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रावण का महिमामंडन: बुराई को सही ठहराने का मनोविज्ञान

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रावण का महिमामंडन: बुराई को सही ठहराने का मनोविज्ञान

रावण का महिमामंडन क्यों ?

दशहरा भारत का ऐसा पर्व है जो अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है। इस दिन रावण दहन करके हम यह संदेश देते हैं कि चाहे बुराई कितनी ही शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः विजय सत्य और धर्म की ही होती है।

लेकिन इसके बावजूद समाज में एक धारा ऐसी भी है, जो रावण का महिमामंडन करती है। कुछ लोग उसे विद्वान, शिवभक्त, महान सम्राट और वीर के रूप में प्रस्तुत करते हैं।

सवाल यह उठता है कि जब रावण ने सीता हरण जैसा अनैतिक कार्य किया, तब भी लोग उसे “महान” क्यों मानते हैं? किसी गलत या अनैतिक पात्र का गौरवगान क्यों ? क्या यह सिर्फ ऐतिहासिक दृष्टिकोण है या इसके पीछे कोई गहरी मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया छिपी है? आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

रावण का बहुआयामी व्यक्तित्व

रावण को केवल “राक्षस” मानना अधूरा दृष्टिकोण है। वह एक: महान पंडित और ज्योतिषी था, संगीत का ज्ञाता और वीणा वादक था, शिव का परम भक्त था, शक्तिशाली शासक था। लोग अक्सर ऐसे बहुआयामी व्यक्तित्व से प्रभावित होते हैं। यह “Hero-Worship” की मनोवृत्ति है, जहाँ लोग किसी के एक पहलू (ज्ञान, शक्ति, भक्ति) को देखकर उसकी गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं।

1. ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक वजहें

– दक्षिण भारत, श्रीलंका, उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश में कुछ जगहों पर रावण की पूजा या आदर सांस्कृतिक पहचान, सामाजिक विद्रोह या जातीय गर्व का प्रतीक बन गया है।
– श्रीलंका तथा तमिल परंपरा में रावण को एक महान राजा, बुद्धिजीवी और रचनात्मक व्यक्तित्व के तौर पर देखा जाता है।
– रावण के विशेष गुण, जैसे वेदों का पारंगत होना, आयुर्वेद, वास्तुशास्त्र, संगीत में निपुणता, ये सब उसकी विद्वता का महिमामंडन करते हैं।

2. आधुनिक विमर्श और विरोधी नजरिया

– मौजूदा बहसें अच्छाई-बुराई की पारंपरिक परिभाषा को चुनौती देती हैं – “हर बड़ा विलेन सौ फीसदी बुरा नहीं होता, उसके भीतर भी इंसानी जटिलताएं और अच्छाई छुपी रहती है” इस तरह के तर्क दिए जाते हैं।
– रावण के गुणों के जरिए उसके मनोविज्ञान, मोटिवेशन, गलत फैसलों और इंसानी कमजोरियों को समझने की वैज्ञानिक कोशिश की जाती है।

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बुराई का महिमामंडन – मनोविज्ञान के परिप्रेक्ष्य में

रावण एक ज्ञानी और शक्तिशाली राजा था, लेकिन अहंकार में उसने कई गलतियाँ कीं, जैसे कि यज्ञों को बाधित करना, ऋषियों की हत्या करना और सीता माता का अपहरण करना, जिससे कि वह रामायण में खलनायक के रूप में चित्रित है। अब उसकी गलतियों को अनदेखा करके उसका महिमामंडन करना, ये मानसिक समस्या को दर्शाता है।  इसके पीछे निम्न कारण हो सकते हैं –

1.  Psychology of Anti-Hero – Anti-Hero का आकर्षण

मनोविज्ञान कहता है कि इंसान को सिर्फ आदर्श नायक (Hero) ही नहीं, बल्कि “Anti-Hero” भी आकर्षित करता है। पारंपरिक हीरो के अलावा, समाज अक्सर ऐसे पात्रों की तरफ खिंचता है जो मजबूत, विद्रोही, ज्ञानवान या सिस्टम से अलग होकर अपने नियम बनाते हैं।

