
मनोविज्ञान (Psychology) मानव मस्तिष्क और व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन है। मनोविज्ञान की सहायता से लोगों की भावना, उनके व्यवहार उनकी सोच आदि को समझने में सहायता मिलती है। इन तथ्यों के माध्यम से हम इंसानी स्वभाव, उसके व्यवहार, भावनाओं का अच्छी तरह से पता लगा सकते हैं।
मनोविज्ञान केवल मानसिक स्वास्थ्य या व्यवहार को समझने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह हमारे विचारों, भावनाओं और आदतों के पीछे छिपे गहरे रहस्यों को उजागर करता है। वैज्ञानिक शोध और प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के आधार पर कई तथ्य इतने अविश्वसनीय और चौंकाने वाले होते हैं कि वे हमारी सोच को पूरी तरह से बदल सकते हैं।
कई बार, वैज् सिद्धांत हमें ऐसे तथ्यों से परिचित कराते हैं, जो अविश्वसनीय, चौंकाने वाले और यहां तक कि डराने वाले भी हो सकते हैं।
इस ब्लॉग में हम प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों, प्रयोगों, और सिद्धांतों के साथ सबसे शॉकिंग मनोवैज्ञानिक फैक्ट्स को समझेंगे।
1.अवचेतन मन हमें ज्यादा कंट्रोल करता है
हमारा अवचेतन मन बेहद शक्तिशाली होता है। ये एक जादुई पिटारे की तरह होता है जिसमें क्या है ये कोई नहीं जान सकता।
थ्योरी: सिगमंड फ्रायड (Sigmund Freud) का मन का त्रिस्तरीय मॉडल
फ्रायड के अनुसार, मन के तीन स्तर होते हैं –
चेतन (Conscious)
अवचेतन (Subconscious)
अचेतन (Unconscious)
शोध बताते हैं कि हमारे 95% निर्णय अवचेतन मन में होते हैं केवल 5% निर्णय हम चेतन मन से यानि जानते, बूझते, समझते हुए लेते हैं।
जब कोई व्यक्ति किसी विज्ञापन को बार-बार देखता है, तो वह उसे अधिक पसंद करने लगता है। इसे मात्र एक्सपोजर प्रभाव कहते हैं, जिसे रॉबर्ट ज़ायोनस (Robert Zajonc) ने 1968 में प्रस्तावित किया था।
वैज्ञानिक प्रमाण:
Bargh & Chartrand (1999) के अनुसार, हमारा अवचेतन मन हमारे विचारों और निर्णयों को अधिक प्रभावित करता है, भले ही हमें इसका एहसास न हो।
2. हमारा दिमाग असली दर्द और काल्पनिक दर्द में अंतर नहीं कर सकता
रिसर्च: नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, यूएसए (2011)
न्यूरोसाइंस रिसर्च बताती है कि शारीरिक दर्द और भावनात्मक दर्द में समान न्यूरल पाथवे सक्रिय होते हैं (Eisenberger et al., 2011)।
यही कारण है कि ब्रेकअप के बाद या रिजेक्शन मिलने पर हमें असली शारीरिक दर्द महसूस होता है।
fMRI स्कैन से यह भी पता चला कि जब कोई व्यक्ति ब्रेकअप या रिजेक्शन का सामना करता है, तो मस्तिष्क का सेरेब्रल कॉर्टेक्स (Cerebral Cortex) सक्रिय हो जाता है, जो शारीरिक दर्द को भी नियंत्रित करता है।वास्तविक जीवन पर प्रभाव:
यही कारण है कि भावनात्मक आघात से उबरने में अधिक समय लगता है और कभी-कभी यह शारीरिक दर्द से भी ज्यादा कष्टदायक हो सकता है। बहुत बार ऐसे आघात से व्यक्ति लंबी बीमारियां झेलने लगता है।
3. बार-बार सुनी गई बातें सच लगने लगती हैं
थ्योरी: इल्यूजन ऑफ ट्रुथ इफेक्ट (Illusion of Truth Effect)
यह हमारे दिमाग में एक तरह का पूर्वाग्रह है कि जिस जानकारी या सूचना को कई जगहों पर देख लेते हैं उसे सही मानने लगते हैं।
1977 में, जॉन बेज़रमैन (John Begg) और उनके साथियों ने एक शोध किया जिसमें पाया गया कि यदि कोई झूठी जानकारी बार-बार दोहराई जाए, तो लोग उसे सच मानने लगते हैं।
वास्तविक जीवन पर प्रभाव:
फेक न्यूज और अफवाहें तेजी से फैलती हैं क्योंकि जब लोग एक ही चीज़ बार-बार सुनते हैं, तो उनका मस्तिष्क इसे सच मानने लगता है।
यही कारण है कि राजनीति और विज्ञापनों में बार-बार दोहराए गए संदेश प्रभावी होते हैं। लोग उनके प्रभाव में आसानी से आ जाते हैं।
4. मल्टीटास्किंग एक भ्रम है, यह संभव नहीं है
मल्टीटास्किंग का मतलब है एक ही समय में एक से ज़्यादा काम करना या गतिविधियां करना।
