G-5PXC3VN3LQ

नवरात्र उपवास: धार्मिक परंपरा से मानसिक मजबूती कैसे पाएं

Spread the love

नवरात्र उपवास: धार्मिक परंपरा से मानसिक मजबूती कैसे पाएं

नवरात्र उपवास से मानसिक मजबूती

नवरात्र के पावन दिनों में उपवास करना भारत की एक प्राचीन परंपरा है। बहुत से लोग इसे सिर्फ धार्मिक दृष्टि से देखते हैं—देवी की आराधना और आशीर्वाद पाने का माध्यम।

लेकिन अगर हम इसे मनोविज्ञान और मानसिक स्वास्थ्य के नजरिए से देखें, तो उपवास केवल शरीर को शुद्ध करने का साधन नहीं है, बल्कि यह मन का अनुशासन और भावनात्मक नियंत्रण का एक प्रभावी अभ्यास भी है।

हाल की वैज्ञानिक रिसर्च यह साबित करती हैं कि उपवास करने से मूड व फोकस पर सकारात्मक असर पड़ता है, आत्मनियंत्रण व विलपावर बढ़ती है, और भावनात्मक उतार-चढ़ाव को भी रेगुलेट करने में मदद मिलती हैं। उपवास को सही दृष्टिकोण, मनोवैज्ञानिक तैयारी, और आध्यात्मिक भाव के साथ अपनाया जाए—तो यह भीतर और बाहर दोनों स्तरों पर कल्याण कर सकता है।

उपवास: सिर्फ शरीर नहीं, मन का प्रशिक्षण

व्रत का मूल भाव है संयम। जब हम भोजन जैसे मूलभूत आग्रह को नियंत्रित कर सकते हैं, तो यह हमें अन्य इच्छाओं और भावनाओं पर भी काबू पाने की ताकत देता है।

  • व्रत के दौरान व्यक्ति बार-बार अपनी इच्छाओं, आदतों और भूख के प्रति सजग रहता है—यही सजगता मन को अनुशासित बनाती है।
  • इससे व्यक्ति अपनी खाने की लत और इमोशनल ईटिंग पर कंट्रोल पाता है, और यह “माइंडफुलनेस” की शक्ति को विकसित करता है।
  • नवरात्र के दिनों में उपवास से व्यक्ति के संकल्प और विलपावर (Willpower) मजबूत होती है
  • यह उसको दिनचर्या-आधारित “ऑटोपायलट” मोड से निकालकर सजग निर्णय लेने की ओर प्रेरित करता है।
  • यह हमें तुरंत संतुष्टि की आदत टालकर दीर्घकालिक लाभ चुनना सिखाता है। 

विज्ञान क्या कहता है: उपवास के दौरान मन और मूड

आधुनिक विज्ञान भी उपवास को सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य से जोड़कर देखता है।

  • Harvard Medical School की एक रिसर्च के अनुसार, intermittent fasting से brain plasticity (दिमाग की नई चीजें सीखने और बदलने की क्षमता) बेहतर होती है।

  • Neuroscience जर्नल्स में प्रकाशित अध्ययनों से पता चलता है कि उपवास से BDNF (Brain Derived Neurotrophic Factor) का स्तर बढ़ता है, जो मूड और फोकस को सुधारता है। इससे नई न्यूरॉन ग्रोथ होती है और व्यक्ति मानसिक रूप से तेज और रेजिलिएंट बनता है।

  • कुछ शोध यह भी बताते हैं कि उपवास से stress-resilience (तनाव झेलने की क्षमता) बढ़ती है और चिंता कम होती है।

  • शोध अनुसार, उपवास के समय ब्रेन में न्यूरोट्रांसमीटर जैसे सेरोटोनिन और डोपामिन का लेवल बढ़ता है, जिससे मूड बेहतर होता है, मानसिक स्पष्टता (Mental Clarity) आती है, और फोकस बढ़ जाता है।

  • फास्टिंग से “इमोशनल ईटिंग” जैसी समस्याओं पर नियंत्रण मिलता है—जिससे व्यक्ति लंबे समय में संतुलित व हेल्दी जीवनशैली चुन सकता है।
  • इंटरमिटेंट फास्टिंग व उपवास, में महसूस किया गया है कि तनाव, थकावट, और गुस्से की चेतना कुछ समय के लिए बढ़ सकती है, लेकिन जैसे-जैसे व्यक्ति का मन अपने पुराने व्यवहारों से मुक्त होने लगता है, उसमें आत्मनियंत्रण व स्टेबल मूड (Mood Stability) आ जाती है।