  • Anti-hero में बहुआयामी व्यक्तित्व की वजह से curiosity और जुड़ाव की भावना पैदा होती है।
  • Anti-Hero वह होता है जो नियमों को तोड़ता है, विद्रोह करता है और अपनी शर्तों पर जीता है।
  • रावण का सामर्थ्य, बुद्धिमत्ता और बगावती स्वभाव कई लोगों के “छिपे हुए विद्रोही मन” से मेल खाता है।
  • यही कारण है कि लोग उसे नायक के स्थान पर “ट्रेजिक हीरो” मानते हैं।

2. Projection Psychology – अपनी इच्छाओं का प्रतिबिंब

कई बार लोग अपनी दबी हुई इच्छाओं और भावनाओं को किसी पात्र पर थोप देते हैं (Projection)। या फिर अपनी दबाई हुई इच्छाओं, कमजोरियों या आदतों को कथा-पात्रों में देखना पसंद करते हैं।

  • रावण की शक्ति, विद्वता, और सामाजिक बागी होना हमारी छुपी इच्छाओं का प्रतिबिंब है
  • इसीलिए बहुत लोग उसमें अपने गुण प्रोजेक्ट करने लगते हैं।
  • जैसे, अगर कोई व्यक्ति समाज के नियमों से दबा हुआ है, तो वह रावण के विद्रोह में खुद को देखता है।
  • वह रावण को “अपनी छिपी हुई शक्ति” का प्रतीक मानकर उसकी महिमा गाने लगता है।

3. Moral Disengagement – नैतिक अलगाव

यह मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है जिसमें इंसान गलत काम को सही ठहराने के लिए तर्क देता है। जब किसी पात्र का गलत कार्य सामाजिक या व्यक्तिगत तर्कों से जायज़ ठहराया जाने लगता है, तो नैतिक जिम्मेदारी से पीछा छुड़ाने की प्रवृत्ति बढ़ती है।

  • जैसे, “रावण ने सीता का हरण किया लेकिन उसके कई गुण भी थे”, “उसका विद्रोह प्रासंगिक था”।
  • “रावण ने सीता का हरण किया, लेकिन वह महान विद्वान था, शिव भक्त था।”
  • यहाँ लोग अच्छाइयों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं और बुराइयों को छोटा कर देते हैं।

4. Cognitive Dissonance – मानसिक द्वंद्व

जब किसी पात्र में अच्छाई और बुराई दोनों होते हैं, तो इंसान के मन में द्वंद्व (Confusion) पैदा होता है। किसी गलत को सही ठहराने के लिए मन दोहरा व्यवहार करता है। लोग रावण की महानता और उसकी गलतियों के बीच फर्क करने के लिए मन में द्वंद्व झेलते हैं, जिससे वह character complexity को अपना लेते हैं। जब किसी व्यक्ति का कर्म उसकी नैतिकता/सोच से टकराता है, तो असंतुलन पैदा होता है। इसे कम करने के लिए, वह अपने या मित्र पात्रों की गलतियों को तर्कों, कहानियों या भावनाओं के सहारे अन्य तरह से देखता है।

  • रावण विद्वान भी था और अत्याचारी भी।
  • इस द्वंद्व को कम करने के लिए लोग उसकी अच्छाइयों को महिमामंडित करते हैंं।
  • बुराइयों को “छोटी गलती” मानकर अनदेखा कर देते हैं।
  • सीताजी का अपहरण तो किया लेकिन उन्हें छुआ तक नहीं।

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5.  Rebellion Psychology – विरोध की मनोवृत्ति

समाज में हमेशा एक वर्ग ऐसा होता है जो “Mainstream” से अलग दिखना चाहता है। रावण सिस्टम, सामाजिक आर्डर, और established norms के खिलाफ एक विद्रोही के रूप में देखा जाता है। जो लोग सिस्टम से असंतुष्ट हैं, वे रावण के विद्रोही पक्ष को प्रेरक मानते हैं।

