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क्या प्यार सच में अंधा होता है ? मनोवैज्ञानिक नजरिया

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क्या प्यार सच में अंधा होता है ? मनोवैज्ञानिक नजरिया

Love Is Blind ?

हम सबने कभी न कभी ये सुना है –”प्यार अंधा होता है।” पर क्या वाकई ऐसा होता है ? क्या जब इंसान प्यार में होता है, तो वह सामने वाले की अच्छाई-बुराई देख नहीं पाता ? इस सवाल का जवाब हमें मनोविज्ञान (Psychology) से मिलता है।

प्रेम एक जटिल और गहरे अनुभव का नाम है, जो इंसान के मानसिक और भावनात्मक पहलुओं को प्रभावित करता है। प्रेम को अक्सर “अंधा” कहा जाता है, लेकिन क्या यह सच में अंधा होता है ? मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से प्रेम के इस कथन को समझने के लिए हमें विभिन्न मानसिक, भावनात्मक और जैविक पहलुओं को देखना होगा। आइए, इस विषय पर का गहराई से मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करें।

प्रेम और मानसिक अवस्था

प्रेम के दौरान, व्यक्ति का मस्तिष्क विभिन्न रसायनों जैसे डोपामिन, ऑक्सीटोसिन, और सेरोटोनिन से भर जाता है। ये रसायन हमें खुशी, संतुष्टि और जुड़ाव का एहसास कराते हैं। जब हम किसी को पसंद करते हैं या उनसे प्रेम करते हैं, तो हमारा मस्तिष्क इस भावनात्मक जुड़ाव को प्राथमिकता देता है और अन्य किसी भी नकारात्मक या छुपे हुए पहलू को नज़रअंदाज कर सकता है।

जिससे कि हम उस व्यक्ति के नकारात्मक पहलुओं को अनदेखा करते हैं और उनके सकारात्मक गुणों पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं। यही वजह है कि शुरुआत में हमें वो इंसान परफेक्ट लगता है।

“प्रेम अंधा है”–एक सांस्कृतिक और भावनात्मक अवधारणा

जब इंसान प्यार में होता है, तो कई बार वह सोच-समझ कर फैसले नहीं ले पाता। वह अपने पार्टनर की गलतियों को नज़रअंदाज़ करता है, उनके लिए बहाने ढूंढता है और हर चीज़ में उनकी अच्छाई ही देखता है। इसीलिए लोग कहते हैं कि प्यार अंधा होता है – क्योंकि उस वक्त हमारा तर्क (Logic) थोड़ा पीछे चला जाता है और हमारी भावनाएं आगे आ जाती हैं।

यह कहना कि प्रेम “अंधा” है, एक सांस्कृतिक अवधारणा है, जिसका गहरा संबंध हमारे भावनात्मक अनुभवों से है। जब हम किसी से प्रेम करते हैं, तो हमारी मानसिकता और तर्कक्षमता पर उसका प्रभाव पड़ता है। हम अपने पार्टनर के दोषों को अनदेखा करते हैं और उनका आदर्श रूप में चित्रण करते हैं।

यह “अंधापन” सच में एक भावना से संबंधित है, यहां हमारी भावना और तर्क के बीच एक असंतुलन पैदा हो जाता है। हम उस व्यक्ति की हर बात और आदत को इस नज़रिए से देखने लगते हैं कि वह हमारे लिए सही है, भले ही वह वास्तविकता से परे हो, उसमें कोई सच्चाई ना हो।

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मनोविज्ञान क्या कहता है ?