जैसे, कार चलाते समय फ़ोन पर बात करना या मैसेज पढ़ना।
रिसर्च: स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, क्लिफोर्ड नास (2009) के अध्ययन से पता चला कि जो लोग मल्टीटास्किंग करते हैं, उनकी ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कमजोर हो जाती है।
दरअसल हमारा दिमाग एक समय में केवल एक ही जटिल कार्य को प्रभावी ढंग से कर सकता है।
वास्तविक जीवन पर प्रभाव:
जब हम एक साथ कई काम करने की कोशिश करते हैं, तो हमारी उत्पादकता 40% तक कम हो जाती है।
जब हम मल्टीटास्किंग करते हैं, तो हमारा दिमाग तेजी से एक कार्य से दूसरे कार्य पर स्विच करता है, जिससे गलतियों की संभावना बढ़ जाती है।
इसीलिए ड्राइविंग करते समय फोन पर बात करना एक अपराध की श्रेणी में आता है क्योंकि इससे एक्सीडेंट की संभावना बढ़ जाती है।
5. प्राकृतिक वातावरण में समय बिताने से मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है
अनेक अध्ययनों ने यह सिद्ध किया है कि प्राकृतिक वातावरण मस्तिष्क को पुनर्जीवित (Restore) करता है और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को बढ़ाता है।
उनके अनुसार, प्रकृति में समय बिताने से मानसिक थकावट कम होती है और रचनात्मक सोच में वृद्धि होती है
जापान में किए गए शोधों में पाया गया कि वनों में टहलने से शरीर में कोर्टिसोल (Cortisol) हार्मोन का स्तर कम हो जाता है, जो तनाव से जुड़ा होता है।
University of Michigan Study (Berman, Jonides & Kaplan, 2008)
इस शोध में पाया गया कि जो लोग नियमित रूप से प्राकृतिक स्थानों में टहलते हैं, उनकी स्मरण शक्ति (Memory) और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता (Attention) 20% तक बढ़ जाती है।
ये शोध बताते हैं कि प्राकृतिक वातावरण में समय बिताने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि यह मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को भी बेहतर बनाता है। इसलिए, मनोवैज्ञानिक उपचार में बागवानी (Horticultural Therapy) और ग्रीन स्पेस थेरेपी (Green Space Therapy) को शामिल किया जाता है।
6. सोशल मीडिया आपके दिमाग को ड्रग्स की तरह प्रभावित करता है
सोशल मीडिया का उपयोग लोगों के सामाजिक व्यवहार को बदल रहा है। कई लोग परिवार और दोस्तों के साथ बिताए जाने वाले समय की जगह सोशल मीडिया का उपयोग कर रहे हैं।
रिसर्च: हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, 2012
शोधकर्ताओं ने पाया कि सोशल मीडिया का उपयोग करने से डोपामिन रिलीज होता है, जो खुशी का अहसास कराता है।
यही कारण है कि हम बार-बार फोन चेक करते हैं और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताते हैं।
सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल लोगों की ब्रेन वायरिंग खराब कर रहा है। इसका सबसे ज्यादा नुकसान बच्चों और किशोरों के ब्रेन डेवलपमेंट पर पड़ रहा है। अमेरिकन साइकोलॉजिकल एसोसिएशन के चीफ साइंस ऑफिसर मिच प्रिंस्टीन के मुताबिक, बच्चे हर छोटी खुशी के लिए सोशल मीडिया पर निर्भर हो रहे हैं। इससे डिप्रेशन और एंग्जाइटी के मामले भी बढ़ रहे हैं।
फेसबुक, इंस्टाग्राम, और टिकटॉक जानबूझकर डिजाइन ही इस तरह से किए गए हैं कि वे नशे की लत जैसी प्रतिक्रिया उत्पन्न करें। इसका प्रभाव हमें दिन प्रतिदिन बढ़ता हुआ नजर आ रहा है।
7. संगीत आपके मूड और परफॉर्मेंस को प्रभावित करता है
संगीत की अलग-अलग शैलियों का लोगों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ता है। आप अपने मूड के हिसाब से विभिन्न तरह के संगीत सुनते हैं। जब आप अच्छे मूड में होते हैं, तो खुशी के गीत और दुखी होने पर ग़म के गीत सुनते हैं।
रिसर्च: Mozart Effect (Rauscher, Shaw & Ky, 1993)
अध्ययन से पता चला कि तेज बीट्स वाले गाने सुनने से ऊर्जा बढ़ती है और धीमे गाने से तनाव कम होता है।