नेगेटिव सोच से छुटकारा पाने के 8 मनोवैज्ञानिक उपाय

नवरात्र के उपवास का मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव

  1. Self-Control: नौ दिन तक आहार-विहार पर नियंत्रण हमें आत्म-अनुशासन सिखाता है।

  2. Patience: खाने की इच्छा को नियंत्रित करने से धैर्य और सहनशीलता का विकास होता है।

  3. Emotional Balance: हल्का और सात्विक भोजन मन को शांत करता है, जिससे क्रोध और चिड़चिड़ापन कम होता है।

  4. Spiritual Connection: पूजा और ध्यान से जुड़कर मन सकारात्मक और ऊर्जावान होता है।

  5. Focus & Clarity: कम खाने और अधिक ध्यान लगाने से एकाग्रता (concentration) बढ़ती है।

मनोवैज्ञानिक अनुशासन व भावना नियंत्रण

  • उपवास करने का अभ्यास व्यक्ति को क्षणिक सुखों या बाहर के खाद्य आकर्षणों से हटाकर आंतरिक शांति और संतुलन सिखाता है।
  • यह मानसिक “डिटॉक्स” जैसा है—मन में जमा नकारात्मक विचारों या भावनाओं का परिशोधन।
  • उपवास के दौरान बार-बार ध्यान, जप या प्रार्थना के जरिए व्यक्ति का मन बाहरी अव्यवस्थाओं से हटकर स्थिर और केंद्रित (Centered) होता है।
  •  उपवास से आत्मनियंत्रण, एकाग्रता और मानसिक स्पष्टता (Clarity) में वृद्धि होती है।
  • नवरात्र में भोजन के साथ-साथ सोशल मीडिया से भी व्रत करने की कोशिश करें।

  • उपवास में जब भी खाएं, धीरे-धीरे और सजग होकर खाएं। भोजन के हर कौर के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें।

  • जब पेट खाली होता है, तो हम हर छोटी अनुभूति के प्रति अधिक सजग हो जाते हैं।
  • यह ध्यान (meditation) की तरह है, जो हमें वर्तमान क्षण से जोड़ता है।

30 अनमोल लाइफ लेसंस जो आपकी ज़िंदगी बदल देंगे

नवरात्र उपवास की भारतीय एवं आयुर्वेदिक दृष्टि

आयुर्वेद के अनुसार, ऋतु परिवर्तन के दौरान उपवास शरीर के वात, पित्त और कफ दोषों को संतुलित करने, पाचन अग्नि को प्रज्वलित करने और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।

नवरात्र के दिनों में उपवास करना केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक नहीं है, बल्कि यह भारतीय जीवनशैली और आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली का एक गहरा हिस्सा है। आयुर्वेद के अनुसार, साल के मौसम बदलने के समय शरीर की शुद्धि और संतुलन आवश्यक है और नवरात्र उपवास उसी सिद्धांत पर आधारित है।

भारतीय दृष्टि से नवरात्र उपवास

  • भारतीय संस्कृति में उपवास को संयम, आत्म-नियंत्रण और शुद्धि का साधन माना गया है।
  • उपवास को तप कहा गया है, यानी इंद्रियों पर नियंत्रण का अभ्यास।
  • नवरात्र में देवी की आराधना के साथ उपवास का महत्व बढ़ जाता है क्योंकि यह शक्ति और आध्यात्मिक शुद्धि से जुड़ा है।
  • यह केवल भोजन से परहेज नहीं, बल्कि नकारात्मक विचारों, भावनाओं और आदतों से दूरी बनाने का अवसर है।
  •  उपवास मन को सात्त्विक बनाता है, यानी शांति, करुणा और संतोष की भावना बढ़ाता है।

आयुर्वेदिक दृष्टि से उपवास

  • आयुर्वेद के अनुसार, उपवास का सीधा संबंध अग्नि (पाचन शक्ति) से है।
  • नियमित आहार और असंतुलित खानपान से पाचन शक्ति मंद हो जाती है। उपवास इसे पुनः प्रज्वलित करता है।
  • नवरात्र शरद ऋतु के आगमन पर आता है। इस समय पित्त दोष बढ़ता है। सात्त्विक और हल्का भोजन (फल, दूध, साबूदाना, मखाना) पित्त को शांत करता है।
  • आयुर्वेद में ओज (जीवन-शक्ति) को स्वास्थ्य का मूल माना गया है। उपवास से शरीर हल्का होता है और मानसिक शांति बढ़ने से ओज की वृद्धि होती है।
  • उपवास को लंगन चिकित्सा ( डिटॉक्सिफिकेशन) कहा गया है, जो शरीर को विषाक्त पदार्थों से मुक्त करता है।

उपवास का कब व्यर्थ हो जाता है?