1. दिमाग का खेल:

प्यार में हम जिस इंसान की तरफ खिंचते हैं, उसके लिए दिमाग में ‘इनाम जैसा एहसास’ पैदा होता है। यही वजह है कि हम बार-बार उसी इंसान के बारे में सोचते हैं और उसकी तरफ खिंचते चले जाते हैं। 

2. सिर्फ वही दिखता है जो हम देखना चाहते हैं:

इसे कहते हैं “Confirmation Bias” यानी हम वही बातें मानते हैं जो हमारे मन के मुताबिक होती हैं। अगर हम सोच लेते हैं कि वो इंसान अच्छा है, तो फिर हम उसकी बुरी बातों को भी नजरअंदाज कर देते हैं और अगर दिमाग में ये धारणा बैठ गयी कि कोई इंसान बुरा है तो फिर उसकी अच्छी बातों को भी हम ध्यान नहीं देते हैं।

3. प्यार की ज़रूरत:

हर इंसान को प्यार, अपनापन और समझ की जरूरत होती है। कई बार अकेलेपन या डर की वजह से भी हम किसी से जुड़ जाते हैं, भले ही वो हमारे लिए सही न हो। उस वक्त प्यार में हमारी तर्कशक्ति कमजोर हो जाती है। ऐसे कठिन समय का फायदा उठाने वाले भी बहुत लोग होते हैं। क्योंकि इस दौरान, हमारी तर्कशक्ति कमजोर होती है और हम भावनाओं के आधार पर फैसले लेते हैं।

4. सच्चाई को नजरअंदाज करना:

जब भावनाएं बहुत ज्यादा होती हैं, या ऐसे कहें की जब हम प्यार में गले तक डूबे रहते हैं तो हम उस इंसान की बुरी आदतों को “चलो कोई बात नहीं” कहकर नजरअंदाज कर देते हैं। पर धीरे-धीरे यही बातें बाद में हमें तकलीफ देती हैं।

5. क्या प्यार में सोच-विचार नहीं होता ?

होता है, लेकिन शुरूआती प्यार में भावनाएं इतनी तीव्र होती हैं कि दिमाग की सोचने-समझने की ताकत थोड़ी धीमी पड़ जाती है। प्यार के सिवा कुछ और सोचने को दिमाग तैयार ही नहीं होता। लेकिन जैसे-जैसे रिश्ता आगे बढ़ता है, लोग एक-दूसरे को और बेहतर समझने लगते हैं – तब जाकर असलियत सामने आती है।

6. कनेक्शन और मस्तिष्क की कार्यप्रणाली:

जब हम किसी से गहरे भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं, तो मस्तिष्क में एक विशेष प्रकार का रसायन रिलीज़ होता है जो हमें मानसिक रूप से उस व्यक्ति के प्रति अधिक आकर्षित और जुड़ा हुआ महसूस कराता है। यह स्थिति तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों रूपों में “अंधापन” पैदा कर सकती है, क्योंकि हम अपनी सोच में उस व्यक्ति के दोषों को कम कर देते हैं और केवल उनकी अच्छाई पर ध्यान केंद्रित करते हैं।

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प्यार और मानसिक सेहत

प्यार बहुत खूबसूरत एहसास है, लेकिन अगर आंखें पूरी तरह बंद कर ली जाएं, तो ये परेशानी भी बन सकता है। गलत रिश्ते में फंसे रहना, बार-बार चोट खाना, या अपने आपको बदलते चले जाना – ये सब बातें हमें मानसिक तौर पर थका सकती हैं। इसलिए प्यार करते वक्त थोड़ा सोच-विचार भी ज़रूरी है।

यह ध्यान में रखते हुए कि प्रेम एक शक्तिशाली भावनात्मक अनुभव है, यह महत्वपूर्ण है कि हम अपनी मानसिक और भावनात्मक स्थिति को समझें। प्रेम की “अंधी” अवस्था कभी-कभी मानसिक स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा कर सकती है, क्योंकि व्यक्ति अपनी वास्तविकता से बाहर निकल सकता है और अपनी समस्याओं को अनदेखा कर सकता है। यह स्थिति कभी-कभी रिश्तों में असंतोष या निराशा पैदा कर सकती है, जब लोग अपने साथी के दोषों को पहचानने में विफल होते हैं और उनका सामना नहीं कर पाते।

प्यार में क्यों होता है “अंधापन”?