  • जहाँ पूरा समाज राम को पूजता है, वहीं कुछ लोग रावण की पूजा करके अलग पहचान बनाते हैं।
  • यह एक प्रकार का सामाजिक विद्रोह (Social Rebellion) है।
  • ऐसा करने से उनके मन को संतुष्टि मिलती है कि वो सब लोगों से अलग सोचते है, या करते हैं।

6. Shadow Psychology – अंधेरे पक्ष की खींच

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक Carl Jung के अनुसार हर इंसान के भीतर एक “Shadow” होता है – यानी उसका छिपा हुआ अंधेरा पक्ष। इंसान के अचेतन मन में बहुत सी इच्छाएं रहती हैं, जिन्हें समाज में खुलकर नहीं जीया जा सकता। रावण के व्यक्तित्व की जटिलता, उसकी कमजोरियां और शक्तियां ऐसे छाया गुणों का reflection है — लोग इन्हें आकर्षक मानते हैं।

  • इंसान इस छाया को समाज में प्रकट नहीं कर पाता।
  • जब वह किसी शक्तिशाली और विद्रोही चरित्र (जैसे रावण) को देखता है, तो उसका Shadow उससे जुड़ जाता है।
  • परिणामस्वरूप वह उसे पसंद करने लगता है, भले ही वह गलत हो।

7. Rationalization – तर्कसंगत बनाना

जब इंसान या समाज किसी गलत काम को सही ठहराता है, तो मन में तर्क-बुद्धि (rationalization) की प्रक्रिया शुरू होती है: “उसकी मजबूरी थी”, “ऐसा करना जरूरी था”, “वास्तव में वह गलत नहीं था”। जिसे आप दूसरे शब्दों में कुतर्क कहते है उसे ही वो तर्क बताते हैं।

  • रावण परम ज्ञानी था, उसकी गलती परिस्थितियों का परिणाम थी”,
  • “उसने जो किया, उसकी ठोस वजहें थीं” “क्या अपनी बहन के अपमान का बदला लेना गलत है ?”
  • ऐसी सोच समाज को उसके अपराधों से सहानुभूति की ओर ले जाती है।
  • खास समुदायों के लिए रावण ‘अपने’ का प्रतीक है; जो सामाजिक वर्ग, संस्कृति, व्यक्तिगत पहचान से भी जुड़ी होती है।

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8. Social Justification  – सामाजिक औचित्य

जब कोई समाज या वर्ग इतिहास में अपनी पहचान और आदर्श खोजता है, तब वह उन पात्रों को चुनता है जिनमें वे अपनी विरासत, गौरव या समस्याओं का प्रतिबिंब देखते हैं। इस प्रक्रिया में: समाज या उपसमूह किसी चर्चित या शक्तिशाली पात्र (जैसे रावण) के सकारात्मक गुणों, विद्वता, पराक्रम, सांस्कृतिक योगदान या विद्रोह को ज़ोर-शोर से प्रस्तुत करता है।

  • रावण के महिमामंडन में दक्षिण भारत, श्रीलंका या कुछ जातीय समूह उसे नायकत्व का प्रतीक बनाते हैं।
  • समकालीन विमर्श में, कई बार यह खोज नया हीरो गढ़ने की इच्छा के तहत होती है। इसमें मानवीय भूलों को अलग रखकर गौरवशाली जो कुछ हो, उसे आदर्श ठहराया जाता है।
  • यह औचित्य इसलिए भी पनपता है क्योंकि समाज को लगता है कि पुराने आदर्श (जैसे राम) अब उनकी अनुभूतियों, संघर्षों या पहचान को पूरी तरह प्रतिनिधित्व नहीं करते।