यही कारण है कि रेस्टोरेंट में धीमा संगीत बजने पर लोग ज्यादा समय बिताते हैं और अधिक पैसे खर्च करते हैं।
आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आप क्या सुन रहे हैं, तो आप अपने मूड को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं। अगर आपके जीवन में कुछ नकारात्मक होता है, कोई दुःख है तो अपने मूड के हिसाब से संगीत सुनने के बजाय, थोड़ा खुशनुमा या ज़्यादा सकारात्मक संगीत सुनने की कोशिश करें। संगीत आपके जीवन को बदल सकता है।
8. हमारे 80% विचार नकारात्मक होते हैं
रिसर्च: नेशनल साइंस फाउंडेशन (National Science Foundation, 2005)
हमारे दिमाग में प्रतिदिन 12000 से 60,000 तक विचार आते हैं, और इनमें से 80% विचार नकारात्मक होते हैं।
इसे “नेगेटिविटी बायस” (Negativity Bias) कहा जाता है।
इन नकारात्मक विचारों के मुख्यतः चार स्रोत होते हैं। इनके बारे में जागरूक होने से, हम अपने नकारात्मक विचारों की संख्या को कुछ हद तक कम कर सकते हैं।
1. अतीत का पछतावा
“अगर मैंने वैसा नहीं किया होता, तो आज परिणाम बहुत बेहतर होता”, ऐसे विचार अक्सर निराशा, तनाव और अधिक नकारात्मकता लाते हैं। हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि हमें अतीत से सीखना है और उसमें जीना नहीं है।
2. भविष्य का डर
कल क्या होगा अगर मैं सफल नहीं हो पाऊंगा ? क्या होगा अगर मेरी नौकरी चली गई तो ? इस प्रकार के प्रश्न पूछकर, हम अपने मन को निगेटिविटी से भर लेते हैं और वर्तमान क्षण के आनंद को खो देते हैं।
3. खुद की तुलना दूसरों से करना
सोशल मीडिया की दुनिया में, खुद की तुलना दूसरों से करना और भी आसान हो गया है। हमें किसी के अनुभव, विचार या उसकी उपलब्धियों पर खुश होना चाहिए। लेकिन अधिकांश लोग किसी को बढ़ता हुआ देखकर तनाव और फ्रस्ट्रेशन में आ जाते हैं।
4. दूसरों पर दोष मढ़ना
“तुम्हारी गलती की वजह से मेरा कैरियर चौपट हो गया। तुम्हारी वजह से मुझे बिजनेस में नुकसान हुआ”, इस तरह दूसरों को दोष देना बहुत आसान है। जबकि व्यक्ति को अपने निर्णयों और असफलता के स्वयं जिम्मेदारी लेनी चाहिए।
9. झूठ बोलना दिमाग के लिए कठिन होता है
रिसर्च: यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL, 2016)
शोधकर्ताओं ने पाया कि झूठ बोलने में सच बोलने से ज्यादा मानसिक ऊर्जा खर्च होती है।
झूठ बोलना दिमाग के लिए कठिन होता है क्योंकि इसमें मस्तिष्क को एक साथ कई कार्य करने पड़ते हैं—सच को दबाना, नई कहानी गढ़ना, उसे याद रखना और संभावित विरोधाभासों से बचना। Prefrontal cortex और anterior cingulate cortex झूठ बोलने में सक्रिय रहते हैं, जिससे मानसिक ऊर्जा अधिक खर्च होती है।
झूठ से amygdala (मस्तिष्क का भावनात्मक केन्द्र) में उत्तेजना बढ़ती है, जिससे तनाव और अपराधबोध होता है। यही कारण है कि झूठ बोलते समय हृदय गति बढ़ना, पसीना आना जैसी शारीरिक प्रतिक्रियाएं देखी जाती हैं। इस जटिल प्रक्रिया के कारण सच बोलना आमतौर पर आसान होता है।
fMRI (मस्तिष्क के गतिविधियों की MRI) स्कैन से पता चला कि झूठ बोलते समय दिमाग के प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स में ज्यादा गतिविधि होती है।
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निष्कर्ष
मनोविज्ञान के ये शॉकिंग फैक्ट्स हमें यह समझने में मदद करते हैं कि हमारा दिमाग कैसे काम करता है और कैसे बाहरी चीजें हमारे व्यवहार को प्रभावित करती हैं।
आपको इनमें से कौन सा मनोवैज्ञानिक तथ्य सबसे ज्यादा चौंकाने वाला लगा? कमेंट में बताइए!
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मानव मनोविज्ञान के विभिन्न पक्षों पर आपके द्वारा विस्तार पूर्वक साक्ष्यों के आधार पर लिखा गया यह आलेख बहुत ही महत्वपूर्ण और मार्गदर्शन करने वाला है। ऐसे ही आलेखों को निरंतर लिखते रहिए। बहुत-बहुत शुभकामनाएं
इस स्नेह के लिए धन्यवाद।