व्रत का वास्तविक उद्देश्य है – शरीर और मन की शुद्धि, आत्म-नियंत्रण और संयम। लेकिन कई बार हम इसे ऐसे ढंग से करते हैं कि उसका असली अर्थ खो जाता है। जब उपवास केवल “परंपरा” बनकर रह जाता है—मन, भावना या इरादा पीछे छूट जाता है—तो वह सिर्फ नियमों का पालन होकर रह जाता है। वास्तविक लाभ तब मिलता है जब उपवास को “मन व भाव” से अनुभव किया जाए और उसे आंतरिक परिवर्तन तथा चेतना के उच्च स्तर के लिए अपनाया जाए।

1. सिर्फ भोजन बदलना, मन नहीं
  • अगर उपवास में केवल आटे-चावल की जगह आलू-चिप्स, तली-भुनी चीज़ें खाया जाए, तो यह व्रत का उद्देश्य नहीं पूरा करता।
  • मन की शुद्धि और अनुशासन उपवास का असली मकसद है, केवल खानपान नहीं।
  • भगवद्गीता में श्रीकृष्ण भी कहते हैं—बिना भाव के किए गए कर्मों का फल सीमित रह जाता है।
2. अत्यधिक तामसिक या राजसिक भोजन
  • उपवास के नाम पर भारी मिठाइयाँ, तैलीय पकवान, और ओवरईटिंग करना व्रत को शरीर पर बोझ बना देता है।
  • आयुर्वेद कहता है कि व्रत सात्त्विक होना चाहिए – फल, दूध, हल्का भोजन।
  • ठूंस ठूंस कर खाना या दिन भर खाते रहना व्रत नहीं है। 
3. ओवरईटिंग
  • उपवास खोलते समय नॉन वेज, पूड़ी पकौड़ी आदि खा लेना शरीर को नुकसान पहुँचाता है।
  • इससे पाचन बिगड़ता है और उपवास का लाभ उल्टा हो जाता है।
  • शरीर को धीरे धीरे पहले जैसी स्थिति में लाना चाहिए। 
4. नकारात्मक भावनाएँ बनाए रखना
  • उपवास करते हुए भी अगर हम क्रोध, ईर्ष्या या नकारात्मक सोच में डूबे रहें, तो व्रत का आध्यात्मिक और मानसिक लाभ शून्य हो जाता है।
  • कड़वे बोल,लड़ाई झगड़े और बुरी भावनाओं से दूर रहना चाहिए। 
5. दिखावा और प्रतिस्पर्धा
  • उपवास का मकसद दूसरों को दिखाना या “कितना कठिन व्रत रखा” साबित करना नहीं है।
  • यह एक व्यक्तिगत साधना है, इसे दिखावे का माध्यम बनाने से उसका असर कम हो जाता है।
  • आपका शरीर जितना सह सकता हो उतना ही उपवास करें, देखा देखी में नुकसान संभव है। 
6. स्वास्थ्य की अनदेखी
  • अगर कोई व्यक्ति बीमारी या कमजोरी के बावजूद ज़बरदस्ती उपवास करता है, तो यह लाभ के बजाय हानि दे सकता है।
  • आयुर्वेद मानता है कि उपवास हमेशा व्यक्ति की प्रकृति और स्वास्थ्य स्थिति के अनुसार होना चाहिए। 

श्रीकृष्ण के जीवन से सीखने योग्य 20 महत्वपूर्ण सिद्धांत

सही ढंग से उपवास कैसे करें

उपवास का उद्देश्य केवल भोजन से दूरी बनाना नहीं, बल्कि मन और शरीर को संतुलित करना है। सही ढंग से उपवास करने के लिए स्वस्थ आदतें, पौष्टिक आहार, और थोड़ी प्लानिंग जरूरी है। नीचे मुख्य बिंदु दिए गए हैं जिन्हें ध्यान में रखकर उपवास को सुरक्षित, असरदार और ताजगीपूर्ण बना सकते हैं—

