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जब कोई हमें इग्नोर करे तो हम और आकर्षित क्यों होते हैं?

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जब कोई हमें इग्नोर करे तो हम और आकर्षित क्यों होते हैं?

ignore psychology

क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि जिसे आप पसंद करते हैं, अगर वह आपको अनदेखा करने लगे, तो आपका मन और ज़्यादा उसकी ओर खिंचने लगता है?  क्या आपने कभी गौर किया है- जब कोई हमें बहुत प्यार से बात करता है, तो हम सहज रहते हैं, लेकिन जैसे ही वह हमें इग्नोर (नज़रअंदाज़) करने लगता है, हमारा मन उसके पीछे-पीछे भागने लगता है?

ऐसा क्यों होता है? क्या यह ego की बात है? या हमारे दिमाग में कोई मनोवैज्ञानिक तंत्र इसके पीछे काम करता है?

सच्चाई यह है कि “इंसान को वो चीज़ सबसे ज़्यादा चाहिए होती है, जो उसे नहीं मिलती।” और यही भावना किसी के ignore करने पर आकर्षण में बदल जाती है। यह केवल एक भावनात्मक प्रतिक्रिया नहीं है, बल्कि इसके पीछे गहरा मनोवैज्ञानिक कारण होता है। आइए समझते हैं कि ऐसा क्यों होता है और इसका हमारे व्यवहार पर क्या प्रभाव पड़ता है।

1. “इग्नोर किया जाना” और मानव मस्तिष्क की प्रतिक्रिया

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। हमारा मस्तिष्क जुड़ाव, स्वीकार्यता और अपनेपन की तलाश में रहता है। जब कोई व्यक्ति हमें अनदेखा करता है, तो यह हमारे मस्तिष्क को एक खतरे की तरह महसूस होता है।

अनदेखा किया जाना, मस्तिष्क में उसी हिस्से को सक्रिय करता है जो शारीरिक दर्द (physical pain) से जुड़ा होता है। इस कारण, हमारा मन उस व्यक्ति की ओर और ज़्यादा ध्यान केंद्रित करने लगता है जिसने हमें ignore किया। यह एक प्रकार का पुरस्कार चाहने वाला व्यवहार (reward-seeking behavior) है, मस्तिष्क यह महसूस करता है कि यदि वह व्यक्ति हमें फिर से स्वीकार करे, तो हमें राहत और खुशी मिलेगी।

2. इनाम सिद्धांत और Scarcity Principle:

हमारा दिमाग लगातार reward signals (इनाम जैसे अनुभव) ढूंढता रहता है। जब कोई हमारी तरफ ध्यान देता है- हमारा दिमाग डोपामाइन छोड़ता है, जो “feel-good” केमिकल है। लेकिन जब वही व्यक्ति अचानक हमें ignore करने लगता है, तो दिमाग उस dopamine की कमी महसूस करता है और उस व्यक्ति को पाने की कोशिश और तेज़ हो जाती है।

इसे कहते हैं “Scarcity Principle ” यानि जो चीज़ दुर्लभ हो जाती है, वो हमें ज़्यादा मूल्यवान लगने लगती है। दूसरे शब्दों में – जब कोई चीज आसानी से नहीं मिलती, तो उसका मूल्य हमारे मन में बढ़ जाता है। यह व्यवहार प्रेम या आकर्षण दोनों ही स्थितियों में देखा जाता है। यह वैसे ही है जैसे कोई बच्चा उसी खिलौने के पीछे भागता है जो उससे छिपा दिया गया हो। जैसे बाजार में अगर कोई चीज़ limited edition में आती है, तो लोग उसे पाने के लिए ज़्यादा आकर्षित होते हैं।

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3. Rejection Sensitivity: अस्वीकार किए जाने का डर

जिस क्षण कोई हमें अनदेखा करता है, हमारा अहं (ego) आहत होता है। हम भीतर से सवाल करने लगते हैं – “क्या मुझमें कमी है?”
यहीं से शुरू होती है “Rejection Sensitivity” यानी अस्वीकृति होने का डर। अहंकार पर चोट हमें उस व्यक्ति के validation (स्वीकृति) की तलाश में और सक्रिय कर देता है।

हमारा दिमाग यह मानने लगता है कि अगर वह फिर से हमें attention दे तो हम “जीत” जाएंगे। यह प्रक्रिया आकर्षण को गहराता है, भले ही सामने वाला व्यक्ति इसके योग्य न हो और धीरे-धीरे वह व्यक्ति हमारे दिमाग का केंद्र (center of attention) बन जाता है। दिमाग बार-बार वही बातें दोहराता है जिससे हमारी भावनात्मक ऊर्जा उसी इंसान की ओर खिंचने लगती है।

4. Cognitive Dissonance: मन का असंतुलन

जब हम किसी को पसंद करते हैं, लेकिन वही व्यक्ति हमें अनदेखा करता है, तो हमारे भीतर एक विरोधाभास (conflict) पैदा होता है।हमारे अनुभव और हमारी उम्मीदें आपस में टकराते हैं। इसे Cognitive Dissonance कहते हैं। हमारा मन यह कहता है “अगर मैं इस व्यक्ति को इतना पसंद करता हूं, तो वह मुझे क्यों इग्नोर कर रहा है?”

