”
4. छोटे लेकिन तयशुदा लक्ष्य रखें (Set realistic micro-goals)
बड़े लक्ष्यों को छोटे-छोटे टुकड़ों में बाँटें। छोटे लक्ष्यों को पूरा करने पर खुद को शाबाशी दें। इससे आत्मविश्वास बढ़ेगा और सेल्फ सैबोटेज की संभावना कम होगी।
अगर आप सोचेंगे — “मुझे 10 किलो वजन घटाना है” — तो आप overwhelmed हो जाएंगे।
पर सोचिए — “मुझे आज सिर्फ 20 मिनट चलना है।” तो आप शुरू कर देंगे।
छोटे लक्ष्य जल्दी पूरे होते हैं, जिससे आत्मविश्वास बढ़ता है और Self-Sabotage की जगह Self-Belief पनपता है।
5. समय और ऊर्जा को ट्रैक करें (Track your time & energy)
कई बार हम अनजाने में अपना ध्यान “low value” चीजों में लगा देते हैं — जैसे बार-बार सोशल मीडिया देखना, फालतू comparison करना। बेकार की गप्पों में समय बिताना, आलस्य में चुपचाप पड़े रहना।
हफ्ते में 2 दिन समय और ऊर्जा का लेखा-जोखा रखिए: आपने समय कहाँ खर्च किया? किस समय पर ऊर्जा सबसे अच्छी थी?
Awareness leads to better focus.
6. Support System बनाएं (Find accountability)
जब आप अपने किसी करीबी को बताते हैं — “मैं ये करना चाहता हूँ, और तुम मुझे याद दिलाते रहना” — तो आपकी ज़िम्मेदारी और गंभीरता बढ़ जाती है। किसी को अपना हमराह बनाएं, इससे रास्ता आसान हो जायेगा।
अपने लक्ष्यों और संघर्षों को दोस्तों, परिवार या मेंटर के साथ साझा करें। एक अच्छा सपोर्ट सिस्टम आपको प्रोत्साहित करेगा और आपको सेल्फ सैबोटेज से बाहर निकलने में मदद करेगा। दोस्त, कोच, थेरेपिस्ट, या मेंटर से संपर्क करें। अकेले नहीं लड़ना है।
7. Therapy या Journaling से अंदर की परतें समझें
Self-Sabotage अक्सर पुराने जख्मों, अनुभवों और limiting beliefs की उपज होती है। अपने ट्रिगर्स (वे स्थितियाँ या भावनाएँ जो आपको सेल्फ सैबोटेज की ओर ले जाती हैं) को पहचानें। इसके लिए जर्नलिंग (डायरी लिखना) एक अच्छा तरीका है।
— रोज लिखें: “आज मैंने खुद को कहाँ रोका और क्यों?”
या किसी मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर की मदद लें। माइंडफुलनेस और मेडिटेशन जैसी तकनीकों से तनाव कम करें और अपने विचारों पर नियंत्रण पाएँ। Healing your past is key to unlocking your future.
प्रमुख अध्ययनों का सारांश
1. एजुकेशनल संदर्भ (Akın, Özçetin & Sertel et al.)