उपवास के दौरान क्या करें

  • नियमित अंतराल में थोड़ा-थोड़ा फल, मेवे या दही खाएं—भूखे रहने से कमजोरी व चिड़चिड़ापन आ सकता है।
  • शरीर को हाइड्रेट रखें—पानी, नारियल पानी, छाछ, ताजे फलों का रस या हर्बल टी लें ताकि डिटॉक्सिफिकेशन ठीक तरह हो सके।
  • सिर्फ सात्विक व सुपाच्य खाना लें—आलू, कुट्टू, राजगिरा, फल व सब्जी जैसे पौष्टिक और कम मसालेदार आहार चुनें।
  • रोजाना 7-8 घंटे की नींद जरूर लें—फास्टिंग के दौरान शरीर की रीकवरी के लिए विश्राम जरूरी है।
  • रॉक सॉल्ट (सेंधा नमक) का इस्तेमाल करें—यह पाचन व ब्लोटिंग को कंट्रोल करता है।
  • भोजन की कम मात्रा, लेकिन बार-बार लें—दिनभर एनर्जी लेवल बना रहेगा और ओवरईटिंग नहीं होगी।

“नवरात्र उपवास केवल धार्मिक परंपरा नहीं, यह मानसिक अनुशासन, आत्म-नियंत्रण और मानसिक मजबूती बढ़ाने का साधन भी है।”

  • प्रोटीन व फाइबर युक्त खाद्य पदार्थ शामिल करें—दही, पनीर, नट्स व फल लंबे समय तक तृप्ति व एनर्जी देंगे।
  • तला-भुना और ज्यादा मसालेदार भोजन उपवास का लाभ कम कर देता है।
  • उपवास खोलते समय अचानक बहुत ज्यादा न खाएँ।
  • धीरे-धीरे और सीमित मात्रा में भोजन करें, ताकि पाचन तंत्र पर दबाव न पड़े।
  • उपवास के दिनों में सोशल मीडिया पर कम समय दें। समय को आत्मचिंतन, परिवार या शौक के लिए उपयोग करें।
  • नारियल या तरबूज़ पानी से फास्ट तोड़ें, फिर केले, सेब या पपीता लें; इससे पेट सहज रहेगा।
  • भूखे बिल्कुल न रहें—लंबी भूख से चक्कर, कमजोरी, सिरदर्द, और मेटाबॉलिज्म धीमा हो सकता है।
  • उपवास के दौरान ध्यान, प्रार्थना या योग भी करें ताकि मन और शरीर दोनों का संतुलन बना रहे।

दिमाग बनाम घर की सफ़ाई: Mental vs Physical Clutter

 निष्कर्ष

नवरात्र का उपवास केवल धार्मिक परंपरा नहीं है, यह मन और मस्तिष्क को अनुशासित करने का साधन भी है। जब हम इसे केवल “भोजन त्याग” न मानकर self-control, patience और mindfulness का अभ्यास समझते हैं, तो यह मानसिक स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता—दोनों को ऊँचा उठाने का माध्यम बन जाता है।

नवरात्र उपवास “शरीर से लेकर मन” की सफाई, आत्मनियंत्रण, और भावनाओं के शोधन का सशक्त अवसर है। शोध भी मानते हैं कि उत्तरदायित्वपूर्वक, सजगता और इरादे से किया गया उपवास—मूड को सकारात्मक, फोकस को तेज, और मानसिक अनुशासन को मजबूत करता है।

भारतीय और आयुर्वेदिक दृष्टि से नवरात्र उपवास शरीर और मन दोनों के शुद्धिकरण का माध्यम है। यह न केवल धार्मिक आस्था को प्रकट करता है, बल्कि हमें संयम, संतुलन और स्वास्थ्य की ओर भी ले जाता है। यदि उपवास को आयुर्वेदिक सिद्धांतों के अनुसार अपनाया जाए तो यह शरीर को शुद्ध, मन को शांत और आत्मा को ऊर्जावान बना सकता है।

इस नवरात्र, उपवास को सिर्फ शरीर की नहीं बल्कि मन की शुद्धि का अवसर बनाइए।

यदि आपको ये ब्लॉग पसंद आया हो तो इसे शेयर जरूर करें –

https://hindusanatanvahini.com/vrat-aur-mansik-swasthya/

2 thoughts on “नवरात्र उपवास: धार्मिक परंपरा से मानसिक मजबूती कैसे पाएं”

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top