यह विरोधाभास (conflict) हमारे अंदर बेचैनी पैदा करता है, इस विरोधाभास को खत्म करने के लिए हम खुद को यह समझाने लगते हैं कि “शायद वो इतना खास है कि उसके ध्यान की वाकई कीमत है।” इस सोच के कारण हमारा आकर्षण और गहराता जाता है। यानी, हम अन्जाने ही उस असहजता को खत्म करने के लिए, उसी इंसान के प्रति और आकर्षित हो जाते हैं जो हमें इग्नोर कर रहा है।

attraction after rejection

5. Push and Pull Dynamics: खींचतान का खेल

मानव संबंधों में एक सूक्ष्म खेल चलता है- Push and Pull। जब कोई हमें बहुत अटेंशन देता है, तो हम आराम महसूस करते हैं।
लेकिन जैसे ही वो पीछे हटता है (pull करता है), हमारे अंदर एक घबराहट शुरू हो जाती है। हम परेशान होकर फिर से उसका अटेंशन पाने का प्रयास करने लगते हैं।

यह ट्रिगर हमें उसकी ओर खींचता है, बिलकुल उसी तरह जैसे चुंबक विपरीत ध्रुव को खींचता है। इसलिए कहा जाता है “Distance creates desire.” अर्थात दूरी आकर्षण पैदा करती है।

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6. Uncertainty Attraction: अनिश्चितता का आकर्षण

दिमाग को निश्चितता पसंद होती है, लेकिन अनिश्चितता ज़्यादा रोमांचक लगती है। न्यूरोसाइंस के अनुसार, dopamine केवल सुख मिलने से नहीं निकलता, बल्कि “सुख मिलने की उम्मीद” से भी निकलता है। जब कोई हमें कभी जवाब देता है, कभी नहीं तो हमारा मस्तिष्क इस अनिश्चितता को “exciting challenge” समझता है।

यह वैसा ही प्रभाव डालता है जैसा कई बार जुआ खेलने से होता है। जब हमें पता नहीं होता कि सामने वाला हमें पसंद करता है या नहीं,
तो दिमाग हर संकेत को decode करने की कोशिश करता है- “उसने last seen off क्यों किया?” “कॉल नहीं उठाई, क्या नाराज़ है?”

यह अनिश्चितता हमारे डोपामाइन को बढ़ा देता है, और उसी व्यक्ति के इर्द-गिर्द हमारी सोच घूमने लगती है।

7. Nostalgia Bias: पुरानी यादों का पूर्वाग्रह

इसका अर्थ है- अतीत की घटनाओं को वर्तमान की तुलना में अधिक सकारात्मक रूप में देखने की प्रवित्ति। अगर वही व्यक्ति पहले हमें बहुत प्यार से मिला करता था, और अब ignore कर रहा है तो हमारा दिमाग contrast effect महसूस करता है।

पहले के sweet gestures और आज की cold silence के बीच एक भावनात्मक खालीपन बनता है। हम उसी गर्मजोशी को वापस पाने की कोशिश करते हैं — और ये कोशिश आकर्षण का रूप ले लेती है। यानी हम असल में उस इंसान से नहीं, उस एहसास से, उन यादों से जुड़ जाते हैं जो कभी उसने हमें महसूस कराया था।

8. The Challenge Instinct: दिमाग को कठिन चीज़ें पसंद हैं

मनुष्य के दिमाग का एक बुनियादी गुण है – उसे चुनौती (challenge) पसंद है। जब कोई हमें इग्नोर करता है, तो वह “unavailable target” बन जाता है। दिमाग सोचता है “मुझे इसे हासिल करना है।” यह एक पीछा करने की प्रवित्ति शुरू कर देता है।

और जब कभी-कभी वह व्यक्ति थोड़ा सा ध्यान देता है, तो हमारा दिमाग dopamine से भर जाता है, यह इनाम इतना ज्यादा होता है कि हम फिर से उसी चक्र (cycle) में फँस जाते हैं।

9. प्यार बनाम आसक्ति (Love vs. Obsession)

कई बार यह आकर्षण धीरे-धीरे सच्चा प्यार नहीं, बल्कि “आसक्ति” में बदल जाता है। जब हमारा ध्यान उस व्यक्ति को पाने की इच्छा पर केंद्रित हो जाता है, तो हमारा आकर्षण एक भावनात्मक निर्भरता बन सकता है।

यह unhealthy जुड़ाव है, क्योंकि इसमें वास्तविक रिश्ते के बजाय सिर्फ स्वीकृति की आवश्यकता होती है। यह स्थिति विशेष रूप से तब होती है जब हम अंदर से insecurity (असुरक्षा) महसूस कर रहे होते हैं।

10. Self-Worth Confusion: आत्म-मूल्य का उलझाव

जब कोई हमें बार-बार इग्नोर करता है,तो हम अपने self-worth (आत्म-मूल्य) पर शक करने लगते हैं। हम सोचते हैं -“क्या मैं उतना interesting नहीं हूँ?” “क्या मैं कुछ कमी कर रही हूँ?” और जैसे ही हम अपने मूल्य पर शक करने लगते हैं,
हम उसकी स्वीकृति पाने के लिए और बेताब हो जाते हैं। यानी आकर्षण अब यह self-worth वापस पाने का तरीका बन जाता है।

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11. क्यों कुछ लोग “ignore game” खेलते हैं?