 9. Victimization Complex – पीड़ित भाव

कई बार समाज या व्यक्ति किसी बुरे या विवादास्पद पात्र को “गलत समझे गए हीरो”, ‘समय का शिकार’, या ‘समाज/इतिहास द्वारा अन्याय के भुक्तभोगी’ के तौर पर पेश करता है: रावण के संदर्भ में, कुछ विचारधाराएं उसे ‘victim of circumstances’ यानी परिस्थितियों का मारा हुआ व्यक्ति बताती हैं—“अपना सम्मान बचाने के लिए किया”, “बहन के अपमान का प्रतिशोध”, “सिस्टम ने उसके साथ अन्याय किया”।

  • Victimization Complex तब गहराता है जब लोग मानते हैं कि उसकी कथा को ‘विजेताओं’ ने अपने हिसाब से लिखा, हारने वाले (रावण/कौरव) सही मायने में “क्रूर” नहीं थे।
  • समाज के वंचित या किनारे किए गए समूह अक्सर ऐसे पात्रों से खुद की तुलना करते हैं और कहते हैं—“हमें भी रावण की तरह गलत समझा गया”, जिससे रावण sympathetic figure बन जाता है।
  • यह प्रक्रिया पात्र की गलतियों पर सहानुभूति, जस्टिफिकेशन और ‘alternative hero narrative’ की ओर ले जाती है।

निष्कर्ष

रावण का महिमामंडन सिर्फ धार्मिक आस्था नहीं है, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक परिघटना है। लोग उसकी विद्रोही छवि, बहुआयामी व्यक्तित्व और शक्ति से प्रभावित होकर उसकी गलतियों को नजरअंदाज कर देते हैं। यह मनोविज्ञान हमें यह समझाता है कि इंसान अक्सर बुराई की “चमक” में अच्छाई को देखना बंद कर देता है।

इन प्रक्रियाओं में, समाज या व्यक्ति नए हीरो, सांस्कृतिक गौरव, सामाजिक पहचान, या पीड़ित भाव से जुड़ाव के लिए घटनाओं/पात्रों पर अपने मुताबिक व्याख्या थोपता है। इससे किसी भी बुराई, विवाद या कमजोरी को पीछे छोड़ अच्छा पहलू बाहर लाया जाता है।

लेकिन दशहरे का असली संदेश यही है कि ज्ञान और शक्ति तभी सार्थक हैं, जब वे नैतिकता और धर्म के साथ हों। मिथकों की दोहरी व्याख्या सतर्कता की जरूरत है — अनैतिक कृत्यों को glamorize करने से भावी पीढ़ी में नैतिक भ्रम की स्थिति पैदा हो सकती है।
रावण का पतन इस बात की चेतावनी है कि चाहे आप कितने ही विद्वान या शक्तिशाली क्यों न हों, अगर आपके कर्म अधर्म से जुड़े हैं, तो अंततः हार निश्चित है।

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FAQs

Q. क्या रावण का महिमामंडन समाज के लिए सही है?
उत्तर: केवल उसकी अच्छाइयों को महत्व देना व उसकी गलतियों को नजरअंदाज करना नैतिक नजरिए से सही नहीं है। लेकिन उसके जीवन से सीखना, अपनी कमजोरियों को पहचानना, मानसिक द्वंद्वों का विश्लेषण करना बेहतर दृष्टिकोण है।

Q. किसी गलत को सही ठहराना कैसे मनोविज्ञान में आता है?
उत्तर: इसे rationalization, cognitive dissonance कहते हैं। जब इंसान दुविधा या guilt झेल रहा होता है, तो वह अपने या दूसरों के गलत काम को तर्कों के सहारे सही बताने लगता है

Q. क्या रामायण का रावण पूरी तरह गलत था?
उत्तर: नहीं, उसमें ज्ञान, शक्ति, देवी भक्ति आदि कई विशिष्टताएं थीं। लेकिन उसके अहंकार और गलत फैसलों ने उसे पतन की ओर ढकेला। अहंकार, लालच, क्रोध, वासनाएं, सत्ता का दुरुपयोग — ये मानव कमजोरियां हैं, जिन्हें समाज रावण के 10 सिर का प्रतीक मानता है।

https://www.ichowk.in/society/dusshera-debate-rises-calling-lord-ram-anti-women-and-ravana-a-great-personality/story/1/16078.html

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