Frontiers in Psychology में प्रकाशित एक थ्योरिटिकल रिव्यू में वर्णित है कि छात्र अक्सर self-sabotage करते हैं क्योंकि उनमें असुरक्षा, low self-esteem, perfectionism, fear of failure, anxiety, और cognitive distortions होती हैं—जो सब मनोवैज्ञानिक बाधाएँ बन जाती हैं (frontiersin.org)।
2. Self‑Handicapping (Berglas & Jones, 1978)
Psychology Today में बताया गया है कि लोग अपने ego की रक्षा के लिए जानबूझकर डरावने विकल्प चुनते हैं, Self–Handicapping एक ऐसी मानसिक आदत है जिसमें हम जानबूझकर अपनी सफलता के रास्ते में खुद ही रुकावट डालते हैं — ताकि अगर हम असफल हो जाएं, तो हमें खुद को दोष न देना पड़े।
3. Verywell Mind – Root Psychological Causes
Verywell Mind की लेख में बताया गया है कि low self-esteem, cognitive dissonance, childhood trauma, perfectionism आदि कारणों से self-sabotaging व्यवहार जन्म लेते हैं। साथ ही, यह बताता है कि वजन बढ़ने की आदत भी इसी का रूप हो सकती है (verywellmind.com)।
4. Impostor Syndrome, Fear and Guilt over Success
Springer का शोध (2024) longitudinal design में बताता है कि fear of success और guilt over success व्यक्ति को impostor feelings की ओर ले जाते हैं, जिससे वे self-handicapping और self-sabotaging व्यवहार अपनाते हैं — खासकर जब उन्हें लगता है कि उनकी सफलता दूसरों पर दबाव बनाएगी (link.springer.com)।
निष्कर्ष
Self-Sabotage कोई कमज़ोरी नहीं, एक सीखने योग्य पैटर्न है।
आपने अगर अपने रास्ते में दीवारें खड़ी की हैं, तो आप उन्हें तोड़ भी सकते हैं।
याद रखिए — सफलता कोई बाहरी चीज़ नहीं, यह आपके भीतर की सोच को दोबारा गढ़ने से शुरू होती है।
Self-Sabotage कोई लक्षण नहीं, बल्कि एक गहरी मानसिक प्रक्रिया है — जिसे समझकर, स्वीकार करके और बदलकर ही खत्म किया जा सकता है। जब आप इस व्यवहार को पहचान लेते हैं, तो आप अपनी सोच और आदतों को Rewire करना शुरू कर सकते हैं।
सेल्फ सैबोटेज एक ऐसी मनोवैज्ञानिक समस्या है जो हमें अपने ही सपनों और लक्ष्यों की ओर बढ़ने से रोकती है। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे असफलता या सफलता का डर, पिछले अनुभव, आत्म-सम्मान की कमी, नकारात्मक आत्म-चर्चा, कम्फर्ट जोन से बाहर न निकलना और तनाव।
Self-Sabotage को हराना कोई एक दिन की प्रक्रिया नहीं, एक अभ्यास है। हर दिन जब आप खुद को थोड़ा बेहतर समझते हैं, और थोड़ा आगे बढ़ते हैं — तभी आप खुद को रोकने की बजाय को उठाना शुरू करते हैं।
“अपने ही दुश्मन मत बनो — अपने सबसे अच्छे साथी बनो।”
❓ FAQs – Self-Sabotage से जुड़े सामान्य सवाल
Q1: Self-Sabotage का क्या मतलब होता है?
Q2: Self-Sabotage किन-किन रूपों में सामने आता है?
Q3: क्या Self-Sabotage जानबूझकर किया जाता है?
Q4: Self-Sabotage और Low Self-Esteem का क्या संबंध है?
Q5: क्या Self-Sabotage से बाहर निकलना संभव है?
हाँ, बिल्कुल। जब आप अपने नकारात्मक पैटर्न को पहचानते हैं, और उन्हें सकारात्मक आदतों से बदलने का अभ्यास करते हैं, तब self-sabotage धीरे-धीरे कम होने लगता है। Journaling, therapy, mindfulness और छोटे-छोटे लक्ष्य इसमें मदद करते हैं।
Q6: Self-Sabotage और Procrastination क्या एक ही हैं?
नहीं, दोनों अलग हैं — लेकिन अक्सर जुड़े होते हैं।
Procrastination (काम टालना) self-sabotage का एक रूप हो सकता है, लेकिन self-sabotage और भी कई रूपों में आता है जैसे कि सफलता का डर, self-doubt, या रिश्तों से भागना।
Q7: Self-Sabotage किस उम्र या प्रोफेशन में ज़्यादा होता है?
यह किसी भी उम्र, प्रोफेशन या सामाजिक स्थिति में हो सकता है। खासतौर पर: छात्र, perfectionist लोग, high-pressure jobs में काम करने वाले, वो लोग जिन्हें childhood में ज्यादा आलोचना या अस्वीकृति मिली हो
Q8: क्या Self-Sabotage से उबरने के लिए थैरेपी ज़रूरी है?
ज़रूरी नहीं, लेकिन थेरेपी बहुत मददगार हो सकती है।
Cognitive Behavioural Therapy (CBT) जैसे तरीकों से व्यक्ति अपने सोचने और प्रतिक्रिया देने के तरीकों को समझता है और बदलता है। Journaling और self-reflection भी असरदार उपाय हैं।
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