कुछ लोग जानबूझकर इग्नोर करते हैं क्योंकि वे power dynamics (सत्ता-संतुलन) बनाना चाहते हैं। उन्हें लगता है कि दूरी बनाकर रखने से उनका मूल्य बढ़ेगा। वे अपना भाव बढ़ाने के लिए ये खेल करते हैं।

जबकि वास्तव में, ऐसा करना अल्पकालिक आकर्षण पैदा कर सकता है, लेकिन लॉन्ग टर्म संबंधों के लिए हानिकारक होता है। सच्चा आकर्षण आपसी सम्मान और आपसी संवाद से बनता है, न कि तिकड़म और छल से।

अब सवाल- इससे बाहर कैसे निकलें?

यदि आप महसूस कर रहे हैं कि कोई आपको अनदेखा कर रहा है और आप लगातार उसकी ओर आकर्षित हो रहे हैं, तो यह आत्म-परख (self-awareness) का समय है। यह जानना ज़रूरी है कि यह मनोवैज्ञानिक खिंचाव (psychological pull) वास्तव में सच्चा आकर्षण नहीं होता, बल्कि भावनात्मक भ्रम (emotional confusion) होता है।

यहाँ कुछ उपाय हैं जो इस loop को तोड़ने में मदद कर सकते हैं-

1. Awareness Practice

पहला कदम है यह समझना कि आपका दिमाग क्या कर रहा है। जब आप जानते हैं कि यह सिर्फ ख़ुशी पाने की भूख है, जो आपको किसी के पीछे ले जा रही है तो आप इसे ध्यान में रख कर कोई प्रतिक्रिया ही ना दें। अपने अंदर की “self-worth” को दूसरे की प्रतिक्रिया पर निर्भर न करें।

2. Distraction with Purpose

खाली बैठने से इस तरह का मानसिक लूप और बढ़ता है। नयी हॉबी, शारीरिक गतिविधि या डायरी लिखने, प्रकृति के साथ रहने की आदतें अपनाएँ। दिमाग को नए “पुरस्कार” दीजिए। उनसे भी डोपामाइन बढ़ता है। कभी-कभी “ignore” किया जाना ही आपको “self-love” की दिशा में ले जाने का पहला संकेत होता है।

3. Boundaries Set करें

अगर कोई बार-बार आपको ignore करता है तो उसे स्पेस देना या जाने देना ही सम्मानजनक रास्ता है।
जबरदस्ती जुड़ने, सम्बन्ध बनाने या संपर्क रखने की कोशिश आपको और कमजोर करती है। अपने सीमायें निर्धारित करें।

4. Reframe the Situation

अपने दिमाग को यह समझाइए कि  “यह अस्वीकार करना (rejection) नहीं, बल्कि दिशा-परिवर्तन (redirection) है।”
जो व्यक्ति आपकी ऊर्जा, आपके मूल्यों की कद्र नहीं करता, वह आपकी आगे बढ़ने (growth) की यात्रा का हिस्सा नहीं हो सकता है। सोचें, “क्या यह व्यक्ति वाकई मेरे जीवन में मूल्य जोड़ता है या सिर्फ असुरक्षा को बढ़ा रहा है?”

निष्कर्ष:

जब कोई हमें ignore करता है, तो हम जिस आकर्षण को महसूस करते हैं, वह ज़्यादातर हमारे ईगो, ख़ुशी पाने की चाह, और स्वीकृति पाने की लालसा की मिलीजुली प्रतिक्रिया होती है। असल प्यार या जुड़ाव स्पष्टता और रिस्पेक्ट पर टिका होता है, न कि भ्रम और पीछे भागने पर।

परिपक्व संबंध वहीं टिकते हैं जहां आकर्षण के साथ समझ, सम्मान और स्थिरता (stability) हो। कभी-कभी पीछे हटना ही सही समाधान होता है ताकि हम खुद को, अपनी भावनाओं को और अपने असली मूल्य को पहचान सकें।

तो अगली बार जब कोई आपको ignore करे तो इसे “अपनी कमी” नहीं, बल्कि “उनकी सीमितता” समझिए। और याद रखिए —
जो व्यक्ति खुद से जुड़ जाता है, उसे कोई दूसरों के attention की ज़रूरत नहीं रहती।

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