प्यार कभी-कभी वाकई में “अंधा” हो सकता है – क्योंकि उस वक्त इंसान सिर्फ दिल से सोचता है, दिमाग से नहीं। हम सिर्फ अच्छाइयां देखते हैं और कमियों को अनदेखा कर देते हैं। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता है, हम समझने लगते हैं कि सच्चा प्यार वो है जो अच्छे-बुरे सबको स्वीकार करे – आंख मूंद कर नहीं, बल्कि आंखें खोल कर।

हम जब किसी से गहरे प्यार में होते हैं, तो हमारी सोच और तर्कशक्ति पर बहुत ज्यादा असर पड़ता है। उस समय हम अपने पार्टनर की उन कमियों को नजरअंदाज कर देते हैं  जो शायद किसी और में होती तो हम बर्दाश्त नहीं करते। । यह स्थिति अक्सर “प्यार अंधा है” कहने के कारण बनती है, क्योंकि हम उस वक्त अपनी भावनाओं के हिसाब से सोचते हैं, तर्क नहीं।

प्यार में तर्क और भावनाओं के बीच एक महीन रेखा होती है। प्यार के दौरान हमारा दिमाग बहुत ज्यादा भावनाओं से प्रभावित होता है, जिससे हम कुछ चीजों को अनदेखा कर सकते हैं। हालांकि, जैसे-जैसे समय बीतता है, हमें अपनी भावनाओं और तर्क के बीच संतुलन बनाने की आवश्यकता होती है। इसलिए, “प्यार अंधा होता है” एक आंशिक सच है, लेकिन यह पूरी तरह से सही नहीं है।

Love is Blind

महत्वपूर्ण रिसर्च और उनके निष्कर्ष:

इस विषय पर कई महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक शोध और स्टडीज़ हुई हैं, जो यह समझाने में मदद करती हैं कि क्यों लोग प्यार में होने पर अकसर “अंधे” हो जाते हैं या तर्क से हटकर फैसले लेने लगते हैं। नीचे कुछ प्रमुख रिसर्च और उनके निष्कर्ष दिए गए हैं:

1. Fisher et al. (2005) – Love and the Brain

स्टडी का विषय:
डॉ. हेलेन फिशर (Helen Fisher), एक प्रमुख न्यूरोसाइंटिस्ट, ने FMRI (brain scan) की मदद से यह देखा कि रोमांटिक प्यार में डूबे लोगों का दिमाग कैसे काम करता है।

निष्कर्ष:

  • प्यार में होने पर दिमाग के वही हिस्से सक्रिय हो जाते हैं जो कोकीन जैसी नशे की दवाओं के सेवन के समय सक्रिय होते हैं।

  • यह हिस्सा “reward system” कहलाता है (specifically the ventral tegmental area और caudate nucleus) और यह डोपामिन रिलीज करता है, जिससे इंसान को अत्यधिक सुखद अनुभूति होती है।

  • यही कारण है कि प्यार में लोग “hooked” या लती की तरह व्यवहार करते हैं और पार्टनर की कमियों को नहीं देख पाते।

https://scholar.google.co.in/scholar?q=.+Fisher+et+al.+(2005)+%E2%80%93+Love+and+the+Brain&hl=en&as_sdt=0&as_vis=1&oi=scholart

2. Aron et al. (1997) – Early Stage of Love

स्टडी का विषय:
इस शोध में यह देखा गया कि प्यार की शुरुआत में दिमाग कैसे काम करता है और लोग कैसे अपने पार्टनर को आदर्श रूप में देखने लगते हैं।

निष्कर्ष:

  • प्यार की शुरुआत में लोग अपने साथी को एकदम “परफेक्ट” मानते हैं और उसकी बुरी बातों को नज़रअंदाज़ करते हैं।

  • यह स्थिति ज़्यादा समय तक नहीं चलती, लेकिन शुरुआत में यह बहुत प्रभावशाली होती है।

  • इसे “idealization bias” कहा जाता है – यानी हम अपने पार्टनर की एक आदर्श छवि बना लेते हैं।

https://scholar.google.co.in/scholar?q=Aron+et+al.+(1997)+%E2%80%93+Early+Stage+of+Love&hl=en&as_sdt=0&as_vis=1&oi=scholart

3. Gonzaga et al. (2001) – Emotional Suppression in Love

स्टडी का विषय:
यह शोध बताता है कि कैसे प्यार में पड़े लोग दूसरों की गलतियों को माफ करने और नजरअंदाज करने के लिए मानसिक रूप से तैयार रहते हैं।

निष्कर्ष:

  • प्यार में लोग अपनी भावनाओं को इस तरह ढाल लेते हैं कि वे अपने पार्टनर की बुरी बातों को “जस्टिफाई” कर लेते हैं।

  • ये लोग ज़्यादा सहनशील और क्षमाशील होते हैं।

  • इसका संबंध ऑक्सीटोसिन (प्यार का हार्मोन) से है, जो अपनापन और बंधन को बढ़ाता है।

https://scholar.google.co.in/scholar?q=Gonzaga+et+al.+(2001)+%E2%80%93+Emotional+Suppression+in+Love&hl=en&as_sdt=0&as_vis=1&oi=scholart

4. Bartels & Zeki (2000) – Brain scans of people in love

स्टडी का विषय:
FMRI स्कैन द्वारा यह जानने की कोशिश की गई कि प्यार में होने पर दिमाग के कौन से हिस्से सक्रिय या निष्क्रिय हो जाते हैं।

निष्कर्ष:

  • जब लोग प्यार में होते हैं, तो उनके दिमाग का “judgment center” (prefrontal cortex) कम सक्रिय हो जाता है।

  • यानी, सोचने-समझने और फैसले लेने वाला हिस्सा धीमा हो जाता है।

  • इसका मतलब है कि प्यार में हम कम तर्क और ज्यादा भावना से सोचते हैं।

https://pubmed.ncbi.nlm.nih.gov/11117499/

5. Baumeister & Leary (1995) – Need to Belong Theory

स्टडी का विषय:
इस थ्योरी में बताया गया कि इंसानों में जुड़ाव और प्यार की एक बुनियादी ज़रूरत होती है।

निष्कर्ष:

  • हम सबमें एक “belongingness” की जरूरत होती है – यानी किसी से जुड़ाव महसूस करने की।

  • यही ज़रूरत हमें जल्दी-जल्दी इमोशनल बांड बनाने को प्रेरित करती है, भले ही वो तर्क के हिसाब से सही न हो।

https://psycnet.apa.org/record/1995-29052-001

इन सभी रिसर्च का निचोड़ यह है कि: प्यार एक जैविक, मानसिक और भावनात्मक अनुभव है जिसमें दिमाग के कुछ हिस्से बेहद सक्रिय और कुछ कम सक्रिय हो जाते हैं। यह स्थिति हमें ऐसे फैसले लेने पर मजबूर कर सकती है जो भावनाओं से भरे होते हैं और तर्क से दूर।इसलिए “प्यार अंधा होता है” सिर्फ कहावत नहीं, बल्कि मनोविज्ञान के अनुसार भी एक हद तक सच है।

निष्कर्ष;

प्रेम वास्तव में एक अंधा अनुभव हो सकता है, लेकिन यह केवल एक मानसिक और भावनात्मक स्थिति है, जो हमें किसी के सकारात्मक गुणों पर केंद्रित कर देती है और उनके नकारात्मक पहलुओं को अनदेखा करने की प्रवृत्ति उत्पन्न करती है। यह हमारे मस्तिष्क के रसायन, संज्ञानात्मक पक्षपातीता और मानसिक आवश्यकताओं से जुड़ा हुआ है। हालांकि, इसका यह मतलब नहीं है कि प्रेम में तर्क और विवेक का कोई स्थान नहीं होता। प्रेम में तर्क का सही स्थान है, लेकिन यह अक्सर तब कमज़ोर हो जाता है, जब हमारी भावनाएं मजबूत होती हैं।

इसलिए, यह कहना कि प्रेम अंधा होता है, एक आधे सच जैसा है – यह भावनाओं और तर्क के बीच के जटिल संतुलन का परिणाम है।

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